शुक्रवार, 1 नवंबर 2013

एक जैसा महसूस हो सबको जरूरी नहीं होता

रंग रोगन साफ
सफाई और घर
गन्ने की बनी
सुंदर सी लक्ष्मी
गणेश पूजा अर्चना
मिट्टी के दिये
तेल बाती मोमबत्तियां
चकरी फुलझड़ियां
सजी संवरी गृहणियां
उत्साह से सरोबार
बच्चे जवान बुड्ढे
बुड़िया लड़के लड़कियां
मन के अंदर जगमगाहट
झिलमिलाती बाहर
की रोशनियाँ
सजे हुऐ लबालब
भरे हुए बाजार
बर्तन भांडे कपड़े
लत्तों की भरमार
ये सब देखा था
कुछ ही दिन पहले
की जैसी हो बात
आज भी बहुत कुछ
वहीं का वहीं है
मशीन उगलने
लगी हैं लक्ष्मी
रोशनी से आँखें
चकाचौंध हैं
पठाके हैं कान फोड़
आवाज है धुआं है
घबराहट है जैसे
रुक रही सांस है
दीपावली रोशनी का
खुशी का त्योहार
तब भी था अब भी है
बस बदली बदली
लगता है एक ही चीज
पहले जहां होता था
इंतजार किसी के
आने का बेकरारी से
इंतजार आज भी होता है
पर बैचेनी के साथ
उतना ही उसी के
आकर चले जाने का ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. आज का सत्य...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...दीपावली की हार्दिक शुभकामनायें!

    जवाब देंहटाएं
  2. सही परीक्षण-
    आभार आपका आदरणीय-
    शुभकामनायें भी-

    जवाब देंहटाएं
  3. शुभ दीपावली !!आशा है कि आप सपरिवार सकुशल होंगे |
    सुन्दर रचना !! यथार्थ!!

    जवाब देंहटाएं