उलूक टाइम्स

रविवार, 31 मई 2015

कहे बिना कैसे रहा जाये एक दिन की छुट्टी मना कर फिर शुरु हो जा रहा हूँ



महीना
बीत रहा है 
कल
कुछ कहा नहीं 

क्या
आज भी कुछ 
नहीं कह रहा है 

कहते हुऐ
तो आ रहा हूँ 

आज से नहीं
एक 
जमाने से गा रहा हूँ 

मेंढको के
सामने 
रेंक रहा हूँ 
गधों के पास
जा जा 
कर टर्रा रहा हूँ 

इसकी
सुन के आ रहा हूँ 
उसकी
बात बता रहा हूँ 

पन्ना पन्ना
जोड़ रहा हूँ 
एक मोटी सी 
किताब
बना रहा हूँ 

रोज ही
दिखता है कुछ 
रोज ही
बिकता है कुछ 

शब्दों से
उठा रहा हूँ 
समझने की कोशिश 
करता रहा हूँ 

तुझको
कुछ
तब भी 
नहीं
समझा पा रहा हूँ 

कल का दिन
बहुत 
अच्छा दिन था 

कल की बात 
आज बता रहा हूँ 

एक दिन की
दफ्तर 
से छुट्टी लिया था 

घर में
बैठे बैठे 
मक्खियाँ
गिन रहा था 

अखबार
लेने ही 
नहीं गया था 

टी वी रेडियो
भी 
नहीं खुला था 

वहाँ की रियासत
का 
वो नहीं दिखा था 

यहाँ की रियासत
का 
ये नहीं मिला था 

छोटे छोटे
राजाओं की 
राजाज्ञाओं से 

कुछ देर
ही सही 
लगा
बच जा रहा हूँ 

बहुत
मजा आ रहा था 
महसूस
हो रहा था 

रोम में
लगी है 
लगती
रहे आग 

एक दिन
का ही सही 
नीरो बन कर
बाँसुरी 
चैन की
बजा रहा हूँ ।

चित्र साभार : www.pinstopin.com