उलूक टाइम्स

गुरुवार, 15 अगस्त 2013

सर्वगुण संपन्न की मोहर लगवा कोई नहीं देखेगा हरा है या भगवा

क्रिकेट हो फुटबाल हो
बैडमिंटन हो
या किसी और तरीके का खेल हो

साँस्कृतिक कार्यक्रमों की पेलम पेल हो

टीका हो या चंदन हो
नेता जी का अभिनन्दन हो

सभी जगह पर
'सर्वगुण संपन्न' की मोहर
माथे पर लगे हुओं को ही मौका दिया जाता है
आता है या नहीं आता है ये सोचा ही नहीं जाता है

ये मोहर भी
कोई विश्वासपात्र ही बना पाता है

कुछ खास जगहों पर
खास चेहरों के सिर पर ही
सेहरा बाँधा जाता है

खासियत की परिभाषा में
जाति धर्म राजनीतिक कर्म तक
कहीं टांग नहीं अपनी अढ़ाता है

सामने वाला
कुछ कर पाता है या नहीं कर पाता है

ये सवाल तो
उसी  समय गौंण हो जाता है
जिस समय से किसी को
बेवकूफों की श्रेणी में डालकर
सीलबंद हमेशा के लिये
करने का ठान लिया जाता है

यही सबको बताया भी जाता है

इसी बात को फैलाया भी जाता है

पूरी तरह से
मैदान से किसी का
डब्बा गोल करने का
जब सोच ही लिया जाता है

क्या करें
ये सब मजबूरी में ही किया जाता है

एक जवान होते हुऎ
शेर को देखकर ही तो
जंगल के सारे कमजोर कुत्तो से
एक हुआ जाता है

बेवकूफ की
मोहर लगा वही शख्स
रक्तदान के कार्यक्रम की
जिम्मेदारी
जरूर पा जाता है
सबसे पहले अपना रक्त
देने से भी नहीं कतराता है

समझदारों में से एक
समझदार
उसी रक्त का मूल्य
अपनी जेब में रखकर
कहीं पीछे के दरवाजे से
निकल जाता है

सफलता के ये सारे पाठों को
जो आत्मसात नहीं कर पाता है

भगवान भी उसके लिये
कुछ नहीं कर पाता है ।

आजादी भी खुद चाहती है अब आजादी

सभी भारतीयों को
स्वतंत्रता दिवस की
बहुत बहुत शुभकामनाएं
लो आ गया फिर आज
वो मुबारक दिन
पूर्ण हुई थी जब कभी
मेरे देश के नागरिकों
की सारी मनोकामनाएं
आजादी मिली थी
आज ही के दिन
ऎसा कुछ कभी
पढ़ाया गया था
बताया गया था
बुजुर्गों द्वारा अपनी
कहानियों में कभी 
सुनाया गया था
आजाद हो गये हैं
सब लोक भी
और तंत्र भी
ऎसा कुछ कभी
समझाया गया था
और
ये बात तो सच है
महसूस भी होती है
दिल को अंदर तक
कहीं छू भी लेती है
आजादी अब कहीं
भी रुकती नहीं
होता नहीं कोई
घर्षण  अब कहीं
स्वत: स्फूर्त होती है
बाहर से नहीं
दिल के अंदर
से होती है
अब आजादी
जीवित ही नहीं
बेजान में तक
जीती हुई सी
मिलती है
जब आजादी
हुऎ
हम सब
आजाद ऎसे
टूटती रही सारी
सीमाऎं जैसे
धीरे धीरे कुछ
यूँ ही सभी
कसमसाती ही रही
तब ये आजादी
चाहने लगी अपने
ही खुद के लिये
भी कुछ आजादी
अब दिख रही है
हर तरफ हर चीज
खुद से आजाद ऎसे
कुछ कहती नहीं बस
मौन सी हो
गई है आजादी
हम हो चुके हैं
तोड़ कर सारी हदें
इतना आजाद
कि अब रहना
भी नहीं चाहती
साथ में ये
ही आजादी
सब को मुबारक
आज का दिन
अभी तक तो
कह ही रही है
ये ही आजादी
कल जो करे
वो सो करे
पर आज तो
मजबूर सी क्यों
लग रही है आजादी
क्या उम्र ज्यादा
होने से बूढ़ी तो
नहीं हो गई
है ये आजादी ।

बुधवार, 14 अगस्त 2013

तू बंदूक चलाने को कंधा दे देगा मेडल पर मेरे को मिलेगा

आसान होता है 
बंदूक चलाना घोडे़ को दबाना 

किसी के मरे बिना 
चारों खाने चित्त कर ले जाना 

ना खून का दिखना 
ना पुलिस का आना ना कोई मुकदमा 
ना किसी को कहीं जेल की सजा हो जाना 

कौन सी ऎसी बंदूक होगी 
दिखती भी नहीं होगी 
गोली भी नहीं होगी 
आवाज भी नहीं होगी 

और तो और 
किसी सामने वाले की 
मौत भी नहीं होगी 

सांप भी नहीं होगा लाठी भी नहीं होगी 
फौज भी नहीं होगी सरहद भी नहीं होगी 
बस होगी वाह वाह जो हर तरफ होगी 

बेवकूफ हैं जो सेना में चले जाते हैं 
सरहद में जाकर 
गोली खा खा कर मर जाते हैं 

पता नहीं बंदूक चलाने का 
सबसे आसान तरीका क्यों नहीं अपनाते हैं 
जिसमें 
बंदूक खरीदने कहीं भी नहीं जाते हैं 
बंदूक 
बस एक अपनी सोच में ले आते हैं 

