बुधवार, 11 अप्रैल 2012

जयजयकार बिल्लियों की

सौ चूहे भी खा गयी
बिल्ली कबका हज
कर के भी आ गयी
बिल्ली अब
हाजी कहलाती है
बिल्ली अब
चूहे नहीं खाती है
बिल्ली
चूहों को हिंसक होने
के नुकसान बताती है
बिल्ली अब
देशप्रेमी कहलाती है
केन्द्रीय सरकार से
सीधे पैसे ले के आती है
सरकारी कार्यक्रम
हो नहीं पाते हैं
अगर बिल्ली वहाँ
नहीं आती है
बिल्ला भी दांतो का नया
सेट बनवा के लाया है
उसने भी घर पर
मुर्गियों के लिये
एक आश्रम बनवाया है
बीमार मुर्गे मुर्गियों
को रोज दाना खिलाता है
उसके लिये सरकारी
ग्राँट भी लेके आता है
अपने बुड्ढे बुढ़ियों से
बरसों से इसी कारण
नहीं मिल पाता है
बिल्ली और बिल्ले
के बलिदान को देख
मेरी आँखे भर आती हैं
वो दोनो जब गाड़ी
से जा रहे होते हैं
लेट कर प्रणाम करने
की तीव्र इच्छा जाग
ही जाती है ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. bahut badhiya vyangya.. baba nagarjun kee yaad aa rahi hai... sarkari naukar hone ke naate bahut chubh bhi rahi hai....

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  2. इच्छा कर ले नियंत्रित, जाना कहीं न लेट ।

    चूहों को खाते नहीं, उल्लू लेत लपेट ।

    उल्लू लेत लपेट, आज-कल कम्बल ओढ़े ।

    घी से भरते पेट, समझ न गलत निगोड़े ।

    मिलते उल्लू ढेर, सोच की करो समीक्षा ।

    अंधे हाथ बटेर, नहीं तो करती इच्छा ।।

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  3. उत्कृष्ट कृति |
    बुधवारीय चर्चा-
    मस्त प्रस्तुति ||

    charchamanch.blogspot.com

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  4. बहुत बढ़िया कटाक्ष करती रचना
    सादर

    अनु

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  5. उत्कृष्ट व्यंग्य कविता....

    शुभकामनाएँ !

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