दूर करें
अकेलापन
बहुत
आसानी से
किसी भी
भीड़ में एक
कहीं घुसकर
खो जायें
आओ
एक चोर हो जायें
मुश्किल है
बचाना
सोच को अपनी
बहुत दिनों तक
क्या परेशानी है
आओ
जंगल में
नाचता हुआ
एक मोर हो जायें
कारवाँ
भटकने
लगे हैं रास्ते
पहुचने की
किसने ठानी है
खोने का डर
निकालें दिल से
आओ
निडर होकर
किसी गिरोह
को जोड़ने की
एक डोर हो जायें
सच रखे हैं
सबने अपने
अपनी जेब में
कौन सा
बेईमानी है
बहुमत
की मानें
इतने सारे
एक से हैं
आओ
एक और हो जायें
पाठ्यक्रम
सारे बदल गये हैं
किताबें सब पुरानी हैं
‘उलूक’ की
बकबक में
दिमाग ना लगायें
आओ
किसी की
पाली हुयी
एक ढोर हो जायें।
चित्र साभार: www.shutterstock.com
उसकी बात
करना
सीख क्यों
नहीं लेता है
भीड़ से
थोड़ी सी
नसीहत क्यों
नहीं लेता है
सोचना
बन्द कर के
देख लिया
कर कभी
दिमाग को
थोड़ा आराम
क्यों नही देता है
तेरा मकसद
पूछता है
अगर
उसका झण्डा
झण्डा
नहीं हूँ
कहकर
जवाब क्यों
नहीं देता है
आइना
नहीं होता है
कई लोगों
के घर में
अपने
घर में है
कपड़े उतार
क्यों
नहीं लेता है
साथ में
रहता है
अंधा बन
पूरी आँखे
खोलकर
पूछता है
क्या
लिखता है
बता क्यों
नहीं देता है
शराफत से
नंगा हो
जाता है
भीड़ में भी
एक शरीफ
नंगों की
भीड़ को
अपना पता
पता नहीं
क्यों नहीं
देता है
बहुत कुछ
लिखना है
पता होता है
‘उलूक’
को भी
हर समय
उस के
ही लोग हैं
उसके ही
जैसे हैं
रहने भी
क्यों नहीं
देता है ।
चित्र साभार: www.fineartpixel.com
गुरुआइन को
सुबह से
क्रोध आ रहा है
कह कुछ
नहीं रही है
बस
छोटी छोटी
बातों के बीच
मुँह कुछ लाल
और
कान थोड़ा सा
गुलाल हो
जा रहा है
गुरु के चेले
पौ फटते ही
शुरु हो लिये हैं
कहीं चित्र में
चेला गुरु के
चरणों में झुका
कहीं गुरु चेले की
बलाइयाँ लेता
नजर आ रहा है
चेले गुरु को
भेज रहे हैं
शुभकामनाएं
गुरु मन्द मन्द
मुस्कुरा रहा है
ब्रह्मा विष्णु
महेश ही नहीं
साक्षात परम ब्रह्म
के दर्शन पा लिया
दिखा कर चेला
धन्य हुआ जा रहा है
‘उलूक’ आदतन
अपने पंख लपेटे
सूखे पेड़ के
खोखले ठिये पर
बार बार पंजे
निकाल कर
अपने कान
खुजला रहा है
गुरु चेलों की
संगत में
अभी अभी
सामने सामने
दिखा नाटक
और
तबलेबाजी
का नजारा
उससे
ना उगला
जा रहा है
ना निगला
जा रहा है
कैसे समझाये
गुरुआइन को गुरु
उसे पता है
आज शाम
पूर्णिमा को
ग्रहण लगने
जा रहा है
इतिहास का
पहला वाकया है
चाँद भी
पीले से
लाल होकर
अपना क्रोध
कलियुगी
गुरु के
साथ पूर्णिमा
को जोड़ने
की बात पर
दिखा रहा है
थूक
देना चाहिये
गुरुआइन ने भी
आज अपना क्रोध
सुनकर
गुरु की
पूर्णिमा को
आज ग्रहण
लगने जा रहा है।
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बहुत
लिख लिया
एक ही
मुद्दे पर
पूरे महीने भर
इस
सब से
ध्यान हटाते हैं
शेरो शायरी
कविता कहानी
लिखना लिखाना
सीखने सिखाने
की किसी दुकान
तक हो कर
के आते हैं
कई साल
