उलूक टाइम्स

शनिवार, 31 अगस्त 2013

सच्चा और अच्छा होने का लाइसेंस ले आ फिर करता जा मत घबरा


चार लोगों को
जो अपने साथ खड़ा भी नहीं कर सकता हो 
वो भला सच्चा कैसे हो सकता है

सब के साथ में सब जगह दिखेगा
कुछ नहीं कहेगा कुछ नहीं लिखेगा
वो जरूर अच्छा हो सकता है

अच्छे और सच्चे होने की परिभाषा
निर्धारित की जा चुकी है
सदन में पास हो चुकी है अखबार में छापी जा चुकी है

जल्दी ही इसके लिये निविदा
एक निकाली भी जाने वाली है

अच्छे और सच्चे होने के लाइसेंस
सरकार जल्दी ही बनवा के बंटवाने वाली है

छोटे छोटे गली नुक्कड़ के अपराधों के लिये
किसी को कोई सजा अब नहीं दी जाने वाली है

अपने अपने हिसाब से
जिसको जो अच्छा लगता हो प्रायोजित करवा सकता है
जिसे धरना कराना हो वो धरना करा सकता है
जिसे किसी को उठवाना हो
वो उसे उठा के अपने घर में रखवा सकता है

जल्दी ही इन सब पर
नियम कानून की किताब बन के आ जाने वाली है
  
छोटी मोटी घटनाओं की बड़ती आवृति से
पुलिस भी अब निजात पा जाने वाली है

बुद्धिजीवियों को भी गुंडागर्दी करने की
कुछ छूट भी 
इसमें दी जाने वाली है

राजनैतिक दल से जुडे़ होने पर
दल की हैसियत के अनुसार
कम बाकी कर दी जाने वाली है

सरकार के दल से जुडे़ अच्छे और सच्चे को
छूट के साथ ईनाम भी दिया जायेगा

सरकार के कमीशन का कुछ प्रतिशत
उसके खाते में अपने आप जमा जा के हो जायेगा
रोज रोज छोटे मोटे हाथ साफ करने से
कुछ तो राहत वो पायेगा

विपक्ष का भी ध्यान रखा जायेगा
उनके अच्छे और सच्चे लोगों को
उनके अपने हिसाब से काम करने दिया जायेगा

बस उनको ये बता दिया जायेगा
कि पक्ष के अच्छे और सच्चे लोगों से
उनका कोई भी आदमी कहीं भी नहीं टकरायेगा

ऊपर वालों को कुछ दिखाने के लिये कुछ करना
अगर बहुत जरूरी हो जायेगा

ऎसे समय में जो किसी भी दल में नहीं होगा
उससे पंगा ले लिया जायेगा

जिसका कोई नहीं होगा 
वो किसी के पास अपनी फरियाद ले कर नहीं जा पायेगा

जनता सुखी होगी उन्नति करेगी
डर सबका भाग जायेगा

मुसीबत आ भी गई कभी सामने तो
अच्छा आदमी सच्चा होने का
लाइसेंस निकाल के दिखायेगा ।

चित्र साभार:
https://economictimes.indiatimes.com/

शुक्रवार, 30 अगस्त 2013

लंगड़ी लगती है तभी तो सीखी भी जाती है

जुम्मा जुम्मा 
आ कर अभी तो पाँव कुछ जमाई हैंं
कुछ बातें समझनी बहुत जरूरी होती हैं 
पता नहीं क्यों नहीं समझ पाई हैंं

पढ़ी लिखी हैंं और समझदार हैंं
दिखती मजबूत सी हैंं बाहर से काम करने में भी काफी होशियार हैंं

पर हर जगह के
अपने अपने कुछ उसूल होते हैं 
बहुत से लोग होते हैं जो बहुत पुराने हो चुके होते हैं 
उन लोगों के भी अपने अपने दुख : होते हैं 
जो उनसे भी पुराने लोग उनको जाते जाते दे गये होते हैं 

इसी चीज को ही तो अनुभव कहते हैं 

जल्दी बाजी नहीं करेगी
तो समय आने पर सब कुछ तू भी समझ जायेगी
देख लेना आने वाले समय में तू भी उनकी जैसी जरूर हो पायेगी 
उनका तो कुछ वैसे भी तू कुछ बिगाड़ नहीं पायेगी 
हाँ आने वाली नयी खेप से
अपनी खुंदकें निकालने में पुरानी खेप तेरा कुछ भी नहीं कर पायेगी 

