अर्जुन
अब अपनी मछली को साथ में रखता है
अब अपनी मछली को साथ में रखता है
उसकी आँख पर अब भी उसकी नजर होती है
अर्जुन का निशाना आज भी नहीं चूकता है
बस जो बदल गया है वो
कि मछली भी मछली नहीं होती है
मछली भी अर्जुन ही होती है
दोनो मित्र होते हैं दोनों साथ साथ रहते हैं
अर्जुन के आगे बढ़ने के लिये
मछली भी और उसकी आँख भी जरूरी होती है
इधर के अर्जुन के लिये उधर का अर्जुन मछली होता है
और उधर के अर्जुन के लिये इधर का अर्जुन मछली होता है
दोनो को सब पता होता है
दोनो मछलियाँ अर्जुन अर्जुन खेलती हैं
दोनो का तीर निशाने पर लगता है
दोनो के हाथ में द्रोपदी होती है
चीर होता ही नहीं है कहीं
इसलिये हरण की बात कहीं भी नहीं होती है
कृष्ण जी भी चैन से बंसी बजाते है
‘उलूक’ की आदत
अब तक तो आप समझ ही चुके होंगे
अब तक तो आप समझ ही चुके होंगे
उसे हमेशा की तरह
इस सब में भी खुजली ही होती है ।
चित्र साभार: www.123rf.com
nice post
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बृहस्पतिवार (23-04-2015) को "विश्व पृथ्वी दिवस" (चर्चा अंक-1954) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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विश्व पृथ्वी दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 17 अक्टूबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 25 मई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सराहनीय
जवाब देंहटाएंवाह! बहुत खूब!
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