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सोमवार, 7 सितंबर 2015

खबर है खबर रहे प्रश्न ना बने ऐसा कि कोई हल करने के लिये भी कहे

क्या है ये

एक डेढ़ पन्ने
के अखबार
के लिये

रोज एक
तुड़ी मुड़ी
सिलवटें
पड़ी हुई खबर

उसे भी
खींच तान कर
लम्बा कर

जैसे
नंगे के
खुद अपनी
खुली टाँगों के
ना ढक पाने की
जद्दोजहद में

खींचते खींचते
उधड़ती हुई
बनियाँन के
लटके हुऐ चीथड़े

आगे पीछे
ऊपर नीचे
और इन
सब के बीच में

खबरची भी
जैसे
लटका हुआ कहीं

क्या किया
जा सकता है

रोज का रोज
रोज की
एक चिट्ठी
बिना पते की

एक सफेद
सादे पन्ने
के साथ
उत्तर की
अभिलाषा में

बिना टिकट
लैटर बाक्स में
डाल कर
आने का
अपना मजा है

पोस्टमैन
कौन सा
गिनती करता है

किसी दिन
एक कम
किसी दिन
दो ज्यादा

खबर
ताजा हो
या बासी

खबर
दिमाग लगाने
के लिये नहीं

पढ़ने सुनने
सुनाने भर
के लिये होती है

कागज में
छपी हो तो
उसका भी
लिफाफा
बना दिया
जाता है कभी

चिट्ठी में
घूमती तो
रहती है
कई कई
दिनों तक

वैसे भी
बिना पते
के लिफाफे को

किसने
खोलना है
किसने पढ़ना है

पढ़ भी
लिया तो

कौन सा
किसी खबर
का जवाब देना
जरूरी होता है

कहाँ
किसी किताब
में लिखा
हुआ होता है

लगा रह ‘उलूक’

तुझे भी
कौन सा
अखबार
बेचना है

खबर देख
और
ला कर रख दे

रोज एक
कम से कम

एक नहीं
तो कभी
आधी ही सही
कहो कैसी कही ?

चित्र साभार: www.clipartsheep.com

शुक्रवार, 5 जून 2015

सब कुछ सीधा सीधा हो हमेशा ऐसा कैसे हो

रख दे
अपना दिल
खोल कर
अपने सामने से

और पढ़ ले
हनुमान चालीसा

किसी को भी
तेरे दिल से
क्या लेना देना

सबके पास
अपना एक
दिल होता है

हाँ
हो सकता है
हनुमान जी
के नाम पर
कुछ लोग रुक जायें

ये बात
अलग है
कि हनुमान जी
किस के लिये
क्या कर सकते हैं

हो सकता है
हनुमान जी
के लिये भी
प्रश्न कठिन हो जाये

उन्हें भी
आगे कहीं
राम चंद्र जी के पास
पूछ्ने के लिये
जाना पड़ जाये

इसीलिये
हमेशा राय
दी जाती है
खबर के चक्कर में
पड़ना ठीक नहीं है

खबर
बनाने वाले
की मशीन
खबर वाले
के हाथ में
नहीं होती है

खबर
की भी एक
नब्ज होती है

एक
घड़ी होती है
जो टिक टिक
नहीं करती है

हनुमान जी ने
उस जमाने में
घड़ी देखी
भी नहीं होगी

देखी होती
तो तुलसीदास जी
की किताब में
कहीं ना कहीं
लिखी जरूर होती

इसलिये
ठंड रख
गरम मत हो
खा पी और सो

खबर को
अखबार
में रहने दे

अपने
दिल को उठा
और वापिस
दिल की जगह में
फिर से बो
हनुमान जी
की भी जय हो
जय हो जय हो ।

चित्र साभार: beritapost.info

गुरुवार, 14 मई 2015

समझदार एक जगह टिक कर अपनी दुकान नहीं लगा रहा है

किसलिये
हुआ जाये
एक अखबार

 क्यों सुनाई
जाये खबरें
रोज वही
जमी जमाई दो चार

क्यों बताई
जाये शहर
की बातें
शहर वालों को हर बार

क्यों ना
कुछ दिन
शहर से
हो लिया जाये फरार

वो भी यही
करता है
करता आ
रहा है

यहाँ जब
कुछ कहीं
नहीं कर
पा रहा है

कभी इस शहर
तो कभी उस शहर
चला जा रहा है

घर की खबर
घर वाले सुन
और सुना रहे हैं

वो अपनी खबरों
को इधर उधर
फैला रहा है

सीखना चाहिये
इस सब में भी
बहुत कुछ है
सीखने के लिये ‘उलूक’

