शुक्रवार, 20 सितंबर 2013

एक भीड़ एक पोस्टर और एक देश



इधर
कुछ 
पढ़े लिखे कुछ अनपढ़
एक दूसरे के ऊपर चढ़ते हुऐ

एक सरकारी 
कागज हाथ में
कुछ जवान कुछ बूढ़े
किसी को कुछ पता नहीं
किसी से कोई कुछ पूछता नहीं

भीड़
जैसे भेड़ 
और बकरियों का एक रेहड़
कुछ लैप टौप तेज रोशनी फोटोग्राफी
अंगुलियों और अंगूठे के निशान
सरकार बनाने वालों को मिलती एक खुद की पहचान
एक कागज का टुकड़ा 'आधार' का अभियान

उसी भीड़ का अभिन्न 
हिस्सा 'उलूक'
गोते लगाती हुई उसकी अपनी पहचान
डूबने से अपने को बचाती हुई

दूसरी तरफ
शहर की सड़कों पर बजते ढोल और नगाड़े
हरे पीले गेरुए रंग में बटा हुआ देश का भविष्य

थम्स अप लिमका 
औरेंज जूस 
प्लास्टिक की खाली बोतलें 
सड़क पर बिखरे
खाली 
यूज एण्ड थ्रो गिलास 
हजारों पैंप्लेट्स

नाच और नारे
परफ्यूम से ढकी सी आती एल्कोहोल की महक
लड़के और लड़कियां
कहीं खिसियाता हुआ
लिंगदोह

फिर कहीं 'उलूक'
बचते बचाते अपनी पहचान को
निकलता हुआ दूसरी भीड़ के बीच से

और
तीसरी तरफ 
प्रेस में छपते हुए
एक आदमी के पोस्टर

जो कल 
सारी देश की दीवार पर होंगे

और
यही भीड़ पढ़ रही होगी
दीवार पर लिखे हुऐ
देश के भविष्य को
जिसे इसे ही तय करना है ।

चित्र साभार: https://www.pikpng.com/

2 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टी का लिंक कल शनिवार (21-09-2013) को "एक भीड़ एक पोस्टर और एक देश" (चर्चा मंचःअंक-1375) पर भी होगा!
    हिन्दी पखवाड़े की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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