उलूक टाइम्स

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

बंदरों के नाटक में जरूरी है हनुमान जी और राम जी का भी कुछ घसीटा

बंदर ने बंदर
को नोचा और
हनुमान जी ने
कुछ नहीं सोचा
तुझे ही क्यों
नजर आने
लगा इस सब
में कोई लोचा
भगवान राम जी
के सारे लोगों
ने सारा कुछ देखा
राम जी को भेजा
भी होगा जरूर
चुपचाप कोई
ना कोई संदेशा
समाचार अखबार
में आता ही है हमेशा
बंदर हो हनुमान हो
चाहे राम हो
आस्था के नाम पर
कौन रुका कभी
और किसने है
किसी को रोका
मौहल्ला हो शहर हो
राज्य हो देश हो
तेरे जैसे लोगों
ने ही
हमेशा ही
विकास के पहिये
को ऐसे ही रोका
काम तेरा है देखना
फूटी आँखों से
रात के चूहों के
तमाशों को
किसने बताया
और किसके कहने
पर तूने दिन का
सारा तमाशा देखा
सुधर जा अभी भी
मत पड़ा कर
मरेगा किसी दिन
पता चलेगा जब
खबर आयेगी
बंदरों ने पीटा
हनुमान ने पीटा
और उसके बाद
बचे खुचे उल्लू

उलूक को राम
ने भी जी भर कर
तबीयत से पीटा ।

चित्र साभार:
www.dailyslave.com

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2015

आ जाओ अलीबाबा फिर एक बार खेलने के लिये चोर चोर


रोज जब चोरों से सामना होता है 
अलीबाबा तुम बहुत याद आते हो

सारे चोर खुश नजर आते हैं
जब भी चोर चोर खेल रहे होते हैं
और जोर जोर से चोर चोर चिल्लाते हैं

चोर अब चालीस ही नहीं होते हैं
मरजीना अब नाचती भी नहीं है

अशर्फियाँ तोलने के तराजू
और अशर्फियाँ भी अब नहीं होते हैं

खुल जा सिमसिम अभी भी कह रहे हैं लोग
खड़े हैं चट्टानों के सामने से
इंतजार में खुलने के किसी दरवाजे के

अलीबाबा बस एक तुम हो
कि दिखाई ही नहीं देते हो

आ भी जाओ 
इससे पहले हर कोई
निशान लगाने लगे दरवाजे दरवाजे
इस देश में

और पैदा होना शुरु हों गलतफहमियाँ
लुटने शुरु हों घर घर में ही घर घर के लोग

डर अंदर के फैलने लगें बाहर की तरफ
मिट्टी घास और पेड़
पानी बादल और काले सफेद धुऐं में भी

रहम करो
ले आओ कुछ ऐसा जो ले पाये जगह
खुल जा सिमसिम की
और पिघलना शुरु हो जायें चट्टाने

बहने लगे वो सब
जो मिटा दे सारे निशान और पहचान

सारी कायनात एक हो जाये
और समा जाये सब कुछ कुछ कुछ ही में

आ भी जाओ अलीबाबा
इस से पहले कि देर हो जाये 
और ‘उलूक’ को नींद आ जाये
एक नये सूरज उगने के समय ।

चित्र साभार: www.bpiindia.com

रविवार, 25 अक्तूबर 2015

राम ही राम हैं चारों ओर हैं बहुत आम हैं रावण को फिर किसलिये किस बात पर जलाया


विजया दशमी के जुलूस में
भगदड़ मचने पर 
पकड़ कर थाने लाये गये
दो लोगों से 
जब पूछताछ हुई 

एक ने अपने को लंका का राजा रावण बताया 

दस सिर तो नहीं थे 
फिर भी हरकतों से सिर से पाँव तक
रावण जैसा ही नजर आया 

और दूसरे की पहचान
बहुत आसानी से 
अयोध्या के भगवान राम की हुई 

जिनको बिना देखे भी 
सारे के सारे रामनामी दुपट्टे ओढ़े भक्तों ने 
आँख नाक कान बंद कर के 
जय श्री राम का नारा जोर शोर से लगाया 

दोनो ने अपना गाँव 
इस लोक में नहीं 
परलोक में कहीं होना बताया 

मजाक ही मजाक में उतर गये 
उस लोक से इस लोक में 
इस बार दशहरा 
पृथ्वी लोक में आकर
खुद ही देखने का प्लान 
उन्होने खुद नहीं 
उनके लिये ऊपर उनके ही
किसी चाहने वाले ने बनाया 
ऊपर वालों ने नीचे आने जाने में अड़ंगा भी नहीं लगाया 

भीड़ से पल्ला पड़ा जब 
राम और रावण का नीचे उतर कर 

भीड़ में से किसी ने अपने आप को राम का भाई 
किसी ने चाचा 
किसी ने बहुत ही नजदीक का ताऊ बताया 

रावण के बारे में पूछने पर 
किसी ने कोई जवाब नहीं दिया 
इसने उससे और उसने किसी और से
पूछने की राय दे कर अपना 
मुँह इधर और उधर को किया 
सभी ने अपना अपना पीछा रावण को देखते ही छुड़ाया 

राम की बाँछे खिली 
सामने खड़ी सारी जनता से उनकी 
खुद की रिश्तेदारी मिली 

और 
रावण बेचारा
सोच में पड़े खड़ा रह पड़ा 
किसलिये और किस मुहूर्त में 

राम के साथ रामराज्य की ओर 
ऊपर से नीचे एक बार 
और 
अपनी जलालत देखने निकल पड़ा ? 

