सोमवार, 2 नवंबर 2009

भारत की पचासवीं वर्षगांठ

प्रतीक्षा में हूँ
उन सर्द
हवाओं की
जो मेरी
अन्तरज्वाला
को शांत करें ।

प्रतीक्षा में हूँ
उन गरम
फिजाओं की
जो मेरे
ठंडेपन को
कुछ गरम करें ।

सदियों से
मेरी गर्मी
मेरी सर्दी
से राजनीति
कर रही है ।

सर्द हवाऎं
मेरी सर्दी
को अपना
लेती हैं ।

गरम फिजाऎं
मेरी ज्वाला
को उतप्त
बना देती हैं

आज भी मैं
वहीं हूँ
जहाँ मैं
जल रहा था ।

आज भी मैं
वहीं हूँ
जहाँ मैं

जम रहा था ।


अब
पचास वर्षों
के बाद

मुझे इंतजार है
न सर्द
हवाओं का ।

न इंतजार है
गरम
फिजाओं का ।

शायद यही
रास्ता है

कभी

मेरी गर्मी
मेरी सर्दी
से मिले
और
यूं ही
भटकते हुवे
मुझे स्थिरता
मिले ।

9 टिप्‍पणियां:

  1. आप आजकल कम नज़र आते हैं. आशा है कुशल मंगल होगा.
    आपको नए साल की शुभकामनाये!!

    वैसे यह कविता बेहतरीन है.

    - सुलभ

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  2. बहुत बहुत रोचक, बहुत अच्छी कल्पना है. वाकई बहुत मजा आया.

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  3. yun hi bhatakte hue mujhey sthirta mile...
    bahut sunder! :)
    Almoda apni khubsurti ke liye charchit hai... iski sunderta aapki kavitaon mein bhi jhalakti hai...
    -ojasi

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  4. बेदु पाको बारों मासा ......

    इस जानकारी के लिए धन्यवाद की उपरोक्त गीत के गीतकार कुमाऊ के मशहूर कवी थे, लकिन कौन थे ?

    बात वही की वही .............वो अफसाना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन, उसे एक खूबसूरत मोड़ देकर

    छोड़ना बेहतर .......... सॉरी / आपकी कमेन्ट के संदर्भ मै (पता कर लें )......

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  5. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 22 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  6. आज भी मैं
    वहीं हूँ
    जहाँ मैं
    जल रहा था ।
    आज भी मैं
    वहीं हूँ
    जहाँ मैं
    जम रहा था ।...वाह! बहुत सुंदर अभिव्यक्ति आदरणीय सर.

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