कुछ समय लगा काम करना सीख जा 

समीकरण बनाना अगर सीख जायेगी 
तो थोड़ा गणित लगाने में महारथ भी तेरी हो जायेगी 

अच्छे काम तो किसी भी तरह हो जायेंगे 
पर किसी की वाट लगाने में यही सब अनुभव तेरे काम आयेंगे 

किसी को मारना हो
तो सामने से कभी नहीं मारा जाता है
हिसाब किताब 
धर्म का जाति का गांव का वर्ग का उम्र का लिंग का अंदर की आग का अपने विभाग का 
या 
फिर काम के कमीशन के हिसाब का
सबसे पहले लगाया जाता है 

जिस से निशाना साफ नजर आता है 
उसे छाँट कर मिलबाँट कर ठिकाने लगा लिया जाता है

 हर बार एक ही तिकड़म से काम नहीं किया जाता है 
अगली बार किसी और तरीके से उल्लू सीधा कर लिया जाता है 
 तुझे लगता है लगना भी चहिये कि तुझको बहुत कुछ आता है 

अब क्या करेगी 
अगर सब मिलकर कह देंगे सब से कह देंगे तेरा बताया हुआ किसी के समझ में नहीं आता है 

हर एक की चाह होती है बहुत ऊपर तक उठता चले जाने की

सीढ़ी नहीं होती है 
इसीलिये
अपने आसपास के मजबूत कंधों की सीढ़ी बनाने की जरूरत होती है

सीढ़ी 
बन गया कोई किसी की ये भी तभी पता चल पाता है 
जब चढ़ा हुआ बंदर पेड़ की चोटी पर दूर नजर आता है 

मुझ से भी हमेशा इस तरह कहाँ कहा जाता है 
आँखों में तैरता बाहर को निकलता हुआ सा पानी कहीं दिख जाता है

किया जब कुछ नहीं जाता है 
बस आक्रोश ऎसे ही समय में शब्दों के रूप में बाहर निकल जाता है 

उपर वाला भी तो उम्र के साथ अक्ल की जुगलबंदी हमेशा कहाँ कराता है ।

गुरुवार, 29 अगस्त 2013

उलूक की पोटली में कूड़ा ही कूड़ा

हवा में तैरती ही हैं हर वक्त 
कथा कहानी कविताऎं

जरूरी कहाँ होता है 
सब की नजर में 
सब के सब ऎसे ही आ ही जायें

सबको पसंद आ जायें
शैतानियाँ बच्चों की चुहुल बाजी 
कहीं कहीं खट्टी कहीं मीठी झिड़कियां

दरवाजे के किनारे से झांकने का
अपना 
एक अलग मजा है 
किसी को दिख रही होती हैं खिकियां 

कोई फर्क नहीं पड़ता है 
जालियों में जाले लगे हो या नहीं 
जब झांकने की आदत हो जाये 
आँख बंद कर 
बंद दरवाजे के अंदर तक झांक लेता है कोई 

किसी को फर्क नहीं पड़ता 
किसी के बच्चों को कोई 
स्कूल अगर पहुँचाने में लगा हो 

क्या होता है अगर सुबह का दूध 
डेयरी से लाकर रोज दे जाने लगा हो 

अपने अपने शौक अपनी अपनी महारथ 

कोई हाथ की सफाई में माहिर 
कोई दिल पर डाके डालने में उस्ताद 
घर में एक अलग बाहर के लिये अलग 

बहुत कम होते हैं मगर होते हैं किताबी कीडे़ 
बस चले तो पढ़ाने वाले को ही खा जायें 

रोज रोज के पूछने का झंझट हो दूर 
एक दिन में ही सारी समस्यायें खुद सुलझ जायें

कोई अगर खाली होती कुर्सियों की 
गिनती कर रहा हो 
तो इसमें किसी के बाप का क्या चला जाता है 

इसके लिये वो झुक झुक कर 
काम आने वाले लोगों को सलाम ठोकना 
शुरु हो जाता है 

जहाँ दिमाग में कुछ 
हिसाब किताब घूम रहा होता है
वो 
लेखाधिकारी आफिस में 
उपस्थित हो या ना हो
उसकी कुर्सी को चूम रहा होता है 

