उलूक टाइम्स

सोमवार, 30 जून 2014

चिट्ठियाँ हैं और बहुत हो गई हैं

चिट्ठियाँ  इस जमाने की 
बड़ी अजीब सी हो गई हैं 

आदत रही नहीं 
पड़े पड़े पता ही नहीं चला एक दो करते 
बहुत बड़ा एक कूड़े का ढेर हो गई हैं 

कितना लिखा क्या क्या लिखा 
सोच समझ कर लिखा तौल परख कर लिखा 

किया क्या जाये अगर पढ़ने वाले को ही 
समझ में नहीं आ पाये 
कि 
उसी के लिये ही लिखी गई हैं 

लिखने वाले की भी क्या गलती 
उससे उसकी नहीं बस अपनी अपनी ही
अगर कही गई है 

ऐसा भी नहीं है कि पढ़ने वाले से पढ़ी ही नहीं गई हैं 

आखों से पढ़ी हैं मन में गड़ी हैं 
कुछ नहीं मिला समझने को तो पानी में भिगो कर
निचोड़ी तक गई हैं 

उसके अपने लिये कुछ नहीं मिलने के कारण
कोई टिप्पणी भी नहीं करी गई है 

अपनी अपनी कहने की 
अब एक आदत ही हो गई है 
चिट्ठियाँ हैं घर पर पड़ी हैं बहुत हो गई हैं 

भेजने की सोचे भी कोई कैसे ऐसे में किसी को 
अब तो बस उनके साथ ही 
रहने की आदत सी हो गई है ।

रविवार, 29 जून 2014

काम की बात काम करने वाला ही कह पाता है

पहली तारीख को
वेतन की तरह
दिमागी शब्दकोश
भी जैसे कहीं से
भर दिया जाता है
महीने के अंतिम
दिनो तक आते आते
शब्दों का राशन
होना शुरु हो जाता है
दिन भर पकता है
बहुत कुछ
ऊपर की मंजिल में
पर शाम होते ही
कुछ कुलबुलाना
शुरु हो जाता है
इसीलिये शायद
अपने आप को
अच्छी बातों में
व्यस्त रखने को
कहा जाता है
सूखे हुऐ पेड़ के
ठूँठ पर बैठे हुऐ
‘उलूक’ से कुछ भी
नहीं हो पाता है
पता नहीं किस तरह
की बेरोजगारी ने
जकड़ा हुआ है उसे
हर शख्स के चेहरे में
उसे एक आईना
लगा हुआ दूर से
ही नजर आता है
कुछ कहने ना कहने
की बात ही नहीं उठती
देखने के लिये उसे
अपना ही चेहरा
बस नजर आता है
हर शाख पै उल्लू बैठा है
किसलिये और क्यों
कहा जाता है
इस बात को इसी तरह
वो बहुत अच्छी तरह
से समझ पाता है
शाम होते होते
दिन भर के पकाये
हुऐ कुछ कुछ में से
कुछ यहाँ बियाबान में
परोसने के लिये
चला आता है
वैसे भी एक ही जैसी
चीजों को दिन भर
देख देख कर कोई भी
बोर हो जाता है
कहते हैं माहौल
बदलने से थोड़ा सा
मूड भी हल्का
हो ही जाता है ।