बस एक तुझी से
कुछ नहीं
हो पा रहा है

यहाँ बहुत
हो गया है
अब तेरी
खबरों का ढेर

कभी तू भी
उसकी तरह
अपनी खबरों
को लेकर

कुछ दिन
देशाटन
करने को
क्यों नहीं
चला जा रहा है ।

चित्र साभार: www.fotosearch.com

रविवार, 12 अप्रैल 2015

जय हो जय हो कह कह कर कोई जय जय कार कर रहा था

पहले दिन की खबर
बकाया चित्र के साथ थी
पकड़ा गया था एक
सरकारी चिकित्सक
लेते हुऐ शुल्क मरीज से
मात्र साढ़े तीन सौ रुपिये
सतर्क सतर्कता विभाग के
सतर्क दल के द्वारा
सतर्कता अधिकारी था
मूँछों में ताव दे रहा था
पैसे कम थे पर खबर
एक बड़ी दे रहा था
दूसरे दिन वही
चिकित्सक था
लोगों की भी‌ड़ से
घिरा हुआ था
अखबार में चित्र
बदल चुका था
चिकित्सक था मगर
मालायें पहना हुआ था
न्यायधिकारी से
डाँठ खा कर
सतर्कता अधिकारी
खिसियानी हँसी कहीं
कोने में रो रहा था
ऐसा भी अखबार
ही कह रहा था
दो दिन की एक
ही खबर थी
लिखे लिखाये में
कुछ इधर का
उधर हो रहा था
कुछ उधर का
इधर हो रहा था
‘उलूक’ इस सब पर
अपनी कानी आँख से
रात के अंधेरे में
नजर रख रहा था
उसे गर्व हो रहा था
कौम में उसकी
जो भी जो कुछ
कर रहा था
बहुत सतर्क हो
कर कर रहा था
सतर्कता से
करने के कारण
साढ़े तीन सौ का
साढ़े तीन सौ गुना
इधर का उधर
कर रहा था
चित्र, अखबार,
उसके लोगों का
खबर के साथ
खबरची हमेशा
भर रहा था
सतर्क सतर्कता
विभाग के
सतर्क दल का
सतर्क अधिकारी
पढ़ाना लिखाना
सिखाने वालों के
पढ़ने पढ़ाने को
दुआ सलाम
कर रहा था
पढ़ने पढ़ाने के
कई फायदे में से
असली फायदे का
पता चल रहा था
कोई पाँव छू रहा था
कोई प्रणाम कर रहा था
ऊपर वाले का गुणगाँन
विदेश में जा जा कर
देश का प्रधान कर रहा था ।

चित्र साभार: www.clipartheaven.com

बुधवार, 8 अप्रैल 2015

सारे जोर लगायेंगे तो मरे हाथी को खड़ा कर ले जायेंग़े

चट्टान पर
बुद्धिमान ने
बनाया
अपना घर
और जोर की
वर्षा आई
बचपन में
सुबह की
स्कूल में की
जाने वाली
प्रार्थना का
एक गीत
याद आ पड़ा
उस समय
जब सामने
से ही अपने
कुछ दूरी पर
जोर के
धमाकों के साथ
फटते पठाकों
की लड़ियों
को घेर कर
उछलता हुआ
एक झुण्ड
दिखा खड़ा
इससे पहले
किसी से कुछ
पूछने की
जरूरत पड़ती
दिमाग के
अंदर का
फितूरी गधा
दौड़ पड़ा
याद आ पड़ी
सुबह सुबह
अखबार के
मुख्य पृष्ठ पर
छपी हुई
ताजी एक खबर
जनता जनार्दन
एक कददू
और कुछ तीर
साथ में अपने
गधे का जनाजा
और उसकी
खुद की ही
अपने लिये
खोदी गई
साफ सुथरी
कबर
सारी खुदाई
एक तरफ
अपना भाई
एक तरफ
जब जब
अपनी सोच
के सोच होने
का वहम
कभी हुआ है
अपना
यही गधा
सीना तान
कर अपनी
सोच के साथ
खड़ा हुआ है
‘उलूक’
इतना कम
नहीं है क्या ?
बनाने दे
दुनियाँ को
रेत के
ताजमहल
पकड़ अपनी
सोच के गधे
की लगाम
और निकल
ले कहीं
तमाशा देखने
के चक्कर में
गधा भी लग
लिया लाईन में
तो कहीं का
नहीं रह जायेगा
अकेला हो
गया तो
चना भी नहीं
फोड़ पायेगा ।
चित्र साभार: imgarcade.com

गुरुवार, 12 मार्च 2015

आदमी की खबरों को छोड़ गधे को गधों की खबरों को ही सूँघने से नशा आता है


अब ये तो नहीं पता कि कैसे हो जाता है
पर सोचा हुआ कुछ कुछ आगे आने वाले समय में
ना जाने कैसे सचमुच ही सच हो जाता है

गधों के बीच में 
रहने वाला गधा ही होता है
बस यही सच पता नहीं हमेशा 
सोचते समय कैसे भूला जाता है

गधों का राजा 
गधों में से ही
एक 
अच्छे गधे को छाँट कर ही बनाया जाता है

इसमें कोई गलत 
बात नहीं ढूँढी जानी चाहिये
संविधान गधों का गधों के लिये ही होता है
गधों के द्वारा गधों के लिये ही बनाया जाता है

तरक्की भी गधों 
के राज में गधों को ही दी जाती है
एक छोटी कुर्सी से छोटे गधे को बड़ी कुर्सी में बैठाया जाता है

छोटी कुर्सी के लिये 
एक छोटा मगर पहले से ही
जनप्रिय बनाया और लाईन पर लगाया गधा बैठाया जाता है

सब कुछ सामान्य 
सी प्रक्रियाऐं ही तो नजर आती है
बस ये समझ में नहीं आ पाता है जब खबर फैलती है
किसी गधे को कहीं ऊपर बैठाये जाने की
‘उलूक’
तुझ गधे को पसीना  आना क्यों शुरु हो जाता है ?

