सत्य क्या है बापू
जो तूने समझाया वो
या जो लोग आज
समझा रहे हैं
सत्य कहने की
कोशिश करने वाले
पर बौखला कर
कभी आँख तो कभी
दाँत भींच कर
अपने दिखला रहे हैं
मीठा होना चाहिये
सभी कुछ
बता बता कर
हर कड़वी चीज को
मिट्टी के नीचे
दबाते जा रहे हैं
पर सत्य भी
बेशरम जैसा
बाज नहीं आ रहा है
पौलीथीन की नहीं
गलने वाली थैलियों
जैसा हो जा रहा है
जरा सा पानी
गिरा नहीं
मिट्टी के ऊपर
थैली का एक
छोटा कोना
निकल कर
बाहर आ
जा रहा है
तालियाँ पहले
बजवा कर
मदारी बंदर को
नचवा रहा है
जमूरा जम्हाई
ले रहा है
सो भी नहीं
पा रहा है
तमाशा करने
की आदत है
तमाशबीन को
कल तक सड़क पर
किया करता था
आज पेड़ की फुन्गी
के ऊपर बैठा
कठफोड़वा बना
नजर आ रहा है
अब बन ही गया तो
फिर अपना लकड़ी में
छेद कर कीड़े निकाल
कर खाने की कला
क्यों नहीं दिखा रहा है
बापू रोना सत्य को
बस इसी बात पर
ही तो आ रहा है
जो काम करने को
दिया जा रहा है
उसी से ध्यान हटाने
के लिये आज हर कोई
कोई दूसरे काम की
झंडी हिला हिला कर
सबका ध्यान हटा रहा है
जिसकी समझ में
आ रहा है वो कह दे रहा है
और पढ़ने वालों की
जम के गालियाँ खा रहा है
‘उलूक’ सत्य क्या है
सोचने पर अभी क्यों
जोर लगा रहा है
सत्य पर प्रयोग जारी है
जब तक कुछ निकल कर
बाहर नहीं आ रहा है
अभी तो बस इतना
समझ में आ रहा है
भैंस के चारों तरफ
शोर हो रहा है
किस की है पता नहीं
चल पा रहा है
क्योंकि
हर कोई एक लाठी
लेकर हवा में
जोर जोर से
घुमा रहा है ।
चित्र साभार: http://pratikdas1989.blogspot.in/2011/04/my-experiments-with-social-service.html
जो तूने समझाया वो
या जो लोग आज
समझा रहे हैं
सत्य कहने की
कोशिश करने वाले
पर बौखला कर
कभी आँख तो कभी
दाँत भींच कर
अपने दिखला रहे हैं
मीठा होना चाहिये
सभी कुछ
बता बता कर
हर कड़वी चीज को
मिट्टी के नीचे
दबाते जा रहे हैं
पर सत्य भी
बेशरम जैसा
बाज नहीं आ रहा है
पौलीथीन की नहीं
गलने वाली थैलियों
जैसा हो जा रहा है
जरा सा पानी
गिरा नहीं
मिट्टी के ऊपर
थैली का एक
छोटा कोना
निकल कर
बाहर आ
जा रहा है
तालियाँ पहले
बजवा कर
मदारी बंदर को
नचवा रहा है
जमूरा जम्हाई
ले रहा है
सो भी नहीं
पा रहा है
तमाशा करने
की आदत है
तमाशबीन को
कल तक सड़क पर
किया करता था
आज पेड़ की फुन्गी
के ऊपर बैठा
कठफोड़वा बना
नजर आ रहा है
अब बन ही गया तो
फिर अपना लकड़ी में
छेद कर कीड़े निकाल
कर खाने की कला
क्यों नहीं दिखा रहा है
बापू रोना सत्य को
बस इसी बात पर
ही तो आ रहा है
जो काम करने को
दिया जा रहा है
उसी से ध्यान हटाने
के लिये आज हर कोई
कोई दूसरे काम की
झंडी हिला हिला कर
सबका ध्यान हटा रहा है
जिसकी समझ में
आ रहा है वो कह दे रहा है
और पढ़ने वालों की
जम के गालियाँ खा रहा है
‘उलूक’ सत्य क्या है
सोचने पर अभी क्यों
जोर लगा रहा है
सत्य पर प्रयोग जारी है
जब तक कुछ निकल कर
बाहर नहीं आ रहा है
अभी तो बस इतना
समझ में आ रहा है
भैंस के चारों तरफ
शोर हो रहा है
किस की है पता नहीं
चल पा रहा है
क्योंकि
हर कोई एक लाठी
लेकर हवा में
जोर जोर से
घुमा रहा है ।
चित्र साभार: http://pratikdas1989.blogspot.in/2011/04/my-experiments-with-social-service.html
सत्य वह नही जो गान्धी जी समझा और माना था । सत्य वह है जो लोग समझ रहे हैं मान रहे हैं । बहुत ही बढ़िया कहा है आपने ।
जवाब देंहटाएंइस गांधी जयन्ती
जवाब देंहटाएंने फिर ताजा कर दी
वो पाठ जो कभी पढ़ी थी
उन इतिहास के पन्नों में
जिसमें कही गया था कि
गांधी जी अहिंसा वादी थे
सफाई पसंद भी थे
तभी तो....
निकाल फेंका
अंग्रेज रूपी कचरा
और
अहिंसकों को
आपकी इस रचना का लिंक I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया सर!
जवाब देंहटाएंसादर
कल 05/अक्तूबर/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !
बहुत सुंदर.
जवाब देंहटाएंWaqt ke saath log saty ki paribhashaayein badalte rahte hain ...kintu saty wahi hai jo saty hai kintu saty kyaa hai sawaal zaari hai :)
जवाब देंहटाएंBahut umda post !!