सोमवार, 5 मार्च 2012

मैं आज

मुड़ते ही अचानक
फिर मुझे आज
मैं मिल गया
अवाक रह गया
अपने को देख
कर अचानक
बहुत कुछ बदल गया था
दिख रहा था साफ साफ
फ्रेम वही था घिसा पिटा
पर फोटो उसमें एक
डुप्लीकेट बनवाई
लग रही थी
अपनी हरामखोरी
देख देख कर
मेरी नजरें झुक झुक
सी जा रही थी
पर शरम मुझे
फिर भी थोड़ी सी भी
नहीं आ रही थी
मै वाकई में ऎसा
कभी नहीं रहा
ना ही कोई मेरे को
ऎसा कहने की
हिम्मत कर सकता है
पर जो मै होता जा रहा हूँ
वो मुझे तो पता ही होता होगा
तुमको क्या करना
मत सोचो
तुम अपनी फिक्र मत करो
क्योंकि तुम तो तुम
हो ही ना बहुत साफ साफ
और सूखे हुवे
मैं कुछ कर ही लूंगा
अपने लिये आज
नहीं तो कल
सीख लूंगा बारहखड़ी
खुद को खड़ा करने
के लिये कीचड़ में
कमल की फोटोस्टेट
बड़ी आसानी से
हो सकती है
लगा लूंगा
तुमको ताली बजाना
तो बहुत आता है
इस जमाने के
लूलों लंगड़ो़ के लिय
बिना बात के
फिर चिंन्ता किसको है
आओ बनाये एक पैग
तगड़ा वाला
खुदा के नाम पर
चीयर्स जय श्री राम जी ।

1 टिप्पणी:

  1. शीर्षक में है सादगी, मिला मसाला खूब ।
    पीने का टाइम हुआ, गए घड़े में डूब ।।
    गए घड़े में डूब, होश की बातें भूले ।
    नहीं तनिक भी ऊब, मस्त हो झूले झूले ।
    पचपन थी यह देह, पचासी होती जाये ।
    मद्य पचा सस्नेह, बुराई सारी भाये ।।


    दिनेश की टिप्पणी : आपका लिंक

    dineshkidillagi.blogspot.com


    होली है होलो हुलस, हुल्लड़ हुन हुल्लास।
    कामयाब काया किलक, होय पूर्ण सब आस ।।

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