उलूक टाइम्स

सोमवार, 30 सितंबर 2013

चारे ने पहुंचा दिया एक बेचारे को जेल समझ में नहीं आता है !

सच में कभी कभी
अपनी होशियारी
का हमको भी पता
नहीं हो पाता है
एक बड़ी लूट को
जब अदालत में
मान लिया जाता है
तब छोटी छोटी
पाकेट मारी का
धंधा ही सबसे अच्छा
धंधा सिद्ध हो जाता है
ना सी बी आई को
पता चल पाता है
ना ही कोई अदालत
में ले जाकर सजा
का फैसला सुनाता है
छोटी छोटी बचत से
भी एक बड़ा घड़ा
भरा जाता है
फिर एक ही बार में
कोई एक बड़ा हाथ
मारने की गलती
क्यों कर जाता है
तभी तो कहा जाता है
क्यों बिना पढ़े लिखे
कोई नेतागिरी करने
चले जाता है
अपने को तो संभाल
नहीं पाता है
इतने बड़े देश को
चलाने के ख्वाब फिर
क्यों पालना चाहता है
बहुत कुछ है खाने के लिये
पर क्या किया जाये
अगर कोई घास खा कर
जेल जाना चाहता है
एक बेचारा चारे का
मारा हो जाता है
मुख्यमंत्री हो जाने से भी
कुछ नहीं हो पाता है
अपने साथ चार दर्जन
और लोगों का बंटाधार
भी करवाता है !
जो नहीं जा पाया है
किसी भी कारण से
जेल अभी भी
भविष्य के लिये ऐसी
घटनाओं को नजीर
क्यों नहीं बनाता है
अधिक से अधिक
पढ़ा लिखा होकर
छोटा मोटा रोज का
रोज खाने की आदत
क्यों नहीं बनाता है
तीस चालीस साल
की नौकरी में वो भी
जुड़ जुड़ा कर एक
करोड़ तो हो
ही जाता है
पर ऐसा दिमाग
लगाना भी सबको
कहां आ पाता है
इसीलिये कितना बड़ा
भी हो जाये नेता
कभी एक बुद्धिजीवी
नहीं कहलाता है ।

रविवार, 29 सितंबर 2013

मुड़ मुड़ के देखना एक उम्र तक बुरा नहीं समझा जाता है

समय के साथ बहुत सी
आदतें आदमी की
बदलती चली जाती हैं
सड़क पर चलते चलते
किसी जमाने में
गर्दन पीछे को
बहुत बार अपने आप
मुड़ जाती है
कभी कभी दोपहिये पर
बैठे हुऐ के साथ
दुर्घटनाऐं तक ऐसे
में हो जाती हैं
जब तक अकेले होता है
पीछे मुड़ने में जरा सा
भी नहीं हिचकिचाता है
उम्र बढ़ने के साथ
पीछे मुड़ना कम
जरूर हो जाता है
सामने से आ रहे
जोड़े में से बस
एक को ही
देखा जाता है
आदमी आदमी को
नहीं देखता है
महिला को भी
आदमी नजर
नहीं आता है
अब आँखें होती हैं
तो कुछ ना कुछ
तो देखा ही जाता है
चेहरे चेहरे पर
अलग अलग भाव
नजर आता है
कोई मुस्कुराता है
कोई उदास हो जाता है
पर कौन क्या देख रहा है
किसी को कभी भी
कुछ नहीं बताता है
सब से समझदार
जो होता है वो
दिन हो या शाम
एक काला चश्मा
जरूर लगाता है ।

शनिवार, 28 सितंबर 2013

कल तक चाँद हो रहा था रात ही रात में दाग हो गया

सुबह के
अखबार से
सबको पता
हो गया
बच्चा बापू
से बहुत
नाराज हो गया
उसके जवान
हो जाने का
जैसे कहीं कोई
ऐलान हो गया
घर के अंदर
लग रहा था
कल ही कल
में कोई
संग्राम हो गया
अंदर ही अंदर
पक रहा हलुवा
पता नहीं कैसे
आम हो गया
चाँद के सुंदर
होने की बात
पीछे हो गई
दाग होने से
ही वो आज
बेकाम हो गया
माँ की
अंगुली छोड़
अचानक
बेटा खड़ा
हो कर
आम हो गया
विदेश गये
बापू जी
का वहाँ रहना
हराम हो गया
एक बड़ा
दाग होना
होने जा रहा था
सोने में सुहागा
अचानक कोड़ में
खाज हो गया
कुछ खास बड़ा
नहीं बस एक
छोटा सा
अध्यादेश
मुंह में शहद
हो रहा था
गले तक पहुंचते
पहुंचते मुर्गे की
हड्डी हो गया
सच्ची मुच्ची में
लगने लगा है
किसी को कुछ
कुछ हो गया
क्या था कल तक
घर का ही आदमी
घर ही घर में
क्या से क्या
आज हो गया
बेवफा तू ऐसे में
पूरी पूरी रात
चैन की नींद
कैसे सो गया ।

