शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

कोयलों में हीरा देखने का भी तमीज होता है !

हीरा तो होता ही
है कोयले का
अपररूप
बस दिखने में
कुछ अलग होता है
खूबसूरत होता है
हाथ की अंगूठी में
गले के हार में
जड़ा होता है
वो बात अलग है
रसायन के ज्ञान
के हिसाब से
तत्व सब में
कार्बन ही होता है
आदमी के गणित
के हिसाब से
कहीं भी
कुछ भी
कैसे भी
अगर होता है
तो किसी के भले
के लिये ही होता है
झूठ महाभारत में
युधिष्ठर ने तक
जब बोला होता है
कोयलों में से
एक कोयला
उठा कर
कोई उसे
हीरा कह
देता है
तो भी
कुछ नहीं
कहीं होना
होता है
कहने वाला
इतना भी
बेवकूफ नहीं
होता है
कहने के बाद
कोयले को
हीरे की बाजार
में जो क्या
भेज देता है
कोयले को
कोयलों में ही
रहने दे कर
नाम हीरा
दे देता है
अश्वथामा
मारा गया
किंतु हाथी
कहना भी
जरूरी नहीं
होता है ।

5 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय-
    वैज्ञानिक तथ्य है-
    वाह -

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (27-10-2013)
    जिंदगी : चर्चा अंक -1411 में "मयंक का कोना"
    पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    अहोई अष्टमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. एक आक्रोश है सामाजिक,पारिवारिक,राजनैतिक व्यवस्था पर ….
    माँ कहती है कि जिसने नदी का प्रलाप समझा , उसने दर्द को जाना
    यह दबा हुआ दर्द से भरा एक आक्रोश है - कोयला ही हीरा,हीरा कोयला

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