मंगलवार, 3 दिसंबर 2013

बदतमीजी कर मगर तमीज से नहीं तो आजादी के मायने बदल जाते हैं

वो
करते
थे सुना

गुलामी
की बात

जो
कभी
आजाद
भी हो गये थे

कुछ
बच गये थे

आज
भी हैं
शायद
कहीं
इंतजार में

बहुत सारे
मर खप भी
कभी के गये थे

ऐसे ही
कुछ
निशान

आजादी
के कुछ

गुलामी
के कुछ

आज भी
नजर कहीं
आ ही जाते हैं

कुछ
खड़ी
मूर्तियाँ

शहर
दर शहर
चौराहों पर

कुछ
बैठे बूढ़े
लाठी लिये

खेतों के लिये
जैसे वजूका
एक हो जाते है

पर
कौए
फिर भी
बैठ ही
कभी जाते हैं

कोई
नहीं देखता
उस तरफ
कभी भी

मगर
साल
के किसी
एक दिन

रंग
रोगन कर
नये कर
दिये जाते हैं

देख सुन
पढ़ रहे होंं
सब कुछ

आज भी

आज को
उसी अंदाज में

देखो
उनकी
तरफ तो
नजर से
नजर मिलाते
नजर आ जाते हैं

बदतमीजी

बहुत
हो रही है
चारों तरफ

बहुत
ही तमीज
और बहुत
आजादी के साथ

बस
दिखता है
इन्ही को

समझते
भी ये
हैं सब

बाकी तो
आजाद हैं

कुछ
इधर से
निकलते
हैं उनके

कुछ
उधर से
भी निकल
जाते हैं ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी उत्कृष्ट प्रस्तुति बुधवारीय चर्चा मंच पर ।।

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  2. बदतमीजी करने केलिए तमीज तो सीखना पड़ेगा न ? वो भी कठिन है |
    नई पोस्ट वो दूल्हा....
    लेटेस्ट हाइगा नॉ. २

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  3. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार, जुलाई 16, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. सलीके से की गयी बदतमीज़ी के दूरगामी परिणाम होते हैं जैसे कि किसी के घर में आग लगाने वाला ख़ुद फायर-ब्रिगेड अधिकारी बन जाता है, कॉलेज-यूनिवर्सिटी का नामी गुंडा एम. एल. ए. या एम. पी. हो जाता है. दूरदृष्टि रखकर बदतमीज़ी के नए कीर्तिमान स्थापित करते रहो और ज़िंदगी में तरक्की करते रहो.

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  5. बहुत ही सुन्दर ...लाजवाब....
    वाह!!!

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