शुक्रवार, 8 नवंबर 2013

फसल तो होती है किसान ध्यान दे जरूरी नहीं होता है

ना कहीं खेत होता है 
ना ही कहीं रेत होती है 

ना किसी तरह की खाद की 
ना ही पानी की कभी कहीं जरूरत होती है 

फिर भी कुछ ना कुछ 
उगता रहता है 

हर किसी के पास 
हर क्षण हर पल 
अलग अलग तरह से कहीं सब्जी तो कहीं फल 

किसी को काटनी 
आती है फसल 
किसी को आती है पसंद बस घास उगानी 
काम फसल भी आती है और उतना ही घास भी 

शब्दों को बोना हर किसी के 
बस का नहीं होता है 
 बावजूद इसके कुछ ना कुछ उगता चला जाता है 
काटना आता है जिसे काट ले जाता है 
नहीं काट पाये कोई तब भी कुछ नहीं होता है 
अब कैसे कहा जाये 
हर तरह का पागलपन हर किसे के बस का नहीं होता है

कुकुरमुत्ते भी तो 
उगाये नहीं जाते हैं 
अपने आप ही उग आते हैं  
कब कहाँ उग जायें किसी को भी पता नहीं होता है 

कुछ कुकुरमुत्ते 
मशरूम हो जाते हैं 
सोच समझ कर अगर कहीं कोई बो लेता है 

रेगिस्तान हो सकता है 
कैक्टस दिख सकता है 

कोई लम्हा कहा जा सके 
कहीं एक बंजर होता है 
बस शायद ऐसा ही कहीं नहीं होता है ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार को (09-11-2013) गंगे ! : चर्चामंच : चर्चा अंक : 1424 "मयंक का कोना" पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    छठ पूजा की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  2. अच्छा बिम्ब है

    कुकुरमुत्ते भी तो
    उगाये नहीं जाते हैं
    उग आते हैं अपने आप
    कब कहाँ उग जायें
    किसी को भी
    पता नहीं होता है
    पर कुछ कुकुरमुत्ते
    मशरूम हो जाते हैं

    शब्दों की फसल काटते हैं कुछ लोग

    और संसद में घुसके देश के लिए खतरा बन जाते हैं।

    जवाब देंहटाएं
  3. बोये बिन उगते रहे, घास-पात लत झाड़ |
    शब्द झाड़-झंकाड़ भी, उगे कलेजा फाड़ |
    उगे कलेजा फाड़, दहाड़े सिंह सरीखा |
    यह टाइम्स उल्लूक, उजाले में ही चीखा |
    साधुवाद हे मित्र, शब्द रोये तो रोये |
    हँसे भाव नितराम, बीज मस्ती के बोये ||

    जवाब देंहटाएं
  4. अर्थ पूर्ण भाव ...
    शब्दों का ताना बाना ... लाजवाब ...

    जवाब देंहटाएं