उलूक टाइम्स

रविवार, 25 मार्च 2018

बकवास ही तो हैं ‘उलूक’ की कौन सा पहेलियाँ है जो दिमाग उलझाने की हैं

समझदारी
समझदारों
के साथ में
रहकर

समझ को
बढ़ाने की है
पकाने की है
फैलाने की है

नासमझ
कभी तो
कोशिश कर
लिया कर
समझने की

नासमझी
की दुनियाँ
आज बस
पागल हो
चुके किसी
दीवाने की है

कुछ खेलना
अच्छा होता है
सेहत के लिये

कोई भी हो
एक खेल
खेल खेल में

खेलों की
दुनियाँ में
खेलना
काफी
नहीं है
लेकिन

ज्यादा
जरूरत
किसी
अपने को
अपना
मन पसन्द
एक खेल
खिलाने
की है
जिसकी
ताजा एक
पकी हुई
खबर
कहीं भी
किसी एक
अखबार के
पीछे के
पन्ने में
ही सही
कुछ ले दे के
छपवाने की है

कौन
आ रहा है
कौन
जा रहा है
लिखना बन्द
किये हुऐ
दिनों में
बड़ी हुई
इतनी भीड़
खाली पन्नों में
सर खपाने की है

कहना
सुनना
चलता रहे
कागज का
कलम से
कलम का
दवात से

बकवास
ही तो हैं
‘उलूक’ की
कौन सा
पहेलियाँ हैंं
जो दिमाग
उलझाने की हैं ।

मंगलवार, 20 मार्च 2018

जरूरी है सबूत होने ना होने का रद्दी निकाल कबाड़ निकाल सुनना अच्छा लगता है दिनों के बाद

आदतें
बदलती नहीं हैं
छोटे से
अंतराल में

सिमट
जाती हैं
खोल में किसी
खुद के
बनाये हुऐ
आभास
देने भर
के लिये बस

अस्तित्व
होने से लेकर
नहीं होने की
जद्दोजहद जारी
रहती है हमेशा

मजबूरियाँ
जकड़ लेती हैं
अँगुलियों को
लेखनी के
आभास भर
के साथ भींच कर

लिखता
चला जाता है
समय
रेंगता हुआ
सब कुछ हमेशा

रेत पर
धुएं में
या फिर
उड़ती हुई
पतझड़
से गिरी
सूखी पत्तियों
के ढेर पर

कई
सारे चित्र
यादों से
निकल कर
ओढ़ लेते हैं
फूल मालायें

होने से
ना होने तक
की दौड़ में
फिसल कर
भीड़ में से
ना जाने कब

कौन गिनता है
चित्रकारों के
काफिलों में
कैनवासों से
निकलकर
बहते
बिखरते रंगों को

किसे
फिक्र होती है
कूँचियों के
निर्जीव झड़ते
टूटते बालों की
उतरते
रंगों में सिमटते
घुलते बिखरते
इंद्रधनुषों की

नजर का
जरूरी नहीं
होता है
टिके रहना
आसमान पर
चमकते
किसी तारे पर
हमेशा के लिये

रोशनी
होती ही है
लम्बी चमक
के बाद
धुँधलाने के लिये

सब कुछ
बहुत जल्दी
सिमट जाता है
छोटे छोटे
बाजारों में

मेले
रोज ही
लगा करते हैं
यहाँ नहीं
वहाँ नहीं
तो कहीं
और सही

आज
कल परसों
रोज नहीं भी तो
बरसों में कभी
एक बार ही  सही

आदतें
बदलती नहीं हैं
छोटे से अंतराल में
सिमट जाती हैं
खोल में किसी
खुद के बनाये हुऐ

अपने
होने ना होने
का आभास
खुद के लिये
जरूरी है ‘उलूक’

याद
करने के लिये
अपने हाथ में
चिकोटी
काट लेना
बहुत जरूरी 
होता है कभी कभी ।

चित्र साभार: https://www.pinterest.co.uk/

गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

सुबह का अखबार पकाये हुऐ ताजे समाचार और प्रिय कागा तेरी सुरीली आवाज एक जैसी आदतों में शामिल आदतें

