रविवार, 5 जनवरी 2014

होता तो है मतलब का पता पर समझ में नहीं आ पाता है

मकड़ियां होती ही हैं
सामने से, आस पास
या कहीं दूर पर भी
जहाँ तक नजर
में आ जाती हैं
अब होती हैं
तो होती हैं
और किसी के कहीं
होने में किसी का
दोष नहीं होता है
अब क्या करें वो भी
उनको भी कहाँ
पता होता है
कोई उनको जब तब
देख परख रहा होता है
आज अचानक
ऐसी ही कुछ मकड़ियों
की स्ट्रेटेजी का ख्याल
पता नहीं कहाँ
से आ गया
ऐसा होता है
सोये हुऐ मन में
भी बहुत कुछ
सोया रहता है
पर जो वास्तव में
सोया सोया हुआ
सा नहीं होता है
स्ट्रेटेजी किसी के लिये
रणनीति हो जाती है
किसी को एक
कपट विद्या
नजर आती है
कोई युद्ध-कला
समझाता है
किसी के लिये वही
युद्ध-कौशल हो जाता है
शराफत से बताने
वाला कार्यनीति
कह ले जाता है
बाबा “उलूक” भी
क्या करे ऐसे में
जो कुछ देखना
सुनना नहीं चाहता है
वो सब उसी दिन के
सुबह सुबह के
अखबार के मुख्यपृष्ट
पर छप के आ जाता है
अब अगर एक मकड़ी
के हाथ में किसी को
मछली पकड़ने का
तागा और सामान
नजर आता है
तो इसमें कौन सा
अनर्थ हो जाता है
मकड़ी भी तो
छोड़ सकती है
जाल बुनना और
मक्खी चूसना
क्या पता मछली
फंसाने में उसको
अब और ज्यादा
मजा आता है
खिसियाता हुआ
खुद को कुछ
इस तरह समझाता है
तू लगा रह चूसने में
शाकाहार सा कुछ
हरी घास के मैदानों में
बहुत कुछ तेरे जैसों के
लिये पाया जाता है
तुझे जब पकड़नी ही
नहीं है मक्खी या मछली
तो फिर काहे को बेकार में
स्ट्रेटेजी का सही मतलब
समझना चाहता है ।

10 टिप्‍पणियां:



  1. बढ़िया ताना बाना
    बधाई-
    जाला मकड़ी सा बुने, लेता मछली फांस |
    छोड़े मक्खी चूसना, भर उल्लू उच्छावांस ||

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  2. अख़बार की सुर्ख़ियों में बुने जा रहे सियासी मकड़जाल का बेहतरीन शब्दजाल!!

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  3. बहुत बढ़िया आ० , कुछ कुछ सहमत , आपने जो प्रश्न किया था उसका उत्तर जो कुछ भी प्रभु कृपा से दे पाया दे दिया है सर कृपया अवलोकन हेतु पधारने की कृपा करें , अगर कोई भी भूल हो तो क्षमा करने की कृपा करे , क्योंकि आप हमसे अग्रज है , और हम आपके अनुज , धन्यवाद
    || जय श्री हरिः ||

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  4. समंदर का पानी खारा है - पता है
    अब सीप,मोती और अन्य रहस्यों के लिए गहरे जाने की क्यूँ उतावली ?
    क्या मिल जायेगा जानकर !!!

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  5. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (06-01-2014) को "बच्चों के खातिर" (चर्चा मंच:अंक-1484) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  6. अजी यहाँ तो मकड़ी ही मकड़ी हैं मकड़ा कोई नहीं है। मकड़ा हाई कमान निगल जाती है।

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  7. मकड़ी के बहाने खूब शब्द जाल बुना है आपने।

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