एक सपने बेचने
की नई दुकान का
उदघाटन होना है
सपने छाँटने के लिये
सपने बनाने वाले को
वहाँ पर जरूरी होना है
आँखे बंद भी होनी होगी
और नींद में भी होना है
दिन में सपने देखने
दिखाने वालों को
अपनी दुकाने अलग
जगह पर जाकर
दूर कहीं लगानी होंगी
खुली आँखों से सपने
देख लेने वालों को
उधर कहीं जा कर
ही बस खड़े होना है
अपने अपने सपने
सब को अपने आप
ही देखने होंग़े
अपने अपनो के सपनों
के लिये किसी से भी
कुछ नहीं कहना है
कई बरसों से सपनों
को देखने दिखाने के
काम में लगे हुऐ
लोगों के पास
अनुभव का प्रमाण
लिखे लिखाये कागज
में ही नहीं होना है
बात ही बात में
सपना बना के
हाथ में रख देने
की कला का प्रदर्शन
भी साथ में होना है
सपने पूरे कर देने
वालों के लिये दूर
कहीं किसी गली में
एक खिलौना है
सपने बनने बनाने
तक उनको छोड़िये
उनकी छाया को भी
सपनों की दुकान के
आस पास कहीं पर
भी नहीं होना है ।
की नई दुकान का
उदघाटन होना है
सपने छाँटने के लिये
सपने बनाने वाले को
वहाँ पर जरूरी होना है
आँखे बंद भी होनी होगी
और नींद में भी होना है
दिन में सपने देखने
दिखाने वालों को
अपनी दुकाने अलग
जगह पर जाकर
दूर कहीं लगानी होंगी
खुली आँखों से सपने
देख लेने वालों को
उधर कहीं जा कर
ही बस खड़े होना है
अपने अपने सपने
सब को अपने आप
ही देखने होंग़े
अपने अपनो के सपनों
के लिये किसी से भी
कुछ नहीं कहना है
कई बरसों से सपनों
को देखने दिखाने के
काम में लगे हुऐ
लोगों के पास
अनुभव का प्रमाण
लिखे लिखाये कागज
में ही नहीं होना है
बात ही बात में
सपना बना के
हाथ में रख देने
की कला का प्रदर्शन
भी साथ में होना है
सपने पूरे कर देने
वालों के लिये दूर
कहीं किसी गली में
एक खिलौना है
सपने बनने बनाने
तक उनको छोड़िये
उनकी छाया को भी
सपनों की दुकान के
आस पास कहीं पर
भी नहीं होना है ।
बहुत बढिया...
जवाब देंहटाएंआभार !
हटाएंबहुत खूबसूरत रचना। बधाई
जवाब देंहटाएंgoogle+ की वजह से सीधे ब्लॉग पे पहुँचने मे असुविधा होती है , और दूसरे आपके ब्लॉग मे "कॉमेंट" को प्रैस करने पर एक अलग पेज open हो जाता है ।
आभार । क्या बता सकते हैं कौन सा पेज खुल रहा है ? कृपया लिंक देख कर बतायें ।
हटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस' प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (18-05-2014) को "पंक में खिला कमल" (चर्चा मंच-1615) (चर्चा मंच-1614) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आभारी हूँ शास्त्री जी ।
हटाएंजैसे ये ज़िन्दगी जागी आँख़ों का ख़्वाब हो!!
जवाब देंहटाएंआभार सलिल जी !
हटाएंजनता तो कभी कभी जागती है ,हमेश सोये रहती है सपने देखते रहती है ..सुन्दर रचना !
जवाब देंहटाएंlatest post: रिस्ते !
आभार ।
हटाएंवाह !! :)
जवाब देंहटाएंआभार नीरज ।
हटाएंवाह. बहुत सुन्दर रचना. आपके लेखन की शैली बहुत प्रभावित करती है. आपसे बहुत कुछ सीखने की कामना है. स्नेह की अपेक्षा के साथ सादर आभार.
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ अखिल । अपने आस पास के परिवेश से ही उठते हैं मुद्दे । जो महसूस होता है लिख देते हैं । खुद ही अभी बहुत कुछ सीखना है :)
हटाएंबेहद उम्दा रचना..
जवाब देंहटाएंआभार !
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