कहीं कृष्ण देख लो कहीं राधा भी होती है
राम के भक्तगण भी मिल जायेंगे 
जरूरत पढ़ने पर रावण के भी काम आयेंगे 

कहीं पत्थर सीमेंट रेता भी होता है
इधर फेंका जाता है उधर काम आ जाता है 

जुगाड़ी भी 
तैरती हुई परीकथा का एक हिस्सा होता है

ऎसा दिखाया जाता है

कुछ कुछ तो ऎसा भी होता है 
जो होता है 
पर उसके ऊपर कुछ भी कहीं नहीं कहना होता है 

कैसे कहे कोई 
उसे कहने के लिये पहले बेशरम होना होता है 

कोई बात नहीं 
ये सब अगर नहीं होता चला जायेगा
तो कहने वाले के लिये भी तो 
कहने के लिये कुछ नहीं रह जायेगा 

आज ही सब कुछ नहीं कहेगा 
कल को कहने के लिये
कुछ नया 
चटपटा उठा कर ले आयेगा 

अपनी अपनी ढपली अपने अपने रागों 
से ही तो मेरा देश 
महान होने की दौड़ लगायेगा 

अब गिरे हुऎ रुपिये को उठाने के लिये
कोई 
तो जोर लगायेगा ।

बुधवार, 28 अगस्त 2013

मैने तो नहीं पढ़ी है क्या आप के पास भी गीता पड़ी है

कृष्ण
जन्माष्टमी
हर वर्ष
की तरह
इस बार
भी आई है

आप
सबको
इस पर्व
पर बहुत
बहुत
बधाई है

बचपन से
बहुत बार
गीता के
बारे में
सुनता
आया था

आज फिर
से वही
याद लौट
के आई है

कोशिश की
कई बार
पढ़ना शुरू
करने की
इस ग्रन्थ को
पर कभी
पढ़ ही
नहीं पाया

संस्कृत में
हाथ तंग था
हिन्दी भावार्थ
भी भेजे में
नहीं घुस पाया

आज
फिर सोचा
एक बार
यही कोशिश
फिर से
क्यों नहीं
की जाये

 दिन
अच्छा है
अच्छी
शुरुआत
कुछ आज
ही कर
ली जाये

जो
समझ
में आये
आत्मसात
भी कर
लिया जाये

कुछ
अपना और
कुछ अपने
लोगों का
भला कर
लिया जाये

गीता थी
घर में एक

देखी कहीं
पुत्र से पूछा

पुस्तकालय
के कोने से
वो एक
पुरानी पुस्तक
उठा के
ले आया

कपडे़ से
झाड़ कर
उसमें
जमी हुई
धूल को
उड़ाया

पन्नो के
भीतर
दिख रहे थे

कागज
खाने वाले
कुछ कीडे़
उनको
झाड़ कर
भगाया

फिर
सुखाने को
किताब को
धूप में
जाकर के
रख आया

किस्मत
ठीक नहीं थी
बादलों ने सूरज
पर घेरा लगाया

कल को
सुखा लूंगा
बाकी
ये सोच
कर वापस
घर के अंदर
उठा कर
ले आया

इतनी
शुरुआत
भी क्या
कम है

महसूस
हो रहा है
अभी भी
इच्छा शक्ति
में कुछ दम है

पर आज
तो मजबूरी है
धूप किताब
को दिखाना
भी बहुत
जरूरी है

आप के
मन में
उठ रही
शंका का
समाधान
होना भी
उतना ही
जरूरी है

जिस
गीता को
आधी जिंदगी
नहीं कोई
पढ़ पाया हो

उसके लिये
गीता को
पढ़ना इतना
कौन सा
जरूरी हो
आया हो

असल में
ये सब
आजकल
के सफल
लोगों को
देख कर
महसूस
होने लगा है

जरूर इन
लोगों ने
गीता को
समझा है
और बहुत
बार पढ़ा है

सुना है
कर्म और
कर्मफल
की बात
गीता में ही
समझायी
गयी है
और
यही सब
सफलता
की कुंजी
बनाकर
लोगों के
द्वारा
काम में
लायी गयी है