चित्र साभार: www.clipartof.com

सोमवार, 2 फ़रवरी 2015

पकी पकाई खबर है बस धनिया काट कर ऊपर से सजाया है



बच्चों
की 
जेल से

बच्चे 
फरार 
हो गये हैं 

ऐसा 
खबरची 
खबर ले कर 
आज आया है 

देख लेना
चाहिये 
कहीं

उसी
झाडू‌ वाले
ने
फर्जी 
मतदान करने 
तो
नहीं बुलाया है 

अपनी
जेब पर 
चेन लगाकर 
बाहर और अंदर 
दोनो तरफ से 
बंद करवाया है 

उसकी
खुली जेब 
से
झाँक रहे नोटों 
पर

कहानी
बना कर
चटपटी 
एक लाया है 

सवा करोड़ 
चिट्ठियों में
कहाँ 
कुछ खर्च होता है 

बहुत 
सस्ते कागज 
में
सरकारी 
छापे खाने में 

श्रमदान 
करने वाले 
कर्मचारियों 
को

काम पर 
लगा कर 
छपवाया है 

बहुत कुछ 
किया है 
बहुत कुछ 
करवाया है 

दिखाना 
जरूरी 
नहीं होता है 

इसलिये
कुछ 
कहीं नहीं 
दिखाया है 

आदमी छोड़िये 
भैंसे भी
कायल 
हो चुकी हैं 

बड़ी बात है
बिना लाठी 
हाथ में लिये 
भैंस को
अपना 
बनाया है 

जादू है 
जादूगर है 
जादूगरी है 
तिलिस्म है 

छोड़ कर
जाने वाले
इतिहास 
हो गये हैं 

हर
किसी को 
इधर से हो
या 
उधर से हो 

अपने में
घुलाया 
और
मिलाया है 

मिर्ची
तुमको 
भी लगती है 
इस
तरह की 
बातें पढ़कर 

कोई नई 
बात नहीं है 
मिर्ची हमें 
भी
लगती है 

अच्छी
बातों का 
अच्छा प्रचार 
पढ़कर 

अच्छे लोगों
का
बोलबाला है

बुरों को 
लिखने
लिखाने
का
रोग लगवाया है

क्या करें 
आदतन 
मजबूर हैं 

देखते हैं
रोज 
अपने आस पास 
के
घुन लगे हुऐ 
गेहूँ के बीजों
को 

यहाँ उगना 
मुश्किल 
होता है जिनका 

रेगिस्तान
में 
उसी तरह के
बीजों 
से

कैसे
 हरा पौँधा 
उगता हुआ
दिखाया है 

‘उलूक’ 
पीटता रहता है 
फटे हुऐ ढोलों को 

गली मुहल्ले के 
मुहानों पर 

कई
सालों से 
कौओं ने 
कबूतरों से 

सभी
जलसों में
देश प्रेम का भजन 
गिद्धों के सम्मान 
में बजवाया है । 

चित्र साभार: homedesignsimple.info

गुरुवार, 8 जनवरी 2015

खबरची और खबर कर ना कुछ गठजोड़



जरूरत है एक खबरची की 
जो बना सके एक खबर मेरे लिये और बंटवा दे 
हर उस पन्ने पर लिख कर 
जो देश के ज्यादातर समझदार लोगों तक पहुँचता हो 

खबर ऐसी होनी चाहिये 
जिसके बारे में किसी को कुछ पता नहीं हो 
और जिसके होने की संभावना कम से कम हो 

शर्त है मैं खबर का राकेट छोड़ूंगा हवा में
और वो उड़ कर गायब हो जायेगा 

खबर खबरची फैलायेगा 
फायदा जितना भी होगा राकेट के धुऐं का 
पचास पचास फीसदी पी लिया जायेगा 

कोई नहीं पूछता है खबर के बारे में 

ज्यादा से ज्यादा क्या होगा 
बहस का एक मुद्दा हो जायेगा 

वैसे भी ऐसी चीज जिसके बारे में 
किसी को कुछ मालूम नहीं होता है 
वो ऐसी खबर के बारे में पूछ कर
अज्ञानी होने का बिल्ला अपने माथे पर क्यों लगायेगा 