हो गये
बकवास
करते करते
एक ही
तरीके की
कुछ नया
आभासी
सकारात्मक
बनाने
दिखाने
के बाद
फैलाने का भी
जुगाड़ अब
लगाते हैं
घर में
लगने देते हैं आग
घुआँ सिगरेट का
समझ कर पी जाते हैं
बची मिलती है
राख कुछ अगर
इस सब के बाद भी
शरीर
में पोत कर खुद ही
शिव हो जाते हैं
उसके
घर की तरफ
इशारे करते हैं
जाम
इल्जाम के बनाते हैं
नशा हो झूमे शहर
बने एक भीड़ पागल
इस सब के पहले
अपने घर के पैमाने
बोतलों के साथ
किसी मन्दिर की
मूरत के पीछे
ले जाकर छिपाते हैं
बरसात
का मौसम है
बादलों में चल रहे
इश्क मोहब्बत की
खबर एक जलाते हैं
कहीं से भी
निकल कर आये
कोई नोचने बादलों को
पतली गली
से निकल कर कहीं
किनारे
पर बैठ नदी के
चाय पीते हैं
और पकौड़े खाते हैं
ये कारवाँ
वो नहीं रहा ‘उलूक’
जिसे रास्ते खुद
सजदे के लिये ले जाते हैं
मन्दिर मस्जिद
गुरुद्वारे चर्च की
बातें पुरानी हो गयी हैं
चल किसी
आदमी के पैरों में
सबके सर झुकवाते हैं ।
चित्र साभार: www.thecareermuse.co.in
(21/07/2018 की पोस्ट:‘शरीफों की बस्ती है कुछ नहीं होना है एक नंगे चने की बगावत से’ की अगली कड़ी है ये पोस्ट। इसका देश और देशप्रेम से कुछ लेना देना नहीं है। उलूक की अपनी दुकान की खबर है जहाँ वो भी कुछ सरकारी बेचता है )
पहले से
पता था
कुछ नया
नहीं होना था
खाली टूटी
मेज कुर्सियाँ
सरकार की
दुकान में
सरकारी
हिसाब किताब
जैसा ही
कुछ होना था
सरकारी
दुकान थी
सरकार के
दुकानदार थे
सरकारी
सामान था
किसी के
अपने घर का
कौन सा
नुकसान
होना था
दुकानदार
को भी
आदेशानुसार
कुछ देर
घड़ियाली
ही तो रोना था
दुकान
फिर से
खुलने की
खुशखबरी
आनी थी
दो दिन बस
बंद कर रहे हैं
की खबर
फैलानी थी
दुकान
बंद हो रही है
दुकानदारों की
फैलायी खबर थी
अखबार वाले
भी आये थे
अच्छी पकी
पकायी खबर थी
दस्तखत की
जरूरत नहीं थी
दुकान वालों
की लगायी
दुकान की
ही मोहर थी
सरकारी
दुकान के अन्दर
खोली गयी
व्यक्तिगत
अपनी अपनी
दुकान थी
बन्द होने की
खबर छपने से
दुकानदारों की
निकल रही जान थी
तनखा
सरकारी थी
काम सरकारी था
समय सरकारी
के बीच कुछ
अपना निकाल
ले जाने की
मारामारी थी
‘उलूक’
देख रहा था
उल्लू का पट्ठा
उसे भी देखने
और देखने
के बाद लिखने
की बीमारी थी
बधाई थी
मिठाई थी
शरीफों की
बाँछे फिर से
खिल आयी थी
दुकान की
ऐसी की तैसी
पीछे के
दरवाजों में
बहुत जान थी ।
चित्र साभार: www.gograph.com
शरीफों
ने तोड़ी
कुर्सियाँ
शरीफों की
लात
मार कर
शराफत
के साथ
मेज फेंकी
शराफत से
दी
भेंट में
कुछ
गालियाँ
शरीफों
की ही दी
इजाजत से
काँच
की बोतलें
रंगीन पानी
खुश्बू
शराफत की
और मुँह
शरीफों के
साकी
छिड़क
रही थी
अल सुबह से
वीरों पर
थोड़ी सी बस
कुछ नफासत से
शरीफों ने
इजहार किया
शराफत का
शरीफों
के सामने
शरीफ बैठे
शराफत के साथ
मिले बातें किये
और चल दिये
शराफत से
जश्ने शराफत
घर में हो रहा था