चित्र साभार: www.shutterstock.com

बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

शव का इंतजार नहीं शमशान का खुला रहना जरूरी होता है

हाँ भाई हाँ
होने होने की
बात होती है
कभी पहले सुबह
और उसके बाद
रात होती है
कभी रात पहले
और सुबह उसके
बाद होती है
फर्क किसी को
नहीं पड़ता है
होने को जमीन से
आसमान की ओर
भी अगर कभी
बरसात होती है
होता है और कई
बार होता है
दुकान का शटर
ऊपर उठा होता है
दुकानदार अपने
पूरे जत्थे के साथ
छुट्टी पर गया होता है
छुट्टी लेना सभी का
अपना अपना
अधिकार होता है
खाली पड़ी दुकानों
से भी बाजार होता है
ग्राहक का भी अपना
एक प्रकार होता है
एक खाली बाजार
देखने के लिये
आता जाता है
एक बस खाली
खरीददार होता है
होना ना होना
होता है नहीं
भी होता है
खाली दुकान को
खोलना ज्यादा
जरूरी होता है
कभी दुकान
खुली होती है और
बेचने के लिये कुछ
भी नहीं होता है
दुकानदार कहीं
दूसरी ओर कुछ
अपने लिये कुछ
और खरीदने
गया होता है
बहुत कुछ होता है
यहाँ होता है या
वहाँ होता है
गन्दी आदत है
बेशरम ‘उलूक’ की
नहीं दिखता है
दिन में उसे
फिर भी देखा और
सुना कह रहा होता है ।

चित्र साभार: www.canstockphoto.com

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2015

बहुत बार मन गधा गधा हो जाता है गधा ही बस अपना सा लगता है और बहुत याद आता है

कई बार
लिखते समय
कई संदर्भ में

याद
आये हो
गधे भाई

बहुत दिन
हो गये

मुलाकात
किये हुऐ

याद किये हुऐ
बात किये हुऐ

कोई खबर
ना कोई समाचार

आज
तुम्हारी याद
फिर से है आई

जब से सुनी है

जानवर के
चक्कर में

आदमी की
आदमी से हुई है
खूनी रक्तरंजित हाथापाई

आये भी
कोई खबर कैसे तुम्हारी

ना किसी
खबरची ने
ना ही किसी
अखबार ने

तुममें
कोई दिलचस्पी

आज तक
महसूस ही
नहीं हुआ
कि हो कभी दिखाई

मुलाकात
होती तो
होती भी कैसे

ना
अरहर की दाल से ही
तुम्हें कुछ लेना देना

ना
मुर्गे से ही
होता है तुम्हारा कभी
कुछ सुनना कहना

गाय
और भैंस में से

एक भी
नहीं कही
जा सकती तुम्हारी

नजदीक की
या बहुत दूर की बहना

बस
तालमेल दिखता है
तुम्हारा अगर कहीं तो

सिर्फ
और सिर्फ
अपने धोबी से

कुछ गंदे
कुछ मैले कुचैले
कुछ साफ सुथरे धुले हुऐ

कपड़ों के थैले से

अब
ऐसा भी होना
क्या होना

देश के
किसी भी
काम के नहीं

शरम
तुम्हें पता नहीं
कभी आई की नहीं आई

घास खाना
हिनहिनाना
और बस
खड़े खड़े ही सोना

ना खाने के काम के
ना दिखाने के काम के

चुनाव चिन्ह
ही बन जायें
ऐसा जैसा भी
तुमसे नहीं है
कभी भी होना

कितना
अच्छा है
ना भाई गधे

ना तुम्हें
किसी ने पूछना

ना तुम्हें
छेड़ने के कारण

किसी पर
किसी को
काली स्याही भी
कभी फेंकने के लिये

किसी को
ढकोसला
कर कर के रोना

आ भी जाया करो
दिखो ना भी कहीं
याद में ही सही

गर्दभ मयी
हो गया हो
जहाँ सब कुछ

बचा हुआ ही

ना लगे
कि है कहीं कुछ

तुमसे
गले मिल कर
ढाड़े मार मार कर

आज तो
‘उलूक’
को भी है

देश के नाम पर

देशभक्ति दिखाने

और
ओढ़ने
के लिये रोना ।

चित्र साभार: www.cliparthut.com