सोमवार, 18 नवंबर 2013

तारा टूटे कहीं तो भगवान करे उसे बस माँ देखे


ऐसा बहुत बार हुआ है 
आसमान से टूटता हुआ एक तारा 
नीचे की ओर उतरता हुआ
जब दिखा है 

गूंजे हैं कान में
किसी के कहे हुऐ कुछ शब्द 
तारे को टूटते हुऐ देखना बहुत अच्छा होता है 
सोच लो मन ही मन कुछ 
कभी ना कभी जरूर पूरा होता है 

बहुत याद आती है उसकी और पड़ जाते हैं सोच 
क्यों और किसलिये उसने ऐसा
हमेशा कहा होता है 

तब दुनिया का एक सब से खूबसूरत चेहरा
सामने होता है 

पुराने दिनों की बात आ जाती है
अचानक याद 
बहुत से तारे टूटते हुऐ एक साथ 
आसमान से गिरते हुऐ
फुलझड़ी की तरह 
देखे थे किसी एक रात
उसने और मैंने साथ साथ 

इतने सारे टूटते हुऐ तारे
जैसे बरसात हो गई हो 
जाहिर करनी है
मन ही मन कोई इच्छा भी इस समय 
जैसे याद ही नहीं रह गई हो 

कब इतना समय आगे निकल गया
पता ही नहीं चला 

कल रात देख रहा था
आसमान की ओर 
एक टूटता हुआ तारा आ रहा था
जैसे जैसे नीचे की ओर 

मुझे याद आ रही थी
उसकी इच्छायें 
पता नहीं कितनी पूरी हुई होंगी 
आज जब वो पास में नहीं है 
जरूर कहीं ना कहीं से 
तारे को टूटते हुऐ
जरूर देख रही होंगी 

क्योंकि मेरी इच्छायें
उस समय भी पूरी हो जाती थी 
जब तारे के टूटते समय तुम पास खड़ी होती थी 

आज भी पूरी होती है 
तब भी
जब तुमको गये हुऐ भी बरसों हो गये 

पता नहीं
कितनों की इच्छायें पूरी हो जाती हैं
एक माँ
जब भी तारे को टूटते देखती है

आज भी माँ
जब भी कोई तारा टूटता है
मुझे कोई इच्छा नहीं याद आती है 
उस समय बस और बस 
मुझे तुम्हारी
बहुत याद आती है ।

चित्र साभार: 
https://sciencing.com/

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत भावनात्मक रचना. माँ की यादें तो हमेशा साथ रहती हैं.

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  2. अच्छा बांधा है भाव को तारा टूटने ,उलका और उलकापात९अनेक तारों का एक साथ टूटना ) के मार्फ़त। हर समाज की अपनी आस्थाएं इन आकाशीय पिंडों से जुडी रहीं हैं। कहीं भय मूलक कहीं आस का पल्लू थामे। हमारी माँ कहती थी -तारा टूटा है कोई मर गया -राम राम बोलो।

    अच्छी प्रस्तुति जी सुशील कुमार जी।

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज मंगलवार को (19-11-2013) मंगलवारीय चर्चामंच---१४३४ ओमप्रकाश वाल्मीकि को विनम्र श्रद्धांजलि में "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. टूटा तारा देख कर, माता के मन-प्राण |
    मांग रही हरदम यही, हो सबका कल्याण ||

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  5. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति का लिंक लिंक-लिक्खाड़ पर है ।। त्वरित टिप्पणियों का ब्लॉग ॥

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  6. वाह!बेहद खूबसूरत,भावपूर्ण रचना है यह आदरणीय सर। आपकी यह रचना मुझे विशेष रूप से प्रिय है। माँ को याद करते हुए उनको यूँ पंक्तियाँ समर्पित करना मन को भाव विभोर कर गया।

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  7. आँखें नम करने वाली बहुत भाव-पूर्ण रचना !
    हमारी ज़िंदगी में माँ तो तमाम तारे, चंदा और सूरज से भी ज़्यादा रौशनी भर देती है.

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