कुछ शरीफों के ही
ऐसा कहना
शराफत नहीं
सम्मानित
देश भर के
भी दिखा
रहे थे
शराफत
शरीफ
बने थे
महारथी
शराफत की
महारत से
किताबें
शराफत की
शराफत के
स्कूलों की
बातें
शरीफों की
पढ़ने पढ़ाने की
इजाजत
नहीं है
बकने की
बकाने की
'उलूक’
शरीफों
की बस्ती है
कुछ
नहीं होना है
एक नंगे
चने की
बगावत से।
चित्र साभार: forum.wordreference.com
दो और दो
जोड़ कर
चार ही तो
पढ़ा रहा है
किसलिये रोता है
दो में एक
इस बरस
जोड़ा है उसने
एक अगले बरस
कभी जोड़ देगा
दो और दो
चार ही सुना है
ऐसे भी होता है
एक समझाता है
और चार जब
समझ लेते हैं
किसलिये
इस समझने के
खेल में खोता है
अखबार की
खबर पढ़ लिया कर
सुबह के अखबार में
अखबार वाले
का भी जोड़ा हुआ
हिसाब में जोड़ होता है
पेड़
गिनने की कहानी
सुना रहा है कोई
ध्यान से सुना कर
बीज बोने के लिये
नहीं कहता है
पेड़ भी
उसके होते हैं
खेत भी
उसके ही होते हैं
हर साल
इस महीने
यहाँ पर यही
गिनने का
तमाशा होता है
एक भीड़ रंग कर
खड़ी हो रही है
एक रंग से
इस सब के बीच
किसलिये
उछलता है
खुश होता है
इंद्रधनुष
बनाने के लिये
नहीं होते हैं
कुछ रंगों के
उगने का
साल भर में
यही मौका होता है
एक नहीं है
कई हैं
खीचने वाले
दीवारों पर
अपनी अपनी
लकीरें
लकीरें खीचने
वाला ही एक
फकीर नहीं होता है
उसने
फिर से दिखानी है
अपनी वही औकात
जानता है
कुछ भी कर देने से
कभी भी यहाँ कुछ
नहीं होना होता है
मत उलझा
कर ‘उलूक’
भीड़ को
चलाने वाले
ऐसे बाजीगर से
जो मौका मिलते ही
कील ठोक देता है
अब तो समझ ले
बाजीगरी बेवकूफ
किसी किसी
आदमी की
सोच में
हमेशा ही एक
हथौढ़ा होता है ।
चित्र साभार: cliparts.co
जो भी
आप समझायेंगे
हजूर
हम समझा देंगे
किस
किस को
समझाना है
क्या क्या
और
कैसे कैसे
बताना है
हमें
लिख कर
बता देंगे
हजूर
हम समझा देंगे
मत
समझियेगा
हम भी
समझ
ले रहे हैंं
वो सब
जो
आप
लोगों को
समझाने
के लिये
हमें समझा रहे हैं
हम
आप के
कहे को
जैसे का तैसा
इधर से उधर
पहुँचा देंगे हजूर
हम समझा देंगे
खाली
किस लिये
अपना दिमाग
लगाना है
आप के
दिमाग में जब
सब कुछ सारा
बहुत सारा
तेज धार
का पैमाना है
इशारा
करिये तो सही
पानी में ही
आग लगा देंगे
हजूर
हम समझा देंगे
अखबार में
आने वाली है
खबर पक कर
रात भर में
नमक
मसालों को
ही बदलवा देंगे
हजूर
हम समझा देंगे
नहीं होगा
नहीं होगा
छपवा कर
रखवा भी
दिया होगा
कहाँ तक
रखवायेगा कोई
और
ऊपर से
जोर की डाँठ
पड़वा देंगे
हजूर
हम समझा देंगे
चिंता
जरा सा
भी मत
कीजियेगा
ज्यादा
से ज्यादा
कुछ नहीं होगा
टेंट
लगवा कर
दो चार दिन
एक भीड़
को बैठा देंगे
हजूर
हम समझा देंगे
‘उलूक’
तू भी
आँख बन्द कर
कान में उँगली
डाल कर बैठा रह
किसी
दिन आकर
तुझे भी
दो चार दिन
देश
चलाने की
किताब के
दो पन्ने
तेरे शहर के
पढ़ा देंगे
हजूर
हम समझा देंगें।
चित्र साभार: http://www.newindianexpress.com