उलूक टाइम्स

शनिवार, 12 मई 2018

इंतजार है इज़हार करने का गुलाब हाथ में है तसवीर ख़्वाब में है वफ़ा करने का नशा है बता तो सही तू है तो कहाँ है

रोज
अपना ही
मत गोड़

कभी
उसके
लिये भी
लगा लिया
कर दौड़

इंतजार
सबको है

किसका है
किसे
बताना है
रहने भी दे
छोड़

किस लिये
करता है
इजहार

कुछ
बदलने के
नहीं हैं
यहाँ आसार

लिख
और
लिख कर
हवा में उड़ा

धुआँ देख
खुश हो
मन
मत मार

गुलाब ही
गुलाब हैं
सारे फूल हैं

सब
लिख रहें हैं
सब ही
सुरखाब हैं

कलम घिस्सी
काली सफेद

रहने दे
मत कर

रंगों के
जमाने हैं

रंग ही बस
अब आबाद हैं

ख्वाब देख
सुबह देख

दोपहर में देख
रात में देख

संगीत मान ले
मक्खियों
की भिन भिन

कौन से
पूरे होने हैं
कौन से
अधूरे
रहने हैं

दिखाने
वाले पर
छोड़ दे
चुनाव के
दिन गिन

बेवफाई कर
जिंदा रहेगा

घर में रहेगा
खबर में रहेगा

वफा करेगा
वफादार रहेगा

कोई
कुत्ता कहेगा
बेमौत मरेगा

नशे में लिख
नशा लिख
बस लिखे में
मत लड़खड़ा

'उलूक'
लिखे
लिखाये से

कौन
सा पता
चलना है
किसी के
बारे में

कौन है
क्या है
कितना है
खड़खड़ा।

चित्र साभार www.canstockphoto.com

मंगलवार, 8 मई 2018

टिप्पणियों पर बिफरते नये शेर को देख कर पुराने हो चुके भेड़ को कुछ तो कह देना हो रहा है

सब कुछ
एक साथ
नहीं दौड़ता है

टाँगें
कलम हो जायें
बहुत कम होता है

वजूका
खेत के बीच में
भी हो सकता है
कहीं किनारे पर
बस यूँ ही खड़ा
भी किया होता है

कहने लिखने को
रोज हर समय
कुछ ना कुछ
कहीं किसी
कोने में
जरूर होता है

लिखे हुऐ
सारे में से
जान बूझ कर
नहीं लिखा गया
कहीं ना कहीं
किसी पंक्ति
के बीच से
झाँक रहा होता है

समुन्दर
लिख लेने
के बाद
नदी लिखने
का मन
किसी का
होता होगा
पता कहाँ
चलता है

कलम की
पुरानी
स्याही को
नाले के पास
लोटे में धोना
और फिर
चटक धूप में
सुखा कर
नयी स्याही
भर लेना

एक पुराना
मुहावरा
हो चुका
होता है

नये मुल्ले
और
प्याज पर
लिखने से
दंगा भड़कने
का अंदेशा
हो रहा
होता है

रोज के
रोजनामचे
को लिखने
वाले ‘उलूक’
का दिल

साप्ताहिक
हो लेने
पर भी
बाग बाग
हो रहा
होता है

लिखना
लिखाना
और
उस पर
टिप्पणी
पाने की
लालसा पर

हमेशा
की तरह
नये सिपाही
का बंदूक
तानने पर

अपनी
पुरानी
जंक लगी
बन्दूक से
खुद का
फिर से
सामना
हो रहा
होता है

अपना लिखना
अपने लिखे को
अपना पढ़ लेना
समझ में आ जाना
सालों साल में

पुराने प्रश्न से
जैसे नया
सामना हो
रहा होता है ।

सोमवार, 30 अप्रैल 2018

नकारात्मकता फैला कर सकारात्मकता बेचने वालों के लिये सजदे में सर झुका जा रहा था

बिल्लियों के
अखबार में
बिल्लियों ने
फिर छ्पवाया

सुबह का
अखबार
रोज की तरह

आज भी
सुबह सुबह
उसी तरह से
शर्माता हुआ
जबर्दस्ती
घर के दरवाजे से
कूदता फाँदता
हुआ ही आया

खबर
शहर के कुछ
हिसाब की थी
कुछ किताब की थी
शरम लिहाज की थी
शहर के पन्ने में ही
बस दिखायी गयी थी

चूहों की पढ़ाई
को लेकर आ रही
परेशानियों की बात
बिल्लियों के
अखबार नबीस के द्वारा
बहुत शराफत के साथ
रात भर पका कर
मसाले मिर्च डाले बिना
कम नमक के साथ
बिना काँटे छुरी के
सजाई गयी थी

