बुधवार, 16 सितंबर 2009

सब्र

गिरते मकान को चूहे भी छोड़ देते सभी ।
अब इस दिल में कोइ नहीं रहता यारो ।।

चार दिन की चाँदनी बन के आयी थी वो कभी ।
उन भीगी यादों को अब कहां सम्भालूं यारो ।।

खून से सींच कर बनाया था इस दिल को आशियां ।
अंधेरा मिटाने को फिर दिल जला दिया यारो ।।

अपने हालात पे अब यूं भी रोना नहीं आता ।
जब था रोशन ये मकां बहुत नाम था इसका यारो ।।

सजने सवरने खुशफहम रहने के दिन उनके हैं अभी ।
वो जन्नत में रहें दोजख से ये दिखता रहे यारो ।।

अपनी आहों से सवारूंगा फिर से ये मकां ।
तुम भी कुछ मदद कुछ दुआ करो यारो ।।

13 टिप्‍पणियां:

  1. चूहों की बात निराली है
    वे नहीं छोड़ेंगे तब भी
    दबकर तो मरने से रहे

    5वां दिन भी लाओ
    चांदनी का हुजूर
    भीगी यादें वहीं
    संभाली जाती हैं

    दिल को खून से सींचते हो
    फिर आग से जला देते हो
    बड़े खूनी हो खून को आग
    लगाकर बुझा देते हो।

    चूहों से कहूंगा वे न भागा करें
    उनके बिलों को खतरा कोई नहीं है।

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  2. वाह वाह
    आनंद आ गया
    बहुत बेहतरीन रचना

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  3. वाह बहुत खुब। लाजवाब रचना, बधाई

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  4. अच्छे है भाव..लिखते रहें और शिल्प पर मेहनत करें.

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  5. wah bhaut khoob ....maja aa gaya.
    aapne meri k rachna Nari par comment dia hai parantu vo blog ab nahi hai kripya apne bahumulya comments yahan den.abhari rahungi..bahut shukriya.
    http://shikhakriti.blogspot.com/

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  6. कल 27/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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