शुक्रवार, 14 जून 2013

दिशा है अगर तो है दिशाहीन

दिशा लेकर
चलता है
बस वो

एक ही
अकेला होता है

दिशाहीनो का
तो एक
मसीहा होता है

मेरे घर में
होता है और
ऎसा होता है

कहने को
हर कोई
बहुत कुछ
कहता है


जो करना ही
नहीं होता है
वही तो
वो कहता है

मेरी बात पर
तू कभी
कुछ नहीं
कहता है

तेरे घर में क्या
ये नहीं होता है

मेरे घर के
मुखिया को
सब पता होता है

जब भी
कुछ होता है
तो वो कहीं भी
नहीं होता है

देश में पल पल
जो हो रहा होता है

वही सब मेरे घर में
घट रहा होता है

कोई गांधी और
कोई गोडसे
की दुहाई दे
रहा होता है

कोई पटेल
के नाम का
लोहा ले
रहा होता है

जो जो कह
रहा होता है
वो कहीं नहीं
हो रहा होता है

मेरे घर में रोज
ऎसा ही हो
रहा होता है

तेरे घर में
बता भी दिया
कर कभी

क्या कुछ स्पेशल
हो रहा होता है

मैं रोज अपने घर
की बात करता हूँ

फिर भी तू
कुछ कहाँ कह
रहा होता है

मेरे देश में
कैसे मान लूं
कुछ अलग
हो रहा होता है

जब मेरे ही
घर में रोज
ऎसा ही हो
रहा होता है ।

1 टिप्पणी:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल शनिवार (15-06-2013) के (चर्चा मंचःअंक-1276) "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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