मुद्दा
दूध के बंटवारे
को लेकर हो रहे
फसाद का नहीं है

खबर में
समझाया गया था

बिल्लियाँ
घास खाना
शुरु कर जी रही हैं
बिल्लियों का
वक्तव्य भी
लिखवाया गया था

सफेद
चूहों को अलग
और
काले चूहों को
कुछ और अलग
बताया गया था

खबर जब
कई दिनों से
सकारात्मक सोच
बेचने वालों की
छपायी जा रही थी

पता नहीं बीच में
नकारात्मक उर्जा
को किसलिये
ला कर
फैलाया जा रहा था

बात
चूहों के
शिकार की
जब थी ही नहीं

बेकार में
दूध के बटवारे
को लेकर पता नहीं
किस बात का
हल्ला
मचवाया जा रहा था

चूहे चूहों को गिन कर
पूरी गिनती के साथ
बिल से निकल कर
रोज की तरह वापस
अपने ही बिल में
घुस जा रहे थे

दूध और
मलाई के निशान
बिल्लियों की मूँछों
में जब आने ही
नहीं दिये जा रहे थे

बिल्लियों के
साफ सुथरे धंधों को
किसलिये
इतना बदनाम
करवाया जा रहा था

ईमानदारी की
गलतफहमियाँ
पाला ‘उलूक’

बे‌ईमानी के
लफड़े में
अपने हिस्से का
गणित लगाता हुआ

रोज की तरह
चूहे बिल्ली के
खेल की खबर
खबरची
अखबार की गंगा
और डुबकी
सोच कर

हर हर गंगे
मंत्र के जाप के
एक हजार आठ
पूरे करने का
हिसाब लगा रहा था।

चित्र साभार: www.dreamstime.com

बुधवार, 18 अप्रैल 2018

उसी समय लिख देना जरूरी होता है जिस समय दूर बहुत कहीं अंतरिक्ष में चलते नाटक को सामने से होता हुआ देखा जाये

लिखना
पड़ जाता है
कभी मजबूरी में

इस डर से
कि कल शायद
देर हो जाये
भूला जाये

बात निकल कर
किसी किनारे
से सोच के
फिसल जाये

जरूरी
हो जाता है
लिखना नौटंकी को

इससे पहले
कि परदा गिर जाये

ताली पीटती हुई
जमा की गयी भीड़
जेब में हाथ डाले
अपने अपने घर
को निकल जाये

कितना
शातिर होता है
एक शातिर
शातिराना
अन्दाज ही
जिसका सारे
जमाने के लिये
शराफत का
एक पैमाना हो जाये

चल ‘उलूक’
छोड़ दे लिखना
देख कर अपने
आस पास की
नौटंकियों को
अपने घर की

सबसे
अच्छा होता है
सब कुछ पर
आँख कान
नाक बंद कर

ऊपर कहीं दूर
अंतरिक्ष में बैठ कर

वहीं से धरती के
गोल और नीले
होने के सपने को
धरती वालों को
जोर जोर से
आवाज लगा लगा
कर बेचा जाये।

चित्र साभार: www.kisspng.com

मंगलवार, 17 अप्रैल 2018

अपनी कब्र का पेटेंट 2019 के चुनावों से पहले तुरन्त करा बिल्कुल नया है ये आईडिया

बहाने
मत बना
सही बात
साफ साफ बता

कलम
बीमार है
कागज का
पेट आज
बहुत खराब है

जैसा जुमला

अब रहने भी दे
किसी पुराने
पीतल या ताँबे के
गमले में दे सजा

कुछ भी
लिख
देने वाले
के साथ
ऐसा ही
है होता

कितने
साल हो गये
लिखते बकते

अब तो समझ ले

अभी भी
समय है
एक बार
फिर से
समझाया
जा रहा है

सुधर जा

अपने
पन्ने पर कर

जो करना है
जो देखना है
जो कहना है

किसी ने
नहीं है रोका

इधर उधर
इसके उसके
लिखे लिखाये को

देखने पढ़ने
के लिये तो
भूल कर
भी मत जा

कपड़े उतार
सड़क पर
लेट जा

अखबार के
चौथे पन्ने
यानी
बस कस्बे
की खबर
हो जा
छ्प जा
तर जा

बिना कोई
गुल छिपाये
गुल खिलाये
घर के अन्दर

मुख्य पृष्ठ में
छपने का
भूल जा

सोचना
सच में
होता है
बहुत ही बुरा

किसलिये
खाये जाता है
अपना ही दिमाग

इसमें कुछ
दिमाग लगा

लोग लिख रहे हैं
लिखते रहेंगे
दीवाने गालिब
की सोच कर
दीवाने होते रहेंगे

काहे
पागल लोगों के
लिखे लिखाये
के पीछू जाता है

अपने
पागलपन की
खुद कोई
पगलाई हुई सी
एक पागल
मोहर बना

बुराई
नहीं है

सच में

सलीकेदार
समझे बुझाये
पागलों की
भीड़ में
सच्चा एक
पागल हो जा

‘उलूक’
दुनियाँ को
समझने के लिये
किताबें मत पढ़

दुनियाँ
पागल बनाती है
समझ ले पहले से

पागल हो जा

फावड़ा उठा

अपनी
ही कब्र खोद

कब्र का पेटेंट
2019 के चुनावों
के होने से पहले
तुरन्त करा ।

चित्र साभार: www.shutterstock.com