इसमें कौन सी गलत बात है अगर एक बुद्धिजीवी 
दूध देने वाले कुत्तों का कारखाना बनाने की बात कहीं कह जायेगा 

कुछ भी होना संभव होता है 
वकत्वय अखबार से होते हुऐ पाठक तक तो 
कम से कम चला जायेगा 

कारखाना बनेगा या नहीं बनेगा किसको सोचना है 
कबाड़ी अखबार की रद्दी ले जायेगा 
हो सकता है आ जाये सामने से फिर खबरची की खबर
भविष्य में कहीं सब्जी की दुकान में सामने से 
जब सब्जी वाला खबर के अखबार से बने लिफाफे में 
आलू या टमाटर डाल कर हाथ में थमायेगा 

जरूरत है एक खबरची की 
जो मेरे झंडे को लेकर एवरेस्ट पर जा कर चढ़ जायेगा 
ज्यादा कुछ नहीं करेगा बस झंडे को 
एक एक घंटे के अंतर पर हिलायेगा । 

चित्र साभार: funny-pictures.picphotos.net

रविवार, 2 नवंबर 2014

रात में अपना अखबार छाप सुबह उठ और खुद ही ले बाँच

बहुत अच्छा है
तुझे भी पता है
तू कितना सच्चा है
अपने घर पर कर
जो कुछ भी
करना चाहता है
कर सकता है
अखबार छाप
रात को निकाल
सुबह सवेरे पढ़ डाल
रेडियो स्टेशन बना
खबर नौ बजे सुबह
और नौ बजे
रात को भी सुना
टी वी भी दिखा
सकता है
अपनी खबर को
अपने हिसाब से
काली सफेद या
ईस्टमैन कलर
में दिखा सकता है
बाहर तो सब
सरकार का है
उसके काम हैं
बाकी बचा
सब कुछ
उसके रेडियो
उसके टी वी
उसके और उसी का
अखबार उसी के
हिसाब से ही
बता सकता है
सरकार के आदमी
जगह जगह पर
लगे हुऐ हैं
सब के पास
छोटे बड़े कई तरह
के बिल्ले इफरात
में पड़े हुऐ हैं
किसी की पैंट
किसी की कमीज
पर सिले हुऐं है
थोड़े बहुत
बहुत ज्यादा बड़े
की कैटेगरी में आते हैं
उनके माथे पर
लिखा होता है
उनकी ही तरह के
बाकी लोग बहुत
दूर से भी बिना
दूरबीन के भी
पढ़ ले जाते हैं
ताली बजाने वालों
को ताली बजानी
आती है
ऊपर की मंजिल
खाली होने के
बावजूद छोटी सी
बात कहीं से भी
अंदर नहीं घुस पाती है
ताली बजाने से
काम निकल जाता है
सुबह की खबर में
क्या आता है और
क्या बताया जाता है
ताली बजाने के बाद
की बातों से किसी
को भी इस सब से
मतलब नहीं रह जाता है
‘उलूक’ अभी भी
सीख ले अपनी खबर
अपना अखबार
अपना समाचार
ही अपना हो पाता है
बाकी सब माया मोह है
फालतू में क्यों
हर खबर में तू
अपनी टाँग अढ़ाता है ।

चित्र साभार: clipartcana.com

शुक्रवार, 31 अक्तूबर 2014

विवेकानन्द जी आपसे कहना जरूरी है बधाई हो उस समय जब आपकी सात लाख की मूर्ति हमने अपने खेत में आज ही लगाई हो

अखबार खरीद कर
रोज घर लाने की
आदत पता नहीं
किस दिन तक
यूँ ही आदत
में शामिल रहेगी
पहले दिन से ही
पता रहती है जबकि
कल किसकी कबर
की खबर और
किस की खबर
की कबर बनेगी
मालूम रहता है
आधा सच हमेशा
आधे पन्ने में
लिख दिया जाता है
वैसे भी पूरी बात
बता देने से
बात में मजा भी
कहाँ रह जाता है
एक पूरी कहानी
होती है
एक मंदिर होता है
और वो किसी
एक देवता के
लिये ही होता है
देवता की खबर
बन चुकी होती है
देवता हनीमून से
नहीं लौटा होता है
मंदिर की भव्यता
के चर्चे से भरें होंगे
अखबार ये बात
अखबार खरीदने
वाले को पता होता है
मंदिर बनने की जगह
टाट से घिरी होती है
और एक पुराना
कैलैण्डर वहाँ
जरूर टंका होता है
वक्तव्य दर वक्तव्य
मंदिर के बारे में भी
और देवता
के बारे में भी
उनके होते हैं
जिनका देवताओं
पर विश्वास कभी
भी नहीं होता है
रसीदें अखबार में
नहीं होती हैं
भुगतान किस को
किया गया है
बताना नहीं होता है
किस की
निविदा होती है
किस को
भुगतान होता है
किस का
कमीशन होता है
किस ने
देखना होता है
कुत्तों की
जीभें होती हैं
बिल्लियों का
रोना होता है
‘उलूक’
तेरी किस्मत है
तुझे तो हमेशा
ही गलियों में
मुहँ छिपा कर
रोना होता है |

