शनिवार, 19 मई 2012

ब्राह्मण और मीट

ब्राह्मणों ने शुरु किया
जब से मीट है खाना
बूचडो़ ने सोच लिया
मीट का दाम है बढ़ाना
चाह रहे थे बैंक वाले भाई
तिवारी जी को समझाना
कालेज को जाते समय
ये वाकया सामने आया
तिवारी जी ने जब मुझे
आवाज दे कर बुलाया
एक जमाना था पुराना
कर्म आधार था
वर्ण व्यवस्था का
चार वर्ण में मेरे देश
का आदमी आपस
में बंटता था
जमाना बहुत ही आगे
चला आज आया
आदमी ने भी अपने
कर्मों का दायरा बढा़या
मास्टर स्कूल में
पढा़ना छोड़ के आया
डाक्टर हस्पताल की
दवाई ही बेच आया
बैंक वाले ने गरीब की
भैंस के लोन पर खाया
हर कोई आज ऊपर की
कमाई चाहता है
करता खुद कुछ है और
सामने वाले को समझाता है
बिना कुछ करे किसी के भी
कंधे पर चढ़ कर ऊपर की
ओर जाना चाहता है
उस समय वो वर्ण व्यवस्था
को पूरा पूरा भुनाता है
एक वर्णी लोगों से मिलकर
कहीं भी हाथ मारने में
बिल्कुल नही हिचकिचाता है
काम पूरा जब हो जाता है
वर्ण व्यवस्था के खिलाफ
झंडा खुद उठाता है
सफेद टोपी निकाल के
अन्ना के जलूस की
आगवानी करने भी
आ जाता है
आज जब अधिकतर लोग
देश में हर तरफ कुछ
भी खाते चले जा रहे हैं
फिर भी बाजार में हम
रुपये का भाव गिरता
हुआ देखते चले जा रहे हैं
ऎसे में समझ में नहीं
मेरे आ पा रहा है
ब्राह्मण का मीट खाना
मीट के दाम को
कैसे बढा़ रहा है
तिवारी जी हम ये बात
बिल्कुल भी नहीं
पचा पा रहे हैं
हम भी वैसे शिकार नहीं
खा पा रहे हैं और आपके
प्रश्न का उत्तर भी नहीं
आज दे पा रहे हैं।

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल रविवार के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति आज के विचारणीय प्रश्नों के हल को खोजती

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  3. मर्मान्तक चोट!!
    अनावृत सच्चाई
    और हिंसा मांसखोरी व रक्तपिपासा पर व्यंग्य

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