उलूक टाइम्स

गुरुवार, 6 सितंबर 2012

आयकर अधिकारी का निमंत्रण पत्र


आयकर अधिकारी 
ने
सूचना एक भिजवाई थी

आज ही के दिन की 
तारीख लगवाई थी

लिखा था

मिलने 
के लिये आ जाना 
जो भी पूछूंगा
यहाँ 
आकर बता जाना 

वेतनभोगी
का वेतन 
तो खाते मैं जाता है
जो भी होता है 
साफ नजर आता है 

आयकर तो नियोक्ता 
खुद
काट कर 
भिजवाता है

साल में
दो महीने का वेतन
आयकर में चला जाता है

खुशी होती है 
कुछ हिस्सा देश के 
काम में जब आता है 

समझ में
नहीं आता है 
ऎसे आदमी से 
वो और क्या नया 
पूछना चाहता है 

अरबों खरबों
के 
टैक्स चोर
घूम रहे हैं खुले आम 

उनसे
टकराने की हिम्मत तो
कोई नहीं कर पाता है 

माना कि
कोई कोई मास्टर
धंदेबाज भी हो जाता है 

वेतन
के अलावा के कामों में
लाखों भी कमाता है 

ट्यूशन की दुकान चलाता है
लाख रुपिये की कापियाँ
एक पखवाडे़ के अंदर ही जाँच ले जाता है 

उस आय से बीबी के गले में
हीरों का हार पहनाता है 

आयकर वाला
लगता है
शायद ऎसी बीबी को बस कुछ ऎसे ही 
देखता रह जाता है 
पूछ कुछ नहीं पाता है 

सड़क पर कोई 
बेशकीमती गाड़ी
दो दो भी दौड़ाता है 

बहुमंजिले
मकान पर मकान बनाता है 
अच्छा करता है 
कोई अगर तकिये के नीचे नोट छिपाता है 

उधर
पहुँचने पर
पेशी में पूछा जाता है 

कितना
राशन पानी दूध चीनी
तू हर महीने अपने घर को ले जाता है 

हिसाब किताब
लिख कर दे जाना 
अगली तारीख लगा दी है 

वो
मुस्कुराते हुवे जब बताता है

ईमानदारी
वाकई 
अभिशाप तो नहीं 

ऎसे समय में
लगने लग जाता है 

बेईमान
होने से ही 

शायद आदमी 
इन लफड़ों में
नहीं 
कभी फंस पाता है ।

चित्र साभार: 
https://in.finance.yahoo.com/

बुधवार, 5 सितंबर 2012

शिक्षक दिवस

माता पिता
समाज
परिवेश
घर गाँव
शहर देश

पता नहीं

यहाँ तक
आते आते
किसने क्या
क्या
पढ़ाया 

शिक्षक दिवस
पर आज
अपने गुरुजनों
के साथ साथ

हर वो शख्स
मुझे याद आया

जिसने
कुछ ना कुछ
अच्छा बुरा
मुझे
सिखाया 

कोशिश
भी की
सीखने की
कुछ कुछ
हमेशा

पर
रास्ता
अपने
गुरु का
दिया हुआ
ही अपनाया

यहाँ तक
बेरोकटोक

शायद
इसी लिये
चल के
आराम से
आ पाया

आसपास
अपने

बोली भाषा
और
पहनावे
को
आज जब

मैं
खुद नहीं
समझ पाया

प्रश्न उठना
ही था
मन के कोने
में कहीं

पूछ बैठा
उसी समय
अपने आप से
वहीं के वहीं

शिक्षा
दी हो
शायद यही
मैंने ही
सब कुछ इन्हें

वही इन
सब के
व्यवहारों में
परिलक्षित हो
सामने से
है आया ।

मंगलवार, 4 सितंबर 2012

सामान नहीं बस दुकानदार चाहिये

राशन की
दुकान पर
हो रही
मारामार हो
गैस और
कैरोसिन
के लिये
लगी लम्बी
कहीं एक
कतार हो

जब प्रश्न
जीवन और
जीने का
हो जाता है
जरूरी होता है
इसलिये
भीड़ होने
के बावजूद
हर कोई
चला जाता है