चित्र साभार : http://marialombardic.blogspot.com/

शनिवार, 27 सितंबर 2014

छोटी चोरी करने के फायदों का पता आज जरूर हो रहा है

                               

चोर होने की औकात है नहीं डाकू होने की सोच रहा है 
तू जैसा है वैसा ही ठीक है 
तेरे कुछ भी हो जाने से 
यहाँ कुछ
नया जैसा नहीं हो रहा है 

थाना खोल ले
घर के किसी भी कोने में 
और सोच ले
कुर्सी पर बैठा एक थानेदार 
मेज पर अपना सिर टिका कर सो रहा है 

देख नहीं रहा है दूरदर्शन आज का 
कुछ अनहोनी सी खबर कह रहा है 

चार साल के लिये अंदर हो जाने वाली है 
और ऊपर से
सौ करोड़ जमा करने का आदेश भी
न्यायालय
उसको साथ में दे रहा है 

बेचारी को
बहुत महँगा पड़ रहा है 
दोस्त देश के बाहर गया हुआ भी 
दो शब्द साँत्वना के नहीं कह रहा है 

समझ में
ये नहीं आ पा रहा है कि 
पुराना घास खा गया घाघ अभी तक अंदर है 
या बाहर कहीं किसी जगह अब मौज में सो रहा है 
खबर ही नहीं आती है उसकी कुछ भी मालूम नहीं हो रहा है 

आज कुछ कुछ
कोहरे के पीछे का मंजर
थोड़ा सा कुछ साफ जैसा हो रहा है 

बहुत समझदार है
मध्यम वर्गीय चोर मेरे आस पास का 
ये आज ही सालों साल सोचने के बाद भी बिना सोचे 
बस आज और आज ही पता हो रहा है 

हाथ लम्बे
होने के बाद भी 
लम्बे हाथ मारने का खतरा कोई फिर भी 
क्यों नहीं ले रहा है 

बस थोड़ा थोड़ा
खुरच कर दीवार का रंग रोगन 
अपने आने वाले भविष्य की संतानों के लिये
बनने वाले सपने के ताजमहल की पुताई का 
मजबूत जुगाड़ ही तो हो रहा है 

‘उलूक’ बैचेन है 
आज जो भी हो रहा है किसी के साथ 
इस तरह का बहुत अच्छा जैसा तो नहीं हो रहा है 

थोड़ी थोड़ी करती
रोज कुछ करती हमारी तरह करती 
तो पकड़ी भी नहीं जाती 
शाबाशियाँ भी कई सारी मिलती 
जनता रोज का रोज ताली भी साथ में बजाती 
सबकी नहीं भी होती
तो भी 
दो चार शातिरों की फोटो
खबर के साथ अखबार में 
रोज ही किसी कालम में नजर आ ही जाती 

दूध छोड़ कर
बस मलाई चोर कर खाने का 
बिल्कुल भी अफसोस 
आज जरा सा भी नहीं हो रहा है । 

चित्र साभार: http://www.canstockphoto.com/

बुधवार, 30 अप्रैल 2014

पँचतंत्र लोकतंत्र पर हावी होने जा रहा है


खाली रास्ते पर 
एक खरगोश
अकेला दौड़ लगा रहा है

कछुआ बहुत 
दिनों से गायब है
दूर दूर तक 
कहीं भी नजर नहीं आ रहा है

सारे कछुओं से 
पूछ लिया है
कोई कुछ नहीं बता रहा है

दौड़ चल रही है
खरगोश दौड़ता ही जा रहा है

इस बार लगता है
कछुआ मौज में आ गया है
और 
सो गया है
या
कहीं छाँव में बैठा बंसी बजा रहा है

दौड़ शुरु होने से 
पहले भी
कछुऐ की 
खबर 
कोई अखबार 
नहीं दिखा रहा है

कुछ ऐसा जैसा 
महसूस हो पा रहा है
कछुवा कछुओं के साथ मिलकर
कछुओं को 
इक्ट्ठा करवा रहा है

एक नया करतब 
ला कर दिखाने के लिये
माहौल बना रहा है

कुछ नये तरह का 
हथियार बन तो रहा है
सामने ला कर कोई नहीं दिखा रहा है

दौड़ करवाने वाला भी
कछुऐ को कहीं नहीं देखना चाह रहा है

खरगोश गदगद 
हो जा रहा है
कछुऐ और उसकी छाया को दूर दूर तक
अपने आसपास फटकता हुआ
जब 
नहीं पा रहा है

‘उलूक’ हमेशा ही 
गणित में मार खाता रहा है
इस बार उसको लेकिन 
दिन की रोशनी में
चाँदनी देखने का जैसा मजा आ रहा है

