शुक्रवार, 20 दिसंबर 2013

सब को आता है कुछ ना कुछ तुझे क्यों नहीं आता है

लिख देने
के बाद भी

यहीं पर
पड़ा हुआ
नजर आता है

इतनी सी
भी मदद
नहीं करता
कहीं को चला
भी नहीं जाता है

अखबार
से ही सीख
लेता कुछ कभी

कितनो
का लिखा
अपने सिर पर
उठा उठा
कर लाता है

खुद ही जाकर
हर किसी के घर भी
रोज हो ही आता है

अपनी
अपनी खबर
पढ़ लेने का मौका

हर कोई
समानता से
पा भी जाता है

बहुत
कम होते हैं ऐसे
जिन्हे है फुरसत यहाँ
जमाने भर की

और वो
यहाँ आ कर
पढ़ क्या गया तुझको

तू तो
बहुत ही मजे
मजे में आ जाता है

कुछ तो
सऊर सीख भी ले अब

इधर उधर के
पन्नों से कभी

जिसमें
लिखा हुआ
कुछ भी कहीं भी

बहुत
सी जगह
पर जा जा कर
कुछ ना कुछ
लिखवा ही लाता है

एक तू है पता नहीं
किस चीज का बना हुआ

ना खुद लिख पाता है
ना ही कुछ किसी से
लिखवा ही पाता है

जब देखो
जिस समय देखो
यहीं पर पड़ा रह रह कर

बेकार में
सारी जगह
घेरता चला जाता है

अरे ओ
बेवकूफ पन्ने
किसी की समझ में
बात आये ना आये

तेरी समझ में
कभी भी कुछ
क्यों नहीं आता है

'उलूक'
के बारे में
भी कुछ सोच
लिया कर कभी

उससे भी
आँखिर
कब तक और
कहाँ तक सब
लिखा जाता है ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. उलूक के बारे में ही सोच रहे हैं क्या लिखा पढ़ा जा रहा है सब का खाता गढ़े जा रहा है। बढ़िया प्रस्तुति

    बात आये ना आये
    तेरी समझ में कभी भी
    कुछ क्यों नहीं आता है
    “उल्लूक” के बारे में
    भी कुछ सोच
    लिया कर कभी
    उससे भी आँखिर
    कब तक और कहाँ तक
    सब लिखा जाता है !

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज शनिवार (21-12-13) को "हर टुकड़े में चांद" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1468 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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