काँव काँव
कर्कश होती है

कभी कह भी
दिया होता है
किसी ने तो

ऐसा भी तो
नहीं होता है
कि मुँडेर पर
आना ही
छोड़ दो
निर्मोही

मोह
होता ही है
भंग
होने के लिये

चल
लौट आ
और बैठ ले
सुबह सवेरे
पौ फटते ही

मेरे ही दरवाजे
के सामने के
पेड़ की किसी
एक डाल पर

कर लेना
जैसी मन
चाहे आवाज

एक नहीं कई
होती हैं बातें
ढल जाती हैं
कब आदतों में

पता तब चलता है
जब उड़ जाता है

कोई
तेरी तरह का
अचानक
अनजानी
दिशा को
नहीं लौटने की
कसम
रख कर जैसे
आसपास कहीं

सन्नाटा मन
मोहक होता
होगा बहुत
जैसा भ्रम

तेरे जैसे काले
बेसुरी मानी
जाने वाली
आवाज वाले के

मुँह मोड़ लेने के
बाद ही टूटता है

माया मोह
समझ में
आ जाना
बहुत बड़ी
बात है रे

तू समझ लिया
और उड़ लिया

‘उलूक’
बैठा है
अभी भी
इन्तजार में

अखबार के
समाचार के
रंग ढंग
बदलने के

मानकर
कि कुछ दिन
चुपचाप

आँख बन्द कर
बैठने के बाद

सूरज
सुबह का
नहाया धोया सा

चमकदार
दिखना
शुरु हो
जाता है ।

चित्र साभार: http://www.alamy.com

मंगलवार, 13 फ़रवरी 2018

एक पन्ने पर कुछ देर रुक कर अच्छा होता है आवारा हो लेना पूरी किताब लिखनी जरूरी है कहाँ लिखा होता है

दरवाजा
खोल कर
निकल लेना
बेमौसम
बिना सोचे समझे

सीधे सामने के
रास्ते को
छोड़ कर कहीं

मुड़ कर
पीछे की ओर
ना चाहते हुऐ भी

जरूरी
हो जाता है
कभी कभी

जब हावी
होने लगती
है सोच
आस पास की
उड़ती हवा की

यूँ ही
जबर्दस्ती
उड़ा ले जाने
के लिये
अपने साथ
लपेटते हुए
अपनी सोच
के एक
आकर्षक
खोल में

अपने अन्दर
के 'ना' को
नकारने में माहिर

बहुत सारे
साफ हाथों से
सुलेख में
'हाँ' लिखे हुऐ
पोस्टर बैनर
ली हुयी
भीड़ के बीच

'नहीं' को
बचा ले जाने
की कोशिशें
नाकाम होनी
ही होती हैं

अच्छा होता है
नजर हटा लेना
अपने अन्दर
जल रही
आग से
बने कोयले
और राख से
पारदर्शी आयने
हो चुके चेहरों से

और देख लेना
आरपार
सड़क पर खड़े एक
जीवित शरीर को
आत्मा समझ कर
दूर कहीं
हरे भरे पेड़ पौंधों
उड़ते हुऐ चील कौवों
या क्रिकेट खेलते हुऐ
खिलदंडों से भरे
मैदान से उड़ती
हुई धूल को

कविताओं के शोर में
दब गयी आवाज को
बुलन्द कर ले जाना
आसान नहीं होता है

चलती साँस को
कुछ देर रोक कर
धीरे से छोड़ने के लिये
इसीलिये कहा जाता
होगा शायद

खाली
सफेद पन्ने भी
पढ़े जा सकते हैं
लिखना छोड़ कर
किसी मौसम में
‘उलूक’

खुद ही पढ़ने
और
समझ लेने
के लिये
खुद लिखे गये
आवारा रास्तों
के निशान।

चित्र साभार: canstockphoto.com

गुरुवार, 8 फ़रवरी 2018

कुछ तो खुरच कागज को खून ना सही खुरचन ही सही भिगोने के लिये लाल रंग के पानी की कहानी की

बहुत दिन हो गये
सफेद पन्ने
को छेड़े हुऐ
चलो आज फिर से
कोशिश करते हैं
पिचकारियॉ उठाने की

गलत सोच का
गलत आदमी होना
बुरा नहीं होता है प्यारे
सही आदमी की
संगत से
कोशिश किया कर
थोड़ा सा दूर जाने की

जन्नत उन्हीं की होती है
जहॉ खुद के होने का भी
नहीं सोचना होता है

मर जायेगा एक दिन
जिंदा रहते कभी तो
कोशिश कर लिया कर
एक खाली कफन उठाने की

हफ्ते दस दिन
लिखना छोड़ देने से
कमीने कमीनी
सोच का लिखना
छोड़ने वाले नहीं
करने वाले बहुत
ज्यादा कमीने हैं
इतना काफी है
एक कमीने की
कलम को
कमीनापन
दिखाने की

नंगे होने का मतलब
कपड़े उतार देने से होता है
किताबें समझाती हैं

पचास साल लग गये
बहुत होता है बेवकूफ

कपड़े और नंगे
समझने में
असली कलाकारी
नंगई की
दिखाई देती है
होती भी है
देश की ही नहीं
विदेशियों के भी
ताली बजाने की

‘उलूक’ नहीं लिखेगा
तब भी नहीं मरेगा
‘उलूक’ लिखेगा
तब भी नहीं मरेगा
‘उलूक’ बात मरने की
कौन बेवकूफ कर रहा है
बात आज उसकी है
जिसकी बात बात से
बात निकल आती है
लाशें बिछवाने की

‘उलूक’ तू लगा रह
तेरे ‘उलूकपने’ की
दुकान पर बिकने
वाली शराफत की
गली कभी भी
गांंधी की आत्मा
मरने मरने तक
तो नहीं आने की।

चित्र साभार: www.nycfacemd.com