कछुओं का
शुरु से 
ही गायब हो जाना
सनीमा के सीन से 

दौ
 के गणित को
कहीं ना कहीं तो गड़बड़ा रहा है

प्रश्न कठिन है और 
उत्तर भी
शायद
कछुआ ही ले कर आ रहा है।

चित्र साभार: http://clipart-library.com/

शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

सब कुछ जायज है अखबार के समाचार के लिये जैसे होता है प्यार के लिये

समाचार
देने वाला भी
कभी कभी
खुद एक
समाचार
हो जाता है

उसका ही
अखबार
उसकी खबर
एक लेकर
जब चला
आता है

पढ़ने वाले
ने तो बस
पढ़ना होता है

उसके बाद
बहस का
एक मुद्दा
हो जाता है

रात की
खबर जब
सुबह तक
चल कर
दूर से आती है

बहुत थक
चुकी होती है
असली बात
नहीं कुछ
बता पाती है

एक कच्ची
खबर
इतना पक
चुकी होती है

दाल चावल
के साथ
गल पक
कर भात
जैसी ही
हो जाती है

क्या नहीं
होता है
हमारे
आस पास

पैसे रुपिये
के लिये
दिमाग की
बत्ती गोल
होते होते
फ्यूज हो
जाती है

पर्दे के
सामने
कठपुतलियाँ
कर रही
होती हैं
तैयारियाँ

नाटक दिखाने
के लिये
पढ़े लिखों
बुद्धिजीवियों
को जो बात
हमेशा ही
बहुत ज्यादा
रिझाती हैं

जिस पर्दे
के आगे
चल रही
होती है
राम की
एक कथा

उसी पर्दे
के पीछे
सीता के
साथ
बहुत ही
अनहोनी
होती चली
जाती है

नाटक
चलता ही
चला जाता है

जनता
के लिये
जनता
के द्वारा
लिखी हुई
कहानियाँ
ही बस
दिखाई
जाती हैं

पर्दा
उठता है
पर्दा
गिरता है
जनता
उसके उठने
और गिरने
में ही भटक
जाती है

कठपुतलियाँ
रमी होती है
जहाँ नाच में
मगन होकर

राम की
कहानी ही
सीता की
कहानी से
अलग कर
दी जाती है

नाटक
देखनेवाली
जनता
के लिये ही
उसी के
अखबार में
छाप कर
परोस दी
जाती है

एक ही
खबर
एक ही
जगह की
दो जगहों
की खबर
प्यार से
बना के
समझा दी
जाती है ।

सोमवार, 23 दिसंबर 2013

आम में खास खास में आम समझ में नहीं आ पा रहा है

आज का नुस्खा
दिमाग में आम
को घुमा रहा है
आम की सोचना
शुरु करते ही
खास सामने से
आता हुआ नजर
आ जा रहा है
कल जब से
शहर वालों को
खबर मिली कि
आम आज जमघट
बस आमों में आम
का लगा रहा है
आम के कुछ खासों
को बोलने समझाने
दिखाने का एक मंच
दिया जा रहा है
खासों के खासों का
जमघट भी जगह
जगह दिख जा रहा है
जोर से बोलता हुआ
खासों का एक खास
आम को देखते ही
फुसफुसाना शुरु
हो जा रहा है
आम के खासों में
खासों का आम भी
नजर आ रहा है
टोपी सफेद कुर्ता सफेद
पायजामा सफेद झंडा
तिरंगा हाथ में एक
नजर आ रहा है
वंदे भी है मातरम भी है
अंतर बस टोपी में
लिखे हुऐ से ही
हो जा रहा है
“उलूक” तो बस
इतना पता करना
चाह रहा है
खास कभी भी
नहीं हो पाया जो
उसे क्या आम में
अब गिना जा रहा है ।

शनिवार, 21 दिसंबर 2013

जब भी कुछ संजीदा लिखने का मन होता है कोई राकेट उड़ गया की खबर दे देता है

राकेट
बना के
उड़ा देना
एक बात है

राकेट
की खबर
बना के
उड़ाना
कुछ
अलग
बात है

धरातल पर
जो कभी नहीं
होने दिया जाता है

वो सब
कहीं ना कहीं
को भिजवा
दिया गया एक
राकेट हो जाता है

अब
उड़ चुका
राकेट होता है

किसी को
नजर भी
कहीं नहीं
आ पाता है

हर तरफ
होती है खबर
राकेट के
कहीं होने की

अखबार
वाला भी
खबर लेने
राकेट के
उड़ने के
बाद ही
पहुंच पाता है

राकेट
बनाने वाला
राकेट
के बारे में
बताते हुऐ
जगह जगह
पर नजर
आ जाता है

जहाँ
खुद नहीं
पहुँच पाता है
राकेट
बनाने वाली
टीम के
सदस्य को
भिजवा
दिया जाता है

जिसे राकेट
के बारे में
पता नहीं
होता है
उसे
कुछ नहीं
आता है
कह कर
बदनाम कर
दिया जाता है