मैं जहाँ
किसी
दिये गये
काम को
करना चाहिये
या नहीं
सोचने में
समय
लगाता हूँ

तब तक
बहुत से लोगों
के द्वारा
उसी काम को
कर लिया
गया है की
खबर अखबार
में पाता हूँ

वो सब
कर्म करते हैं
सोचा नहीं
करते हैं

इसीलिये
फल भी
काम करने
से पहले ही
संरक्षित
रखते हैं

मेरे जैसे
गीता ज्ञान
से मरहूम
काम गलत
है या सही
सोचने में ही
रह जाते हैं

काम होता
नहीं है
तो फल
हाथ में
आना
तो दूर

दूर से
भी नहीं
दिख पाते हैं

गीता को
इसीलिये
आज बाहर
निकलवा
कर ला
रहा हूँ

कल से
करूँगा
पढ़ना शुरू
आज तो
धूप में
बस सुखा
रहा हूँ ।

मंगलवार, 27 अगस्त 2013

छोटी करना बात को नहीं सिखायेगा तो लम्बी को ही झेलने के लिये आयेगा

कबीर सूर तुलसी
या
उनके जैसे कई और ने
पता नहीं कितना कुछ लिखा
लिखते लिखते इतना कुछ लिख दिया
संभाले नहीं संभला

कुछ बचा खुचा जो सामने था
उसपर भी ना जाने
कितनो ने कितना कुछ लिख दिया

शोध हो रहे हैंं
कार्यशालाऎं हो रही हैं
योजनाऎं चल रही हैं
परियोजनाऎं चल रही हैं

एक विद्वान
जैसे ही बताता है 
इसका मतलब ये समझ में आता है
दूसरा
दूसरा मतलब निकालने में
तुरंत ही जुट जाता है

स्कूल जब जाता था 
बाकी बहुत कुछ 
समझ में आ ही जाता था

बस इनके लिखे हुऎ को
समझने की कोशिश में ही
चक्कर थोड़ा सा आ जाता था
कभी किसी को ये बात नहीं बता पाता था
अंकपत्र में भाषा में पाये गये अंको से
सारा भेद पर खुल ही जाता था

कोई भी इतना सब कुछ
अपने एक छोटे से जीवन में
कैसे लिख ले जाता होगा
ये कभी भी समझ में नहीं आ पाता था

ये बात अलग है
उनके लिखे हुऎ का भावार्थ निकालने में
अभी भी वही हालत होती है
तब भी पसीना छूट जाता था

मौका मिलता तो 
एक बार इन लोगों के
दर्शन करने जरूर जाता
कुछ अपनी तरफ से
राय भी जरूर दे के आता

एक आईडिया
कल ही तैरता हुआ दिख गया था यहीं
उसी को लेकर कोई कहानी बना सुना आता

क्यों इतनी लम्बी लम्बी 
धाराप्रवाह भाषा में लिखते चले जा रहे हो

घर में बच्चे नहीं हैं क्या
जो सारी दुनियाँ के बच्चों का दिमाग खा रहे हो

सीधे सीधे भी तो बताया जा सकता था

एक राम था
रावण को मार के अपनी सीता को
वापस लेकर घर तक आया था

फिर सीता को जंगल में छोड़ कर आया था

किस को पता चल रहा था
कि बीच में 
क्या क्या हो गया था

कोई बात नहीं जो हो गया था सो हो गया था
अब उसमें कुछ नहीं रह गया था

इतना कुछ लिख गये
पर अपने बारे में
कहीं भी कुछ आप नहीं कह गये
सारा का सारा प्रकाश बाहर फैला कर गये

पता भी नहीं चला
कैसे सारे अंदर के अंधकारों पर
इतनी 
सरलता से विजय पा कर गये
सब कुछ खुद ही पचा कर गये
लेकिन एक बात 
तो पक्की सभी को समझा कर गये

लिखिये तो इतना लिखिये
कि
पढ़ने वाला 
उसमें खो जाये

समझ में आ ही जाये कुछ 
तो अच्छा है
नहीं आये तो पूरा ही पागल हो कर जाये

कह नहीं पाये
इतना लम्बा क्यों लिखते हो भाई
कि
पढ़ते पढ़ते कोई सो ही जाये।


चित्र साभार: https://webstockreview.net/explore/sleeping-clipart-yawning/