शुक्रवार, 28 सितंबर 2012

बक बक संख्या तीन सौ

ये भी क्या बात है
उसको देख कर ही
खौरा तू जाता है

सोचता भी नहीं
क्यों जमाने के साथ
नहीं चल पाता है

अब इसमें उसकी
क्या गलती है
अगर वो रोज तेरे
को दिख जाता है
जिसे तू जरा सा भी
नहीं देखना चाहता है

तुझे पता है उसे देख
लेना दिन में एक बार
मुसीबत कम कर जाता है
भागने की कोशिश जिस
दिन भी की है तूने कभी
वो रात को तेरे सपने में
ही चला आता है

जानता है वो तुझे बस
लिखना ही आता है
इसलिये वो कुछ ऎसा
जरूर कर ले जाता है
जिसपर तू कुछ ना कुछ
लिखना शुरू हो जाता है

वैसे तेरी परेशानी का
एक ही इलाज अपनी
छोटी समझ में आता है

ऊपर वाले को ही देख
उसे उसके किसी काम पर
गुस्सा नहीं आता है

सब कुछ छोड़ कर तू
उसको ही खुदा अपना
क्यों नहीं बनाता है

खुदा का तुझे पता है
दिन में दिखना छोड़
वो किसी के सपने में
भी कभी कहाँ आता है ।

13 टिप्‍पणियां:

  1. वाह |
    बधाई -
    पकड़ में जो शब्द आया वह खौरा आया-
    इसलिए -
    केवल शुभकामनायें-
    चलती रहे यूँ ही यह बक बक-
    चतुर कोने में जायेंगे दुबक-

    हा हा हा हा

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  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति!
    इस प्रविष्टी की चर्चा कल शनिवार (29-09-2012) के चर्चा मंच पर भी होगी!
    सूचनार्थ!

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  3. अदृश्य व्यंजना और द्रश्य शब्द चित्र लिए आई है यह रचना .सच मुच कुछ लोग शब्द पीड़ित होतें हैं .शब्द की ताकत से निरंतर पिट्तें हैं पर बाज़ नहीं आते .

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  4. इस टिप्पणी को एक ब्लॉग व्यवस्थापक द्वारा हटा दिया गया है.

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  5. खुदा का तुझे पता है
    दिन में दिखना छोड़
    वो किसी के सपने में
    भी कभी कहाँ आता है !!
    बहुत रोचक प्रस्तुति..!

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