अब
राकेट
तो राकेट
होता है
धरातल में
कहीं भी
नहीं होता है

बस
खबर उड़
रही होती है
राकेट का कहीं
भी अता पता
नहीं होता है

समझने
की थोड़ी
सी कोशिश
तो करिये जनाब
कितना
अजब और
कितना
गजब होता है

राकेट
बनाने वाला
बहुत चालाक
भी होता है

राकेट के
लौट के
आने का
कहीं
इंतजाम
नहीं होता है

कितने कितने
राकेट उड़ते
चले जाते हैं

बातें होती
ही रहती हैं
वो कभी भी
कहीं भी
लौट के
नहीं आते हैं ।

शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

सब को आता है कुछ ना कुछ तुझे क्यों नहीं आता है

लिख देने
के बाद भी

यहीं पर
पड़ा हुआ
नजर आता है

इतनी सी
भी मदद
नहीं करता
कहीं को चला
भी नहीं जाता है

अखबार
से ही सीख
लेता कुछ कभी

कितनो
का लिखा
अपने सिर पर
उठा उठा
कर लाता है

खुद ही जाकर
हर किसी के घर भी
रोज हो ही आता है

अपनी
अपनी खबर
पढ़ लेने का मौका

हर कोई
समानता से
पा भी जाता है

बहुत
कम होते हैं ऐसे
जिन्हे है फुरसत यहाँ
जमाने भर की

और वो
यहाँ आ कर
पढ़ क्या गया तुझको

तू तो
बहुत ही मजे
मजे में आ जाता है

कुछ तो
सऊर सीख भी ले अब

इधर उधर के
पन्नों से कभी

जिसमें
लिखा हुआ
कुछ भी कहीं भी

बहुत
सी जगह
पर जा जा कर
कुछ ना कुछ
लिखवा ही लाता है

एक तू है पता नहीं
किस चीज का बना हुआ

ना खुद लिख पाता है
ना ही कुछ किसी से
लिखवा ही पाता है

जब देखो
जिस समय देखो
यहीं पर पड़ा रह रह कर

बेकार में
सारी जगह
घेरता चला जाता है

अरे ओ
बेवकूफ पन्ने
किसी की समझ में
बात आये ना आये

तेरी समझ में
कभी भी कुछ
क्यों नहीं आता है

'उलूक'
के बारे में
भी कुछ सोच
लिया कर कभी

उससे भी
आँखिर
कब तक और
कहाँ तक सब
लिखा जाता है ।

मंगलवार, 29 अक्तूबर 2013

बात ही अजीब हो तो कोई कैसे समझ पायेगा

कई बार
बहुत सारे
विषय
हो जाते हैं

लिखने
लिखने तक
सारे के
सारे ही
भूले जाते हैं

सोच ही
रहा था
आज उनमें
से किस पर
अच्छा सा कुछ
लिखा जायेगा

किसे
मालूम था
कुत्ता
आज ही
कहीं से
मार खा
कर चला
आयेगा

जानता था
विज्ञान को
समझना
बहुत मुश्किल
नहीं कभी
हो पायेगा

पता नहीं था
आस पास का
मनोविज्ञान ही
हमेशा
कुछ यूं
घुमायेगा

और एक
अजीब सा
इत्तेफाक
ये हो जायेगा

डाकिया
जितनी बार
अच्छी खबर
का एक
पोस्टकार्ड
ला कर
घर पर
दे जायेगा

शुभकामनाओं
की उम्मीद
किसी से ऐसे में
कोई कैसे
कर पायेगा

जब
हर अच्छी
खबर के बाद
किसी के
घर का
कुत्ता

हमेशा ही
मार
कहीं से खा
कर चला
आयेगा ।

शनिवार, 24 अगस्त 2013

सुबह सुबह ताजी ताजी गरम गरम

विधायक जी ने 
जिलाधिकारी जी को
रात को बारा बजे
जब दूरभाष लगाया

लड़खड़ाती
आवाज से उनकी
उन्हे आभास हो आया

पक्का ही
डी एम ने
पव्वा है लगाया

विधायक जी ने
तुरंत ही
इस घटना को
आयुक्त को
जब बताया

आयुक्त ने भी
पुष्टि करने को
डी एम
साहब को
फोन लगाया

भाई
तुम्हारी
आवाज तो
लड़खड़ा रही है

तुमने
पी हुई है
ऎसा कुछ
बता रही है

डी एम
साहब को
बहुत जोर
का गुस्सा
आना ही था
वो आया

थोड़ी सी
तो पी है
चोरी तो
नहीं की है

जो बनता है
बना डालो
मेडिकल
चाहो तो
वो भी
करवालो

ये सब
मुझे ही
किसी ने
नहीं है
बताया

मेरे घर में
जितने
अखबार
आते हैं

उनमें से
एक के
मुख्य पृष्ठ
पर मैं इसे
पढ़ पाया

तब से
कुछ भी
समझ में
नहीं आ
रहा है

इस समाचार का
विश्लेषण दिमाग
नहीं कर पा रहा है

वैसे खाली फोन में
आवाज से कोई कैसे
पकड़ा जाता है

हर अधिकारी
के घर में
सी सी टी वी
क्यों नहीं
लगाया जाता है

खुश्बू का भी पता
चल जाया करे
क्या ऎसा कोई
इंस्ट्रूमेंट बाजार में
नहीं आता है

शुरुआत तो
विधायक
निवास से ही
की जानी चाहिये

तस्वीर जनता तक
भी तो जानी चाहिये

खाली पड़ी
विधायक
हास्टल के
पीछे की
गली की
बोतलें भी
किसी ने
एक बार
ऎसी ही
अखबार में
छपवा दी थी

