शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

कुछ देशी इलाज करवा बहुत फालतू बातें आजकल कर रहा है

समय
बदला है
तरीके
भी बदले हैं
उसी तरह
उसके
साथ साथ

बस
नहीं बदली है
तो तेरी समझ

समझा कर

पहले
जो कुछ भी
हुआ करता था
उस समय के
हिसाब से ही
हुआ करता था

अब
उस समय
का हिसाब
इस समय
भी सही हो

इस बात को
समय कभी भी
किसी से भी

किसी
जमाने में भी
कहीं नहीं
कहा करता था

लौह पुरुष
हुआ था
कहते हैं
कोई कभी

किसे पता है
कितना लोहा
उसमें हुआ
करता था

एक
कोई और
धोती पहना हुआ
एक चश्मा लगाये
लाठी लेकर

सच की
वकालत
भी करता था

होता था
बहुत कुछ
स्वत: स्फूर्त

अपने आप
ऊपर से
नीचे की
ओर ही नहीं

विपरीत
दिशाओं में भी
खुद का खुद
कुछ कुछ
बहा करता था

समय
बदल गया है

लौह पुरूष
नहीं भी
बन रहा है

चिंता
मत किया कर

लौहा
पूरे देश से
कोई आज भी
जमा कर रहा है

बनेगा
कुछ ना कुछ

सच की
वकालत
बिना लाठी चश्में
और धोती के भी

कोई कोई
कर रहा है

बस बताना
पड़ रह है

एक दो नहीं
पूरी एक
भीड़ के द्वारा

कि कोई
कुछ कर रहा है
और ईमानदारी
से ही कर रहा है

एक तू है
अभी भी
पुराने
तरीकों पर
ना जानें क्यों
अढ़ रहा है

सोच
कितने लोगों
से उसे
कहलवाना
पड़ रहा है

संचार तंत्र
का भी सहारा
जगह जगह
लेना पड़ रहा है

दस लोगों का
ईमानदारी का दिया
हुआ प्रमाण पत्र भी
क्या तेरे पल्ले
नहीं पड़ रहा है

जब
कह दिया गया है
छपा दिया गया है
टी वी में तक
दिखा दिया गया है

तब भी
तू बेकार में
मण मण
कर रहा है ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. बढ़िया है भैया -
    लौह में भी दीमक लगा रहे हैं लोग-
    सादर

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  2. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शनिवार (4-1-2014) "क्यों मौन मानवता" : चर्चा मंच : चर्चा अंक : 1482 पर होगी.
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है.
    सादर...!

    जवाब देंहटाएं
  3. आप का कारनामें
    आप की रचना...
    और अंत में आप
    सच में
    आप लाजवाब हैं

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. दिग्विजय जी बहुत बहुत आभार !

      रचना तो जैसी भी है दिख रही यहाँ है
      कारनामा मेरा अभी आपने देखा कहाँ है
      ज्यादातर लोग जो दिखते हैं होते नहीं हैं
      आपने अभी लोगों को पास से देखा कहाँ है :)

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