शुक्रवार, 18 सितंबर 2009

अब खुश नजर नहीं आता


आँखों में इतनी धुंध छायी है कि बस
आइने में अपना अक्स नज़र नहीं आता ।

आने वाले पल के मंज़र में खोये हो तुम
मुझे तो बीता कल नज़र नहीं आता ।

रात की बात करते हो सोच लिया करना
मुझे दिन के सूरज में नज़र नहीं आता ।

तेरी बैचेनी को महसूस तो किया है मैने
चाहता भी हूं पर देखा ही नहीं जाता ।

भटकने लगे हो अब कहते कहते भी तुम
कहना आता है तुमसे कहा ही नहीं जाता ।

अपनी रोनी सूरत से ऊब चला हूं अब
तुम खिलखिलाते रहो मुझे रोना नहीं आता ।

कैसे कह दूं तमन्ना है अब सिर्फ मर जाने की
कुछ सुहानी यादें जिनको छोडा़ ही नहीं जाता ।

अपने वीरान शहर की बात कुछ करने की नहीं अब
बसने तेरे शहर आ भी जाता पर अब नहीं आता ।

बस इंतज़ार है अब तेरे इस शहर से गुज़रने का
तब ना कहना तुम्हें तो ठहरना ही नहीं आता ।

14 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही उम्दा कविता। इस लाजवाब कविता के लिए बहुत-बहुत बधाई.......

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  2. अच्छी प्रस्तुति....बहुत बहुत बधाई...
    मैनें अपने सभी ब्लागों जैसे ‘मेरी ग़ज़ल’,‘मेरे गीत’ और ‘रोमांटिक रचनाएं’ को एक ही ब्लाग "मेरी ग़ज़लें,मेरे गीत/प्रसन्नवदन चतुर्वेदी "में पिरो दिया है।
    आप का स्वागत है...

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  3. ठहरना यूं ही नहीं होता है
    हरना बनता है हरापन
    पर्यावरण को खूब भाता है
    आता तो है आपको सब कुछ
    बस छिपाना नहीं आता
    बताना सब आता।

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  4. अपनी रोनी सूरत से ऊब चला हूं अब
    तुम खिलखिलाते रहो मुझे रोना नहीं आता ।
    kya baat he...aap to bahut umda likhte hain yaar

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति!
    आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा कल सोमवार (01-10-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  6. हर बंद हर अ -दा खूबसूरत है ,
    कहते हो हंसना नहीं आता .

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  7. वाह भाई वाह |
    चमत्कार-
    बहुत बढ़िया भाई जी |
    बधाइयां ||

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  8. कल 12/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  9. कल 12/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद !

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  10. अपनी रोनी सूरत से ऊब चला हूं अब
    तुम खिलखिलाते रहो मुझे रोना नहीं आता ।

    लाजवाब

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  11. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज गुरुवार 24 सितंबर 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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