शनिवार, 7 दिसंबर 2013

मुझे तो छोड़ दे कम से कम हर किसी को कुछ ना कुछ सुनाता है

कभी कहीं किसी ऐसी
जगह चला चल जहाँ
बात कर सकें खुल के
बहुत से मसले हैं
सुलझाने कई जमाने से
रोज मुलाकात होती है
कभी सुबह कभी शाम
कभी रास्ते खासो आम
इसके उसके बारे में तो
रोज कुछ ना कुछ
सामने से आता है
कुछ कर भी
ना पाये कोई
तब भी लिख
लिखा कर
बराबर कर
लिया जाता है
तेरा क्या है तू तो
कभी कभार ही
बहुत ही कम
समय के लिये
मिल मिला पाता है
जब बाल बना
रहा होता है कोई
या नये कपड़े कैसे
लग रहे हैं पहन कर
देखने चला जाता है
हर मुलाकात में ऐसा
ही कुछ महसूस
किया जाता है
अपने तो हाल ही
बेहाल हो रहे हैं
कोई इधर दौड़ाता है
कोई उधर दौड़ाता है
एक तू है हर बार
उसी जगह पर
उसी उर्जा से ओतप्रोत
बैठा नहीं तो खड़ा
पाया जाता है
जिस जगह पर कोई
पिछली मुलाकात में
तुझे छोड़ के जाता है
बहुत कर लिये मजे तूने
उस पार आईने के
रहकर कई सालों साल
अब देखता हूँ कैसे
बाहर निकल कर के
मिलने नहीं आता है
कुछ तो लिहाज कर ले
फिर नहीं कहना किसी से
दुनियाँ भर में कोई कैसे
अपने खुद के अक्स को
इस तरह से बदनाम
कर ले जाता है ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया प्रस्तुति-
    आभार आदरणीय-

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (08-12-2013) को "जब तुम नही होते हो..." (चर्चा मंच : अंक-1455) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. बहुत कर लिये मजे तूने
    उस पार आईने के
    रहकर कई सालों साल
    अब देखता हूँ कैसे
    बाहर निकल कर के
    मिलने नहीं आता है

    Kya bat hai kud se hee ho rahee hai kaisee ye ladaee.

    जवाब देंहटाएं