शनिवार, 18 मई 2013

कुछ अच्छा लिख ना

आज कुछ तो
अच्छा लिखना
रोज करता है
यहाँ बक बक
कभी तो एक
कोशिश करना
एक सुन्दर सी
कविता लिखना
तेरी आदत में
हो गया है शुमार
होना बस हैरान
और परेशान
कभी उनकी तरह
से कुछ करना
जिन्दगी को रोंदते
हुऎ जूते से
काला चश्मा
पहने हुऎ हंसना
गेरुआ रंगा
कर कुछ कपडे़
तिरंगे का
पहरा करना
अपने घर मे
क्या अटल
क्या सोनिया
कहना
दिल्ली में
करेंगे लड़ाई
घर में साथ
साथ रहना
ले लेना कुछ
कुछ दे देना
इस देश में
कुछ नहीं
है होना
देश प्रेम
भगत सिंह का
दिखा देना
बस दिखा देना
बता देना वो
सब जो हुआ
था तब बस
बता देना
लेना देना
कर लेना
कोई कुछ
नहीं कहेगा
गाना इक
सुना देना
वन्दे मातरम
से शुरु करना
जन गण मन
पर जाकर
रुका देना
कर लेना जो
भी करना हो
ना हो सके तो
पाकिस्तान
के ऊपर ले जा
कर ढहा देना
सब को सब
कुछ पता होता है
तू अपनी किताब
को खुला रखना
आज कुछ तो
अच्छा लिखना
रोज करता है
यहाँ बक बक
कभी तो एक
कोशिश करना
एक सुन्दर सी
कविता लिखना ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज रविवार (19-05-2013) के मंजिल को हँसी-खेल समझना न परिन्दों : चर्चा मंच- 1249
    मयंक का कोना
    पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बढ़िया प्रस्तुति !
    डैश बोर्ड पर पाता हूँ आपकी रचना, अनुशरण कर ब्लॉग को
    अनुशरण कर मेरे ब्लॉग को अनुभव करे मेरी अनुभूति को
    latest postअनुभूति : विविधा
    latest post वटवृक्ष

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  3. बेचारा वह अच्छा ही लिखता , पर अच्छे पढ़ने वाले कहाँ है ?

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