बताया गया था
विरोधी दल
के नेता ने
कबाड़ी से
खरीद कर
रखवा दी थी

फोटो खिंचवा के
अखबार के दफ्तर
को भिजवा दी थी

पता नहीं कुछ भी
समझ में नहीं
आ पा रहा है

शराब को
आखिर
इतना बदनाम
क्यों किया
जा रहा है

मुम्बई में हुआ है
फिर से गैंग रेप
पर
शराब की
खबर को
उससे भी
हाई
टी आर पी
का बताया
जा रहा है

आभारी रहूँगा
अगर आप में
से कोई
मुझे समझा देगा

इस समाचार में
अखबार वाला
क्या हमको
बताना चाह रहा है ।

मंगलवार, 13 अगस्त 2013

कभी एक रोमानी खबर क्यों नहीं तू लाता है

सब कुछ तो
वैसा 
नहीं
होता है

जैसा 

रोज का रोज
आकर तू यहां
कह देता है

माना कि
अन्दर से
ज्यादातर
वही सब कुछ
निकलता है

जैसा कि
अपने आस
पास में
चलता है

पर
सब कुछ
तुझे ही

कैसे
और क्यों
समझ में
आता है

तेरे
वहाँ तो

एक से
बढ़कर एक
चिंतकों का

आना जाना
हमेशा से ही
देखा जाता है

पर
तेरी जैसी
अजीब
अजीब सी
परिकल्पनाऎं
लेकर

कोई ना तो
कहीं आता है
ना ही कहीं पर
जाकर बताता है

दूसरी
ओर देख

बहुत
सी चीजें
जो होती
ही नहीं है

कहीं
पर भी
दिखती नहीं हैं

उन
विषयों
पर भी

आज जब
विद्वानोंं द्वारा

बहुत कुछ
लिखा हुआ
सामने
आता है

शब्दों के
चयन का
बहुत ही
ध्यान रखा
जाता है

भाषा
अलंकृत
होती है

ऊल जलूल
कुछ भी
नहीं कहा
जाता है

तब तू भी
ऎसा कुछ
कालजयी
लिखने की
कला सीखने
के लिये

किसी को
अपना गुरू
क्यों नहीं
बनाता है

वैसे भी
रोज का रोज
सारी की सारी
बातों को
कहना

कौन सा
इतना जरूरी
हो जाता है

जहाँ
तेरे चारों ओर
के हजारों
लोगों को

अपने सामने
गिरते हुऎ
एक मकान
को देखकर

कुछ भी नहीं
हुआ जाता है

तू
बेकार में
एक छोटी सी
बात को

रेल में
बदलकर
हमारे सामने
रोज क्यों
ले आता है

अपना समय
तो करता ही
है बरबाद

हमारा
दिमाग
भी साथ
में खाता है ।

मंगलवार, 16 जुलाई 2013

पूछ रहा है पता जो खुद है लापता

बहुत दिनों से
कई कई बार
सुन रहा था
नया आया है
एक हथियार
कह रहे थे लोग
बहुत ही काम
की चीज है
कहा जा रहा था
उसको सूचना
का अधिकार
एक आदमी
अपना दिमाग
लगाता है और
एक हथियार
अच्छा बना
ले जाता है
दूसरा आदमी
उसी हथियार
को सही जगह
पर फिट करना
सीख जाता है
कमाल दिखाता है
धमाल दिखाता है
ऎल्फ्रेड नोबल का
डायनामाईट कब
का ये हो जाता है
जिसने बनाया
होता है उसे
भी ये पता
नहीं चल
पाता है
उसके घर का
एक लापता
दस रुपिये
के पोस्टल
आर्डर से
उसको ढूँढने
के लिये उसको
ही आवेदन
थमा जाता है
उस बेचारे को
समझ में ही
नहीं आ पाता है
किस से पूछे
कैसे जवाब
इसका बनाया
जाता है कि वो
रहता है आता है
और कहीं भी
नहीं जाता है
तीस दिन तक
बस ये ही काम
बस हो पाता है
जवाब देने की
सीमा समाप्त
भी हो जाती है
जवाब भी तैयार
किसी तरह
कर लिया जाता है
किसी को भी
ये खबर नहीं
होती है कि
लापता इस
बीच फिर
लापता हो
जाता है
सूचना उसकी
कोई भी नहीं
दे पाता है ।