मेरे शहर अल्मोड़ा की लाला बाजार
ऎतिहासिक शहर बुद्धिजीवियों की बेतहाशा भरमार
बाजार में लगा ब्लैक बोर्ड पुराना
नोटिस बोर्ड की तरह जाता है अभी तक भी जाना
छोटा शहर था
हर कोई शाम को बाजार घूमने जरूर आया करता था
लोहे के शेर से मिलन चौक तक
कुछ चक्कर जरूर लगाया करता था
शहर का आदमी
कहीं ना कहीं दिख ही जाता था
शहर की गतिविधियाँ
यहीं आकर पता कर ले जाता था
मेरे शहर में मौजूद थे एक वकील साहब
वकालत करने वो कहीं भी नहीं जाते थे
हैट टाई लौंग कोट रोज पहन कर
बाजार में चक्कर लगाते चले जाते थे
बोलने में तूफान मेल भी साथ साथ दौड़ाते थे
लकडी़ की छड़ी भी अपने हाथ में लेके आते थे
कमप्यूटर उस समय नहीं था
कुछ ना कुछ बिना नागा
ब्लैक बोर्ड पर चौक से लिख ही जाते थे
उस समय हमारी समझ में उनका लिखा
कुछ भी नहीं आता था
पर लिखते गजब का थे
उस समय के बुजुर्ग लोग हमें बताते थे
बच्चे उनको पागल कह कर चिढ़ाते थे
आज वकील साहब ना जाने क्यों याद आ रहे हैं
भविष्य की कुछ टिप्पणियां दिमाग में आज ला रहे हैं
मास्टर साहब एक कमप्यूटर पर रोज आया करते थे
कुछ ना कुछ स्टेटस पर लिख ही जाया करते थे।
सुन्दर चित्रण...उम्दा प्रस्तुति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएं101….सुपर फ़ास्ट महाबुलेटिन एक्सप्रेस ..राईट टाईम पर आ रही है
जवाब देंहटाएंएक डिब्बा आपका भी है देख सकते हैं इस टिप्पणी को क्लिक करें
बहुत उम्दा
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