बुधवार, 13 जून 2012

कुछ तो सीख

रसोईया मेरा
बहुत अच्छे
गाने सुनाता है

तबला थाली से ही
बजा ले जाता है
बस कभी कभी
रोटियां जली जली
सी खिलाता है

अखबार देने
एक ऎसा
आदमी आता है
ना कान सुनता है
ना ही बोल पाता है

हिन्दुस्तान
डालने को
अगर बोल दिया
उस दिन पक्का
टाईम्स आफ इंडिया
ले कर आ जाता है

लेकिन दांत बहुत ही
अच्छी तरह दिखाता है

बरतन धोने को जो
महिला आती हैं
छ : सिम और एक
मोबाईल दिखाती है

आते ही चार्जर को
लाईन में घुसाती है
उसके आते ही
घंटियाँ बजनी शुरु
घर में हो जाती हैं

बरतनो में खाना
लगा ही रह जाता है
पानी मेरी टंकी का
सारा नाली में बह
के निकल जाता है

मेहमान मेरे घर
में जब आते हैं
अभी तक
मास्टर ही हो क्या
पूछते हैं
फिर मुस्कुराते हैं

कुछ अब कर
भी लीजिये जनाब
की राय मुझे
जाते जाते जरूर
दे के जाते हैं

अब कुछ
उदाहरण
ही यहाँ पर
बताता हूँ
चर्चा को
ज्यादा लम्बा
नहीं बनाता हूँ

बाकी लोगों के
कामों की लिस्ट
अगले दिन के
लिये बचाता हूँ

पर इन सब से
पता नहीं मैं
अभी तक भी
कुछ भी क्यों नहीं
सीख पाता हूँ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. सुख से अगर है रहना, तो रसोइए की सहना!
    रचना बहुत बढ़िया लगी!

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  2. आपकी पोस्ट कल 14/6/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें
    चर्चा - 902 :चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  3. सिखा सिखाया मास्टर, नहीं सका कुछ सीख ।

    रहा पिछड़ता रेस में, रही निकलती चीख ।

    रही निकलती चीख, भीख में राय मिल रही ।

    करिए कुछ श्रीमान , पैर की जमीं हिल रही ।

    दाई हॉकर कुकर, साथ किस्मत लिखवाया ।

    करते क्यूँकर सफ़र, नहीं क्यूँ सिखा सिखाया ।।

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  4. सब कुछ सीखा हमने न सीखी....

    सुंदर रचना।सादर।

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  5. सब जगह मुफ्त राय देने वाले हैं ....सिखाते ही रहते हैं !
    शुभकामनायें आपको !

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