उलूक टाइम्स

रविवार, 30 अगस्त 2020

यूं ही लिख कभी बिना सोचे बिना देखे कुछ भी आसपास अपने लाजवाब लिखा जाता है

 


डस्टबिन
मतलब कूड़ेदान

अब
कूड़ा कौन दान करता है
और
कौन ग्रहण
ये तो पता नहीं

पर बजबजा जाता है

ढक्कन
ऊपर उठना शुरु हो जाता है

कितनी भी
कोशिश करो
ना जिक्र किया जाये
कुछ अलग से अच्छा सा कहा जाये

पर कैसे

देखना सुनना महसूस करना
बन्द ही नहीं किया जाता है

कुछ अच्छा
खुद ही कूड़े से परेशान
किसी किनारे से निकल कर

शुद्ध हवा पानी खोजने के लिये
रेगिस्तान में आज के निकल जाता है

उस अच्छे के हाथ कुछ लगता है पता नहीं

पर
सामने से बचे हुऐ कूड़े पर बहुत प्यार आता है

और
लाजवाब कहलाये जाने लायक
लाजवाब सुन्दर बहुत खूब लिख लिया जाता है

लेखक
छंद बंद छोटी कहानी लम्बी कविता
समीक्षा टिप्पणी

साहित्य की
लगी हुई कतार को कूँद फाँद कर
हवा हवाई गुब्बारे बैखौफ उड़ाता है

उसे ना शर्म आती है
ना किसी का लिहाज रह जाता है

कौन समझाये
मूल्यों को समझना परखना लागू करना
स्वयं के ऊपर
इतना आसान नहीं हो पाता है

जितना काले श्यामपट के ऊपर
सफेद चॉक से लकीरें खींच कर लिख लिखा कर
गीले कपड़े से तुरत फुरत पोंछ भी दिया जाता है

लिखने लिखाने पढ़ने पढा‌ने का भी संविधान है ‘उलूक’

पता नहीं किसलिये
तुझे सीमायें तोड़ने में मजा आता है

कोशिश तो कर किसी दिन
दिमाग आँख नाक मुँह बंद करना
और फिर
बिना सोचे समझे कुछ लिखने का

 देख
फिर अपने लिखे लिखाये को

बस
देख कर ही
कितना नशा होता है

और
कितना मजा आता है। 

चित्र साभार: https://www.rediff.com/getahead/slide-show/
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