दूसरी तरफ
एक भीड़
उस दुकान
पर जाकर
पता नहीं
कोई क्यों
लगाता है

जहां होता
है बस
काम में
ना आने वाला
ढेर सारा
कुछ सामान

कुछ सड़
गया होता है
और
बचा हुआ
आउट
आफ डेट
हो गया
होता है

राशन
और
कैरोसिन
लेने
जाने वाला
उस दुकान
के बगल से
गुजर के
रोज जाता है
थोड़ा दिमाग
लगाता है
उसको
साफ साफ
अंदाज
आ जाता है

इस तरह की
दुकानों पर
हर कोई
सामान ही
खरीदने
को नहीं
आता है

कोई दिखाने
के लिये
चिड़िया के
पंख खरीद
भी अगर
ले जाता है

असली में
वो तो
दुकानदार
के लिये
वहाँ जाता है

उसके बाद
फिर कोई
प्रश्न किसी
के दिमाग में
कहाँ रह
जाता है ।

सोमवार, 3 सितंबर 2012

अच्छी दिखे तो डूब मर

घरवाली
की आँखें
एक अच्छे
डाक्टर को
दिखलाते हैं

काला चश्मा
एक बनवा के
तुरंत दिलवाते हँ

रात को भी
जरूरी है
पहनना

एक्स्ट्रा
पैसे देकर
परचे में
लिखवाते हैं

दिखती हैं
कहीं भी
दो सुंदर
सी आँखें

बिना
सोचे समझे ही
कूद जाते हैं

तैराक होते हैं
पर तैरते नहीं
बस डूब जाते हैं

मरे हुऎ
लेकिन कहीं
नजर नहीं आते हैं

आयी हैं
शहर में
कुछ
नई आँखे

खबर पाते ही

गजब के
ऎसे कुछ
कलाकार

कूदने
की तैयारी
करते हुऎ

फिर
से हाजिर
हो जाते हैं

हम
बस यही
समझ पाते हैं

अच्छे
पिता जी
अपने बच्चों को

तैरना
क्यों नहीं
सिखाते हैं ।

रविवार, 2 सितंबर 2012

स्टिकर

कपड़े पुराने
हो जाते हैं
कपडे़ फट
भी जाते हैं

कपडे़ फेंक
दिये जाते हैं
कपडे़ बदल
दिये जाते हैं

कुछ लोग
फटे हुऎ कपडे़
फेंक नहीं
भी पाते हैं

पैबंद लगवाते हैं
रफू करवाते हैं
फिर से पहनना
शुरु हो जाते हैं

दो तरह के लोग
दो तरह के कपडे़

कोई नहीं करता

फटे कपड़ों 
की कोई बात

जाड़ा हो या

फिर हो बरसात

जिंदगी भी

फट जाती है
जिंदगी भी
उधड़ जाती है

एक नहीं

कई बार
ऎसी स्थिति
हर किसी की
हो जाती है

यहाँ मजबूरी

हो जाती है

जिंदगी फेंकी

नहीं जाती है
सिलनी पड़ती है
रफू करनी पड़ती है

फिर से मुस्कुराते हुऎ

पहननी पड़ती है

अमीर हो या गरीब

ऎसा मौका आता है

कभी ना कभी

कहीं ना कहीं
अपनी जिंदगी को
फटा या उधड़ा हुआ
जरूर पाता है

पर दोनो में से

कोई किसी को
कुछ नहीं बताता है

आ ही जाये कोई

सामने से कभी
मुँह मोड़ ले जाता है

सिले हुऎ हिस्से पर

एक स्टिकर चिपका
हुआ नजर आता है

पूछ बैठे कोई कभी

तो खिसिया के
थोड़ा सा मुस्कुराता है

फिर झेंपते हुऎ बताता है

आपको क्या यहाँ
फटा हुआ कुछ
नजर आता है

नया फैशन है ये

आजकल इसे
कहीं ना कहीं
चिपकाया ही
जाता है

जिंदगी

किसकी
है कितनी 

खूबसूरत
चिपका हुआ
यही स्टिकर
तो बताता है ।