उलूक टाइम्स

रविवार, 13 जनवरी 2019

चिट्ठाकारी और दस साल

ना
खबर पर
कुछ लिखना है

ना
अखबार पर
कुछ कहना है

सोच बैठा
एक दिन

लिखना
लिखाना ही
बन्द हो गया

दस साल
से करते हुऐ
बकवास
पर बकवास

समझ बैठा
सब तो लिख
दिया होगा

सोचना ही
सोच पर ही
एक बड़ा
पैबन्द हो गया

हर दूसरे
के चाहने
और
उसके साथ
हाथ आकर
बटाने
उसके
हिसाब से

अपना
सारा हिसाब
एक किताबी
खण्ड हो गया

कुछ
लिखना लिखाना
पन्ने पर अपने

बस इक
नुमाईश जैसा कुछ

अपनी सोच से
आती खुद की ही
सुगन्ध हो गया

पता है
कुछ नहीं
होना है इस
लिखने लिखाने से

और यूँ ही
दस साल से
लिखा लिखाया

खुद ही
झण्ड हो गया

अखबार
में खबर
और
खबर में
अखबार

सच गाँधी
नहीं रह गया
गाँधी खुद
एक इतिहास

और इतिहास
शुंड भिशुंड हो गया

गली मोहल्ले
शहर जिले
प्रदेश से
बाहर कहीं

‘उलूक’
कौन
जानता है तुझे

एक
अपने का
कहा ही
एक सदी का
कमेंट हो गया

नमन

‘अविनाश जी वाचस्पति’ 

झाड़ पर
चढ़ाया गया
‘उलूक’

आज

देख लो आकर
निगरगण्ड हो गया ।

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निगरगण्ड = मनमौजी, आवारा, (आँचलिक शब्द) शुंड भिशुंड= राक्षस (राक्षसी माया से तात्पर्य है)