जरूरत होती है एक ऎसे कंधे की 
जो आसानी से ही उपलब्ध हो जाते हैं 

सारे शूरवीर ऎसे ही कंधों में रखकर 
घोड़ों को दबाते हैं गोली चलाते हैं 
सामने वाले कोई नहीं कहीं मर पाते हैं 

कंधे देने वाले ही इसमें शहीद हो जाते हैं 
बंदूक चलाने वाले मेडल पा जाते हैं 

बेवकूफ कंधे देने वाले 
समाज में हर कोने में पाये जाते हैं 
लेकिन उस पर बंदूक रख कर 
गोली चलाने वाले बिरले ही हो पाते हैं 

समाज को दिशा देने वालों में 
आज ये ही लोग 
सबसे आगे जाते हैं 

जो अपने कंधे ही नहीं बचा पाते हैं 
ऎसे बेवकूफों से 
आप और क्या उम्मीद लगाते हैं ?

मंगलवार, 13 अगस्त 2013

कभी एक रोमानी खबर क्यों नहीं तू लाता है

सब कुछ तो
वैसा 
नहीं
होता है

जैसा 

रोज का रोज
आकर तू यहां
कह देता है

माना कि
अन्दर से
ज्यादातर
वही सब कुछ
निकलता है

जैसा कि
अपने आस
पास में
चलता है

पर
सब कुछ
तुझे ही

कैसे
और क्यों
समझ में
आता है

तेरे
वहाँ तो

एक से
बढ़कर एक
चिंतकों का

आना जाना
हमेशा से ही
देखा जाता है

पर
तेरी जैसी
अजीब
अजीब सी
परिकल्पनाऎं
लेकर

कोई ना तो
कहीं आता है
ना ही कहीं पर
जाकर बताता है

दूसरी
ओर देख

बहुत
सी चीजें
जो होती
ही नहीं है

कहीं
पर भी
दिखती नहीं हैं

उन
विषयों
पर भी

आज जब
विद्वानोंं द्वारा

बहुत कुछ
लिखा हुआ
सामने
आता है

शब्दों के
चयन का
बहुत ही
ध्यान रखा
जाता है

भाषा
अलंकृत
होती है

ऊल जलूल
कुछ भी
नहीं कहा
जाता है

तब तू भी
ऎसा कुछ
कालजयी
लिखने की
कला सीखने
के लिये

किसी को
अपना गुरू
क्यों नहीं
बनाता है

वैसे भी
रोज का रोज
सारी की सारी
बातों को
कहना

कौन सा
इतना जरूरी
हो जाता है

जहाँ
तेरे चारों ओर
के हजारों
लोगों को

अपने सामने
गिरते हुऎ
एक मकान
को देखकर

कुछ भी नहीं
हुआ जाता है

तू
बेकार में
एक छोटी सी
बात को

रेल में
बदलकर
हमारे सामने
रोज क्यों
ले आता है

अपना समय
तो करता ही
है बरबाद

हमारा
दिमाग
भी साथ
में खाता है ।

सोमवार, 12 अगस्त 2013

भाई आज फिर तेरी याद आई

गधों में से चुना
जाना है एक गधा
चुनने के बाद
कहा जायेगा उसे
गधों में सबसे
गधा गधा
इस काम को
अंजाम देने के
लिये लाया जाना है
आसपास का नहीं
कहीं बहुत दूर
का एक गधा
गधों के माफिया
ने चुना है
सुना एक धोबी
का गधा
जब बहुत से
गधे खेतों में
घूमते चरते
दिख रहे हैं
रस्सी भी नहीं हैं
पड़ी गले में
फुरसत में
मटरगश्ती भी
मिल कर वो
कर रहे हैं
समझ में नहीं
ये आया गधे
धोबी के गधे से
अपना काम
निकलवाने के लिये
क्यों मर रहे हैं
मुझ गधे के दिमाग ने
मेरा साथ ही
नहीं निभाया
इस बात का राज
मुझे गूगल ने
भी नहीं बताया
थक हार कर
मैंने अपने एक
साथी को अपनी
उलझन को बताया
सुनते ही चुटकी
में यूँ ही उसने
इस बात को कुछ
ऎसे समझाया
बोला चूहों को
जब बांधनी होती है
किसी बिल्ली के
गले में घंटी
बहुत मुश्किल
से किसी एक
चतुर चूहे के
नाम पर है
राय बनती
काम होने में
भी रिस्क बहुत
है हो जाता
कभी कभी चतुर
चूहा इसमें शहीद
भी है हो जाता
अब अगर पहले
से ही घंटी बंधी
बिल्ली किसी के
पास हो जाये
तो बिना मरे भी
चूहों का काम
आसान हो जाये
इसी सोच से धोबी
के गधे पर दाँव
गधों ने लगाया होगा
गधे का नहीं सोचा होगा
धोबी पटा पटाया होगा
गधों को जब अपना
काम करवाना होगा
धोबी को बस एक
पैगाम पहुँचाना होगा
धोबी बस गले की
रस्सी को हिलायेगा
गधा गधों के सोचे हुऎ
गधे के नाम पर
ही मुहर लगायेगा
लिख दिया है
ताकि सनद रहे
क्या फर्क पड़ना है
क्योंकि एक गधे की
लिखी हुई बात को
बस गधा ही केवल
एक समझ पायेगा
उसे तो चरनी है
लेकिन बस घास
वो फाल्तू में यहाँ
काहे को आयेगा
गधों के लिये एक
गधे के द्वारा कही
गई बात गधों को
कोई भी जा
के नहीं सुनाऎगा ।