उलूक टाइम्स

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2015

दो चार दिन और पश्चिमी विक्षोभ पूरब पर भारी रहेगा

जरूरी है
क्या जीतना
हार भी गया
तब भी
क्या होगा
एक तो
पक्का हारेगा
और एक
जीतेगा भी
एक बीच में
रह कर
तमाशा भी देखेगा
उसके बाद
कुछ होगा
या नहीं होगा
ये किसी को
भी पता नहीं होगा
ये बस आज ही
की बात नहीं है
जब से शुरु हुआ है
हारना और जीतना
तब से लगता रहा है
कुछ ऐसा ही होगा
ऐसा नहीं भी होगा
तो वैसा जरूर होगा
जीतने वाला बहुत
समझदार होगा
हारने वाला
बेवकूफ होगा
जिताने वाले के पास
बड़ा दिमाग होगा
हराने वाले के पास
हरा दिमाग होगा
बड़ा दिमाग कब
हरा दिमाग होगा
और हरा दिमाग कब
बड़ा दिमाग होगा
ये किसे पता होगा
इसे पता करना ही
बहुत बड़ा काम होगा
हर बार की तरह
इस बार भी होगा
एक ने जीतना होगा
एक ने हारना होगा
जिताने वाले के
पास इनाम होगा
हराने वाले के
पास इनाम होगा
हारना जीतना पहली नहीं
पिछली कई बार की तरह
ही इस बार भी होगा
बस देखना इतना ही है
जो होता आ रहा है
इस देश में
क्या वही इस बार होगा
वही होता रहेगा
और हर बार होगा
तेरा क्या होगा
तुझे मालूम होगा
मेरा क्या होगा
उसे मालूम होगा
उसका क्या होगा
किस को पता होगा
कहने वाला कह रहा है
इस समय भी
कुछ ना कुछ
उस समय भी
कुछ ना कुछ
कह रहा होगा
तेरा देश तेरा रहेगा
मेरा देश मेरा रहेगा
ये रहेगा तो ये करेगा
वो रहेगा तो वो करेगा
झंडा ऊँचा रहे हमारा
हमसे कहो कहने के लिये
ये भी कहेगा और
वो भी कहेगा ।

चित्र साभार: clipartof.com

बुधवार, 4 फ़रवरी 2015

कल फोड़ने के लिये रखे गये पठाकों को कोई पानी डाल डाल कर आज धो रहा है

फेशियल किया हुआ
एक एक चेहरा
चमक चमक कर
फीका होना
शुरु हो रहा है
उन सब चेहरों
पर सब कुछ
जैसे बिना जले
भी धुआँ धुआँ
सा हो रहा है
नजर फिसलना
शुरु हो गई है
चेहरे से
चेहरे के ऊपर
रखा हुआ चेहरा
देखना ही
दूभर हो रहा है
दिखने ही
वाला है सच में
सच का झूठ
और झूठ का सच
ऐसा जैसा ही
कुछ हो रहा है
ऐसे के साथ
वैसा ही कुछ कुछ
अब बहुत साफ साफ
दिखाई भी दे रहा है
उधर खोद चुके हैं
खाई खुद के लिये
इधर भूल गये शायद
उनका अपना ही
खोदा हुआ कुआँ
भरा भरा सा हो रहा है
उड़ गई है नींद रातों की
कोई कह नहीं पा रहा है
परेशान हो कर
दिन में ही कहीं
किसी गली में
खड़े खड़े बिजली के
खम्बे से सहारा
ले कर सो रहा है
गिर पड़ा है मुखौटा
शेर का मुँह के ऊपर से
बिल्ले ने लगाया हुआ है
साफ साफ पता
भी हो रहा है
सिद्धांतो मूल्यों की जगह
गाली गलौच करना
बहुत जरूरी हो रहा है
बहुत ज्यादा हो गया
बहुत कुछ उस की ओर को
अब इसकी ओर भी कुछ
होने का अंदेशा हो रहा है
जो भी हो रहा है ‘उलूक’
तेरे हिसाब से बहुत ही
अच्छा हो रहा है
दो चार दिन की बात है
पता चल ही जायेगा
दीदे फाड़ कर
बहुत हंसा वो
अब दहाड़े मार मार
कर रो रहा है ।

चित्र साभार: www.123rf.com

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2015

किसी को भी नहीं दे देना कुछ भी सभी कुछ उसी को दे आ

उसके कहने
पर चला जा
इसको दे आ
इसकी मान ले
बात और
उसको दे आ
चाँद तारों को देख
रोशनी के ख्वाब बना
अपनी गली के
अंधेरों को सपनों
में ही भगा
खुद कुछ मत सोच
इसकी या उसकी
कही बात को नोच
कपड़े पहन कर
संगम में नहा
थोड़ी घंटी थोड़ा
शंख भी बजा
झंडा रखना
जरूरी है
डंडा चाहे पीठ
के पीछे छुपा
तेजी से बदल रही
दुनियाँ के नियम
कानूनो को समझने
में दिमाग मत लगा
जहाँ को जाती
दिखे भीड़
कहीं से भी घुस
कर सामने से आजाने
का जुगाड़ लगा
जिस घर में घुसे
अपना ही घर बता
जिस घर से चले
उस में आग लगाने
के लिये एक पलीता
पहले से छोड़ जा
हारना सच को ही है
पता है सबको
झूठ के हजार पोस्टर
हजार जगहों पर चिपका
बहुत कुछ देख लेता है
‘उलूक’ रात के अंधेरे में
उसके रात को निकलने
पर सरकारी पाबंदी लगवा
दिमाग से कुछ कुछ देकर
आधा अधूरा मत बना
बिना सोचे समझे
सब कुछ देकर
पूरा बनाने का
गणित लगा
मरना तो है ही
एक ना एक दिन
सभी को कुछ तो
समझदारी दिखा
दो गज जमीन
खोद कर
पहले से कहीं ना
कहीं रख कर जा ।

