सोमवार, 24 सितंबर 2012

खरपतवार से प्यार

जंगल की सब्जियों
फल फूल को छोड़

घास फूस खरपतवार
के लिये थी जो होड़

उसपर शेर ने जैसे
ही विराम लगवाया

फालतू पैदावार
के सब ठेकों को

दूसरे
जंगल के
घोडों को
दिलवाने का
पक्का
भरोसा दिलवाया

लोमड़ी के
आह्वाहन पर
भेड़ बकरियों ने
सियारों के साथ
मिलकर आज
प्रदर्शन करवाया

परेशानी क्या है
पूछने पर
ऎसा कुछ
समझ में है आया

बकरियों ने
अब तक
घास के साथ
खरपतवार को
जबसे है उगाया

हर साल की बोली में
हजारों लाखों का
हेर फेर है करवाया

जिसका
हिसाब किताब
आज तक कभी भी
आडिट में नहीं आया

लम्बी चौड़ी
खरपतवार के बीच में
सियारों ने भी
बहुत से खरगोशों
को भी शिकार बनाया

जिसका पता
किसी को
कभी नहीं चल पाया

एक दो खरगोश
का हिस्सा
लोमड़ी के हाथ भी
हमेशा ही है आया

माना कि अब
खाली सब्जी ही
उगायी जायेगी

सबकी सेहत भी
वो बनायेगी

पर घास
खरपतवार की
ऊपर की कमाई
किसी के हाथ
नहीं आयेगी

सीधे सीधे
हवा में घुस जायेगी

इसपर नाराजगी
को है दर्ज कराया

बीस की भीड़ ने
एक आवाज से
सरकार को
है चेताया

सौ के नाम
एक पर्ची में
लिखकर

कल के
अखबार में
छपने के लिये
भी है भिजवाया ।

10 टिप्‍पणियां:

  1. जबरदस्त आक्रोश |
    विद्रोही कथा |

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  2. आज की व्यवस्था पर बहुत सटीक व्यंग्य...

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  3. अंधे आगे रोवे अपने नैना खोवे .किसी व्यंग्य किसी व्यंजना का अब किसी पे कोई प्रभाव नहीं पड़ता ,कैसे उल्लुओं से पाला पड़ा है उलूक टाइम्स में छपते -छपते ....

    बहुत खूब विडंबना औ हेरा फेरी को उभारा है सराकरी शातिरों की ,विदेशी खातिरों की ....

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  4. आज की व्यवस्था पर सटीक व्यंग..बहुत बढ़िया..नई पोस्ट पर आप का स्वागत..

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