आदमी
घूमता है तारा बन
घूमता है तारा बन
अपने ही बनाये सौर मण्डल में
घूमते घूमते भूल जाता है
घूमना है उसे
अपने ही सूरज के चारों ओर
जिंदगी के हर हिस्से के सूरज
नज़र आते हैंं उसे अलग अलग
घूमते घूमते
भूल जाता है चक्कर लगाना
भूल जाता है चक्कर लगाना
और
लगने लगता है उसे
लगने लगता है उसे
वो नहीं
खुद सूरज घूम रहा है
खुद सूरज घूम रहा है
उसके ही चारों ओर ।
चित्र साभार: https://www.123rf.com/
चित्र साभार: https://www.123rf.com/
अच्छी रचना
जवाब देंहटाएंघूमे कोई भी
जवाब देंहटाएंसिर अपना
जरूर घूमता है
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएं--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (01-09-2014) को "भूल गए" (चर्चा अंक:1723) पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
उम्दा प्रस्तुति |
जवाब देंहटाएंज्यादा घुमने वाले आदमी को घुमक्कड़ कहते है !...सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंगणपति वन्दना (चोका )
हमारे रक्षक हैं पेड़ !
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 21 जुलाई 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंजीवन का दूसरा नाम ही भ्रम है! 🙏
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
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