शनिवार, 19 जुलाई 2025

शेख ही जब गुबार हो गया है

ताजा है खबर
पानी सारे जहां का सुथरा और साफ हो गया है
घिसा गया है इतना शरीर दर शरीर
उसे आदमी आदमी याद हो गया है

कुछ धुला है कुछ घुला है कुछ तैरा है कुछ बह गया है
कुछ चक्कर लगाकर लगाकर भंवर में उस्ताद हो गया है

गिन लिए गए हैं तारे आसमान के एक एक करके सारे सभी
बारह का पहाड़ा ही लेकिन बस एक इतिहास हो गया है

आस्था के सैलाब जर्रे जर्रे पर लिए खड़े हैं विशाल बेमिसाल झंडे
विज्ञान को अपने अज्ञान का होना ही था आभास विश्वास हो गया है

रेत पर खींच दी गई लकीरें ज़ियादा समझ ले रहे हैं अब लोग
शब्द ढूंढ रहे हैं रोजगार बाजार भी कुछ बेज़ार हो गया है

‘उलूक’ ताकता रह आसमान की ओर लगातार टकटकी लगा कर
कारवां किसलिए सोचना हुआ अब यहाँ शेख ही जब गुबार हो गया है |

 चित्र साभार:
https://www.dreamstime.com/

3 टिप्‍पणियां:

  1. बारह का पहाड़ा ... क्या तुक बंदी है ... वाह ...

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 21 जुलाई 2025 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं
  3. आस्था के सैलाब जर्रे जर्रे पर लिए खड़े हैं विशाल बेमिसाल झंडे
    विज्ञान को अपने अज्ञान का होना ही था आभास विश्वास हो गया है
    आस्था के आगे विज्ञान फेल 👌
    कभी विज्ञान ही सर्वोपरि
    आकाओं की मर्जी आकाओं का खेल
    बहुत ही लाजवाब ।

    जवाब देंहटाएं