मंगलवार, 11 मार्च 2014

झेल सके तो झेल “उलूक” ने छ: सौवीं बक बक दी है आज पेल

काम की बात
करने में ही
होती हैं बस
कठिनाईयाँ
कुछ लोग
बहुत अच्छा
लिखते हैं
पढ़ते ही
बज उठती
है चारों तरफ
शहनाईयाँ
कुछ भी
कह लेने में
किसी का कुछ
नहीं जाता है
एक दो तीन
होते होते
पता कहाँ
चलता है
एक दो नहीं
छ: का सैकड़ा
हो जाता है
ना पेड़ खिसकता
है कहीं कोई
ना ही पहाड़
एक किसी से
सरक पाता है
सब लोग लगे
होते हैं कुछ
ना कुछ ही
करने धरने में
कहीं ना कहीं
कुछ लोगों से
कुछ भी नहीं
कहीं हो पाता है
लिखना सबसे
अच्छा एक काम
ऐसे लोगों को
ही नजर आता है
एक जमाने में
भरे जाते थे
जिनसे कागज
किसी कापी
या डायरी के
साल होते होते
सामने सामने का
नजारा एक कबाड़ी
का कापियों को
खरीद ले जाना
हो जाता है
वो जमाना भी
गया जमाना
हो चुका कभी का
आज के दिन
कापी की जगह
ब्लाग हो जाता है
पहले के लिखे का
भी कोई मतलब
नहीं निकाला
किसी ने कहीं
आज निकलता
भी है तो कोई
कहाँ बताता है
टिप्पणी करने का
चलन भी शुरु हुऐ
कुछ ही दिन तो
हुऐ हैं कुछ
ही समय से
कुछ करते हैं
कुछ ही जगहों पर
कुछ नहीं करते
हैं कहीं भी
कुछ को लिखा
क्या है ये ही
समझ में नहीं
आ पाता है
खुश है “उलूक”
पलट कर
देखता है जब
छ: सौ बेकार
की खराब कारों के
काफिले से
उसका गैरेज
भर जाता है ।

7 टिप्‍पणियां:

  1. काम की बात
    करने में ही
    होती हैं बस
    कठिनाईयाँ
    कुछ लोग
    बहुत अच्छा
    लिखते हैं
    पढ़ते ही
    बज उठती
    है चारों तरफ
    शहनाईयाँ

    बहुत सशक्त ज़नाब अब ब्लॉग की तो रद्दी भी नहीं निकलती है बड़ा सटीक व्यंग्य

    आपकी टिप्पणियाँ हमारी उत्प्रेरक धरोहर बनती हैं।

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  2. बढ़िया अंदाज़ में , छःठहरा शतक के लिये बधाई सर

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  3. 600वीं पोस्ट का हार्दिक बधायी स्वीकार करें...!
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज बुधवार (12-03-2014) को मिली-भगत मीडिया की, बगुला-भगत प्रसन्न : चर्चा मंच-1549 पर भी है।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. झेल भी रहे है और पेल भी रहे है :)
    मस्त है रचना ६०० से ६००० तक की बधाई हो !

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