बुधवार, 4 अप्रैल 2012

रास्ता

मेरा रास्ता तो
रास्ते में ही
खो जाता है

लगता है
सही रास्ता
खुद ही
भटक
जाता है

लोगों
का रास्ता
शायद
मंजिल तक
जाता है

जब भी
मैं कहीं
को जाता हूँ
अपने रास्ते
में किसी को
कभी भी
नहीं पाता हूँ

लोग तो
जा रहे
होते हैं
समूह भी
बना रहे
होते हैं

वर्षों से
लोगों ने
रास्ते
बनाये हैं

बना कर
कई रास्ते
रास्ते में छोड़
भी आये हैं

उन रास्तों
ने किसी
को नहीं
भटकाया है

हो सका है
तो भटके
हुवे को ही
रास्ता
दिखाया है

आज भी
लोग नये
रास्ते बनाते
चले जा रहे हैं

आगे को
जा रहे हैं
पीछे के
रास्ते को
रास्ते से
हटाते
जा रहे हैं

जानते हैं
जहां
वो रास्ता
उन्हें
पहुंचायेगा

पीछे वाला
भी कभी
ना कभी वहां
पहुंच ही जायेगा

रास्ते का भेद
रास्ते में ही
खुल जायेगा।

2 टिप्‍पणियां:

  1. वाह बहुत उम्दा प्रस्तुति!
    अब शायद 3-4 दिन आना न हो पाये!
    उत्तराखण्ड सरकार में दायित्व पाने के लिए भाग दौड़ में लगा हूँ!

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  2. रास्ते ने काफी उलझा दिया .... निरंतर चलते रहने से कभी तो मंजिल मिलेगी ... अच्छी प्रस्तुति

    जवाब देंहटाएं