शनिवार, 28 जून 2014

आओ फलों के पेड़ हो जायें

आओ
फलों के
पेड़ हो जायें

खट्टे मीठे
फलों की
खुश्बुओं
से लद जायें

कुछ
तुम झुको
थोड़ा बहुत
कुछ हम भी
झुक जायें

अकड़ी
हुई सोच पर
कुछ चिकनाई लगायें

एक प्राण
निकला हुआ
शरीर ना बनकर
जिंदादिली से
जिंदा हो जायें

तैरना
अपने आप रहा
डूबने
को उतर जायें

एक
सूखी लकड़ी
होने से बचें

कहीं
कुछ हरा
कर जायें
कहीं
कुछ भरा
कर जायें

आओ
एक बार
फिर लौट लें

उसी
रास्ते पर
फूलों से भरे
बागों के
कुछ चित्र
फिर खींच
कर लायें

एक
रास्ते के
एक कारवाँ के
हाथ पैर हो जायें

जोर
आजमाईश
पर जोर ना लगायें

उसकी
हथेली से
अपनी हथेली मिलायें

नमस्कार
का भाव हो जायें

आओ
फिर से
कोशिश करें

थोड़ा
तुम आगे आओ
थोड़ा
हम आगे आ जायें

कड़क
लकड़ी
बनने से बचें

झूलती
गुलाब की
फूलों भरी
एक डाल हो जायें

आओ
गले मिलें
गिले शिकवे
मिटायें

कारवाँ
बढ़ रहा है

बटें और
बांटे नहीं
पेड़ पर एक
लता बन कर
लिपट जायें

थोड़ा
हम करें
थोड़ा
तुम करो

बाकी
सब के
मिलन के लिये
मैदान सजायें

आओ
फलों के
पेड़ हो जायें ।

शुक्रवार, 27 जून 2014

बेकार की नौटंकी छोड़ अब कभी प्यार की बात भी कर


बात करना 
इतना भी जरूरी नहीं 
कभी काम की बात भी कर 

बहुत कर चुका है 
बेकार की बातें 
कभी सरकार की बात भी कर 
 
जीना मरना 
सोना उठना खाना पीना 
सबको पता है 
इसकी उसकी छोड़ कर कभी 
अपनी और अपने
घरबार 
की बात भी कर 

कान पक गये 
बक बक सुनते सुनते तेरी
किसी एक दिन 
चुप चाप रहने रहाने की बात भी कर 

सब जगह होता है 
सब करते हैं 
पुराने तरीकों को छोड़ 
कुछ नये तरीके से 
करने कराने वालों की बात भी कर 

खाली बैठे 
बात ही बात में 
कितने दिन और निकालेगा 
कुछ अच्छी बात करने की सोच 
कुछ नई बातें करने की बात
ईजाद भी कर 

तंग आ चुका है 
श्मशान का अघोरी तक
लाशों की बात छोड़ 
कभी मुर्दों के जिंदा हो जाने की बात भी कर

‘उलूक’  बेकार की नौटंकी छोड़ अब
कभी प्यार की बात भी कर ।

चित्र साभार: 
https://www.disneyclips.com/

गुरुवार, 26 जून 2014

एक बहुत बड़े परिवार में एक का मरना खबर नहीं होता है

किसलिये मायूस
और किसलिये
दुखी होता है
सब ही को बहुत
अच्छी तरह से
पता होता है
जिसका कोई
नहीं होता है
उसका खुदा
जरूर होता है
अपनी बात को
अपने ही खुदा
से क्यों नहीं
कभी कहता है
उसका खुदा तो
बस उसके लिये
ही होता है
खून का रंग भी
सब ही का
लाल जैसा
ही तो होता है
अच्छे का
खुदा अच्छा
और बुरे का
खुदा बुरा
नहीं होता है
आदमी का खून
आदमी ही
सुखाता है
इस तरह का
कुछ बहुत
ज्यादा दिन
भी नहीं चल
पाता है
क्यों मायूस
और दुखी
इस सब
से होता है
सब को बस
मालूम ही नहीं
बहुत अच्छी
तरह से
पता होता है
जिसका कोई
नहीं होता है
उसका खुदा
जरूर ही होता है
रोज मरता है
कोई कहीं ना कहीं
इस दुनियाँ में
घर में मर गया
कोई किसी के
से क्या होता है
किसी जमाने में
खबर आती थी
मर गया कोई
मरे मरे हों सब जहाँ
वहाँ खबर करने से
भी क्या होता है
उठी लहर के साथ
उठ बैठने वाला
फिर खड़ा होने को
लौट गया होता है
कत्ल होने से
रोज डरता है ‘उलूक’
मारने वाले का खुदा
उसके साथ होता है
जिसका कोई
नहीं होता है
उसका खुदा तो
जरूर होता है
मगर उसका
खुदा उसका
और इसका खुदा
बस इसका खुदा
ही होता है ।