शनिवार, 27 अप्रैल 2013

मेरी संस्था मेरा घर मेरा शहर या मेरा देश कहानी एक सी

उसे लग रहा है
मेरा घर शायद
कुछ बीमार है
पता लेकिन नहीं
कर पा रहा है
कौन जिम्मेदार है
वास्तविकता कोई
जानना नहीं चाहता है
बाहर से आने वाले
मेहमान पर तोहमत
हर कोई लगाता है
बाहर से दिखता है
बहुत बीमार है
शायद किसी जादूगर
ने किया जैसे वार है
पर घाव में पडे़ कीडे़
किसी को नजर
कहाँ आते हैं
हमारे द्वारा ही तो
छुपाये जाते हैं
वो ही तो घाव के
मवाद को खाते हैं
अंदर की बात
यहाँ नहीं बताउंगा
घर का भेदी
जो कहलाउंगा
खाली कुछ सच
कह बैठा अगर
हमाम के बाहर भी
नंगा हो जाउंगा
असली जिम्मेदार
तो मैं खुद हूँ
किसी और के
बारे में क्या
कुछ कह पाउंगा
लूट मची हो जहाँ
अपने हिस्से के लिये
जरूर जोर लगाउंगा ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (28-04-2013) अगले जनम मोहे बिटिया न कीजो : चर्चामंच १२२८ में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सिर्फ यही कहूंगी बहुत ईमानदार अभिव्यक्ति ......

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