मुट्ठियाँ
बंद रखना
बस
कोशिश करके
कुछ ही दिन
और
बहुत कुछ है
जो
अभी हाथ में है
जिसे कब्जे में
लिया है सभी ने
अपने अपने
सपनों से
अपनी अपनी
सोच और
अपनी औकात के
हिसाब किताब से
कुछ ना कुछ
थोड़ा थोड़ा
गणित
जोड़ घटाना
नहीं आते हुऐ भी
समझ में आ
ही जाता है
अंधा भी
पहचान
लेता है
खुश्बू से
बदलते हुऐ
रंगों को
कान बंद
करने के
बाद भी
आवाजों की
थरथराहट
बता देती है
संगीत मधुर है
या कहीं
तबाही हुई
है भयानक
चैन से सोने
के दिनों में
सपनो को
आजाद कर देना
अच्छी बात नहीं है
सपने
आसानी से
मरते भी नहीं हैं
ताजमहल
पक्का बनेगा
बनना ही
उसकी नियति है
हाथों को
कटना ही है
और
खाली हाथों के
कटने से अच्छा है
बंद मुट्ठियाँ कटें
पूरे नहीं होने हों
कोई बात नहीं
कम से कम
सपने दिखें तो
बंद अंगुलियों के
पोरों के पीछे से
ही सही कहीं
जैसे
दिखता है
सलाखों
के पीछे
एक मृत्यूदंड
पाया हुआ
अपराधी
कारागार में ।
बंद रखना
बस
कोशिश करके
कुछ ही दिन
और
बहुत कुछ है
जो
अभी हाथ में है
जिसे कब्जे में
लिया है सभी ने
अपने अपने
सपनों से
अपनी अपनी
सोच और
अपनी औकात के
हिसाब किताब से
कुछ ना कुछ
थोड़ा थोड़ा
गणित
जोड़ घटाना
नहीं आते हुऐ भी
समझ में आ
ही जाता है
अंधा भी
पहचान
लेता है
खुश्बू से
बदलते हुऐ
रंगों को
कान बंद
करने के
बाद भी
आवाजों की
थरथराहट
बता देती है
संगीत मधुर है
या कहीं
तबाही हुई
है भयानक
चैन से सोने
के दिनों में
सपनो को
आजाद कर देना
अच्छी बात नहीं है
सपने
आसानी से
मरते भी नहीं हैं
ताजमहल
पक्का बनेगा
बनना ही
उसकी नियति है
हाथों को
कटना ही है
और
खाली हाथों के
कटने से अच्छा है
बंद मुट्ठियाँ कटें
पूरे नहीं होने हों
कोई बात नहीं
कम से कम
सपने दिखें तो
बंद अंगुलियों के
पोरों के पीछे से
ही सही कहीं
जैसे
दिखता है
सलाखों
के पीछे
एक मृत्यूदंड
पाया हुआ
अपराधी
कारागार में ।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (10-05-2014) को "मेरी हैरानियों का जवाब बस माँ" (चर्चा मंच-1608) पर भी होगी!
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार शास्त्री जी !
हटाएंबहुत बढियाँ रचना
जवाब देंहटाएंआभार भारती जी !
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