चित्र साभार: eci.nic.in

सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

पकी पकाई खबर है बस धनिया काट कर ऊपर से सजाया है



बच्चों
की 
जेल से

बच्चे 
फरार 
हो गये हैं 

ऐसा 
खबरची 
खबर ले कर 
आज आया है 

देख लेना
चाहिये 
कहीं

उसी
झाडू‌ वाले
ने
फर्जी 
मतदान करने 
तो
नहीं बुलाया है 

अपनी
जेब पर 
चेन लगाकर 
बाहर और अंदर 
दोनो तरफ से 
बंद करवाया है 

उसकी
खुली जेब 
से
झाँक रहे नोटों 
पर

कहानी
बना कर
चटपटी 
एक लाया है 

सवा करोड़ 
चिट्ठियों में
कहाँ 
कुछ खर्च होता है 

बहुत 
सस्ते कागज 
में
सरकारी 
छापे खाने में 

श्रमदान 
करने वाले 
कर्मचारियों 
को

काम पर 
लगा कर 
छपवाया है 

बहुत कुछ 
किया है 
बहुत कुछ 
करवाया है 

दिखाना 
जरूरी 
नहीं होता है 

इसलिये
कुछ 
कहीं नहीं 
दिखाया है 

आदमी छोड़िये 
भैंसे भी
कायल 
हो चुकी हैं 

बड़ी बात है
बिना लाठी 
हाथ में लिये 
भैंस को
अपना 
बनाया है 

जादू है 
जादूगर है 
जादूगरी है 
तिलिस्म है 

छोड़ कर
जाने वाले
इतिहास 
हो गये हैं 

हर
किसी को 
इधर से हो
या 
उधर से हो 

अपने में
घुलाया 
और
मिलाया है 

मिर्ची
तुमको 
भी लगती है 
इस
तरह की 
बातें पढ़कर 

कोई नई 
बात नहीं है 
मिर्ची हमें 
भी
लगती है 

अच्छी
बातों का 
अच्छा प्रचार 
पढ़कर 

अच्छे लोगों
का
बोलबाला है

बुरों को 
लिखने
लिखाने
का
रोग लगवाया है

क्या करें 
आदतन 
मजबूर हैं 

देखते हैं
रोज 
अपने आस पास 
के
घुन लगे हुऐ 
गेहूँ के बीजों
को 

यहाँ उगना 
मुश्किल 
होता है जिनका 

रेगिस्तान
में 
उसी तरह के
बीजों 
से

कैसे
 हरा पौँधा 
उगता हुआ
दिखाया है 

‘उलूक’ 
पीटता रहता है 
फटे हुऐ ढोलों को 

गली मुहल्ले के 
मुहानों पर 

कई
सालों से 
कौओं ने 
कबूतरों से 

सभी
जलसों में
देश प्रेम का भजन 
गिद्धों के सम्मान 
में बजवाया है । 

चित्र साभार: homedesignsimple.info

रविवार, 1 फ़रवरी 2015

किसी दिन ना सही किसी शाम को ही सही कुछ ऐसा भी कर दीजिये


अपनी ही बात अपने ही लिये 
रोज ना भी सही 
कभी तो खुल के कह ही लीजिये 

कोई नहीं सुनता इस गली में कहीं
अपनी आवाज के सिवा 
किसी और की आवाज 

खुद के सुनने के लिये ही सही 
कुछ तो कह दीजिये 

कितना भी हो रहा हो शोर उसकी बात का 
अपनी बात भी उसकी बातों के बीच 
हौले हौले ही सही कुछ कुछ ही कहीं 
कुछ तो कह दीजिये 

जो भी आये कभी मन में चाहे अभी 
निगलिये तो नहीं उगल ही दीजिये 

तारे रहते नहीं कहीं भी जमीन पर 
बनते बनते ही उनको 
आकाश की ओर हो लेने दीजिये 

मत ढूँढिये जनाब ख्वाब रोशनी के यहीं 
जमीन की तरफ नीचे यहीं कहीं 
देखना ही छोड़ दीजिये 

आग भी है यहीं दिल भी है यहीं कहीं 
दिलजले भी हैं यहीं 
कोयलों को फिर से चाहे जला ही लीजिये 

राख जली है नहीं दुबारा कहीं भी कभी 
जले हुऐ सब कुछ को जला देख कर 
ना ही कुरेदिये 

उड़ने भी दीजिये 
सब कुछ ना भी सही 
कुछ कुछ  तो कभी कह ही दीजिये 

अपनी ही बात को
किसी और के लिये नहीं 
अपने लिये ही सही 
मान जाइये कभी कह  भी दीजिये ।

चित्र साभार: galleryhip.com