शुक्रवार, 27 सितंबर 2013

जो भूत से डरता है पक्का श्राद्ध करता है


सोलह दिन 
के
पित्र पक्ष 
के शुरु होते ही 
पंडित जी बहुत ही व्यस्त हो जाते हैं 

श्राद्ध सामग्री 
के लिये एक लम्बी सूची भी प्रिंट कराते हैं 

दूध दही घीं शहद 
काजू किशमिश 
बादाम फल मिठाई कपड़े लत्ते 
अच्छी क्वालिटी और अच्छी दुकान से 
लाने का आदेश साथ में दे जाते हैं 

खुद ही खा कर 
पितर लोगों तक खाना पहुंचाते हैं
इसलिये भोजन छप्पन प्रकार का 
होना ही चाहिये समझा जाते हैं 

सुबह सात बजे का 
समय देकर दिन में 
दो बजे से पहले कभी नहीं आ पाते हैं 
देरी का कारण पूछने पर
बताने में भी नहीं हिचकिचाते हैं

लोग बाग जीते जी 
अपने मां बाप के लिये 
कुछ नहीं कर पाते हैं 
इसलिये मरने के बाद उनकी इच्छाओं को पूरा 
जरूर करना चाहते हैं 

अपनी इच्छाओं को 
इसके लिये मारना भी पड़े 
तब भी नहीं हिचकिचाते हैं 
मृतात्मा के जीवन काल के शौक को
पंडित से पूरा कराते हैं 

जजमान
आप इतना भी 
नहीं समझ पाते हैं 

मरने के बाद
मरने वाले 
क्योंकि भूत बन जाते हैं 

उसके डर से
अपने को 
निकालने के लिये लोग 
कुछ भी कर जाते हैं 

कुछ दिन
हमारी भी 
चल निकलती है गाड़ी 
ऐसे लोग वैसे तो कभी हाथ नहीं आते हैं 

कुछ जजमान
पीने के 
शौक रखने वाले 
पितर के नाम से पंडित जी को अंग्रेजी ला कर दे जाते हैं 

उनके यहां
पहले जाना 
बहुत जरूरी होता है इन दिनो 
इसलिये
आपके यहां 
थोड़ा देर से आते हैं । 

चित्र साभार: https://marathi.webdunia.com/

गुरुवार, 26 सितंबर 2013

याद नहीं रहा आज से पहले खतड़ुवा कब था हुआ

बरसात जब
कुछ कम हो गई
घर की सफाई
कुछ शुरु हो गई
काम पर लगे नंदू
से पूछ बैठा यूं ही
ठंड भी शुरु
हो गई ना
हां होनी ही है
खतड़ुवा भी हो गया
उसका ये बताना
जैसे मुझे धीरे से
छोटा करते हुऐ
कहीं बहुत
पीछे पहुंचाना
याद आने लगा मुझे
पशु प्रेमी ग्वालों
का पारंपरिक पर्व
का हर वर्ष अश्विन
माह की संक्रांती
को मनाना और
याद आया
भूलते चले जाना
घास का एक
त्योहार पशुधन
की कुशलता और
गौशालाऐं गाय से
भरी रहने की कामना
गाय के मालिकों की
वंशवृद्धि होती रहे
गाय का सम्मान भी
करती रहे की भावना
त्योहार मनाना
ना होता हो जैसे
कोई खेल होता हो
भांग के पौंधे के एक
सूखे से डंडे को
सुबह से घास फूल
पत्तियों से सजाना
गाय के जाने के
रास्ते के चौराहे पर
घास के चार हाथ पैर
बनाकर फुलौरी
एक बनाना
शाम ढले सपरिवार
उस आकृति
को आग लगाना
सुबह बनायी गई
सजायी गई
लकड़ी से आग को
पीटते चले जाना
'भैल्लो जी भैल्लो
भैल्लो खतड़ुवा
भाग खतड़ुवा भाग'
साथ साथ चिल्लाते
भी चले जाना
जली आग का एक
हिस्सा ले जा कर
गाय के गौठ और
घर पर ला
कर घुमाना
पीली ककड़ी
काट कर बांटना
और मिलकर खाना
फिर याद आया
खो जाना शहर के
पेड़ और घास
घर से गायों
का रंभाना
गायों का
कारें हो जाना
दूध का
यूरिया हो जाना
हर हाथ का
कान से जा कर
चिपक जाना
सड़क पर
चलते चलते
बोलते चले जाना
पड़ोसी की
मौत की खबर
अखबार से
पता चल पाना
ऐसे में बहुत
 बड़ी बात है
खतड़ुऐ की याद
भर आ जाना ।