सोमवार, 24 मार्च 2014

उससे ध्यान हटाने के लिये कभी ऐसा भी लिखना पड़ जाता है

कभी सोचा है
लिखे हुए एक
पन्ने में भी
कुछ दिखता है
केवल पढ़ना
आने से ही
नहीं होता है
पन्ने के आर
पार भी देखना
आना चाहिये
घर के दरवाजे
खिड़कियों की तरह
एक पन्ने में भी
होती हैं झिर्रियाँ
रोशनी भीतर की
बाहर छिरकती है
जब शाम होती है
अँधेरा हो जाता है
सुबह का सूरज
निकलता है
थोड़ा सा उजाला
भी कहीं से
चला ही आता है
लिखा हुआ रेत
का टीला कहीं
कहीं एक रेगिस्तान
तक हो जाता है
मरीचिका बनती
दिखती है कहीं

एक जगह सूखा
पड़ जाता है
नमी लिया
हुआ होता है
तो एक बादल
भी हो जाता है
नदी उमड़ती है कहीं
कहीं ठहरा हुआ
एक तालाब सा
हो जाता है
पानी हवा के
झौंको से
लहरें बनाता है
गलतफहमी भी
होती हैं बहुत सारी
कई पन्नों में
सफेद पर काला
नहीं काले पर
सफेद लिखा
नजर आता है
समय के साथ
बहुत सा समझना
ना चाहते हुए
 भी
समझना पड़ जाता है
हर कोई एक
सा नहीं होता है
किसी का पन्ना
बहुत शोर करता है
कहीं एक पन्ना
खामोशी में ही
खो जाता है
किसी का लिखा
खाद होता है
मिट्टी के साथ
मिलकर एक
पौंधा बनाता है
कोई कंकड़ पत्थर
लिखकर जमीन को
बंजर बनाता है
सब तेरे जैसे
बेवकूफ नहीं
होते हैं “उलूक”
जिसका पन्ना
सिर्फ एक पन्ना
नहीं होता है
रद्दी सफेद कपड़े
की छ: मीटर की
एक धोती जैसा
नजर आता है । 

14 टिप्‍पणियां:

  1. This is awesome....bro u become a magician who plays with the words so beautifully.....there is melody....a mystery....and lot more...keep it up

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  2. मित्र !होली की हार्दिक वधाई ! आधुनिक पुस्तकीय खोखले ज्ञान पर अच्छा और मीठा प्रहार है !!

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  3. शायद इसी से बना होगा मुहावरा - बिटवीन द लाइंस का!!

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  4. क्या बात है। लाजवाब प्रस्तुति।

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  5. जिसको पढना आसान है,
    समझने में सालों लग जायेंगे !!
    मंगलकामनाएं उलूक को !!

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    1. आभार आपकी मंगलकामनाऐं जरूर एक दिन उलूक को मंगल पहुँचायेंगी :)

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल मंगलवार (25-03-2014) को "स्वप्न का संसार बन कर क्या करूँ" (चर्चा मंच-1562) पर भी होगी!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
    कामना करता हूँ कि हमेशा हमारे देश में
    परस्पर प्रेम और सौहार्द्र बना रहे।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  7. बहुत ही सुन्दर सारगर्भित रचना
    पथिक अनजाना























































































































































































































    बहुत ही सुन्दर व सारगर्बित रचना धन्यवाद
    ---पथिक अनजाना

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    उत्तर
    1. आभार पथिक जी आप की टिप्प्णी के लिये इसी तरह और ब्लाग्स पर आपके आशीर्वचन लोगों को मिलेंगे आशा है । पर बहुत बड़ी जगह आपने खाली छोड़ दी बीच में :)

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  8. बहुत खूब ... आर पार देखना भी आना जरूरी है ... पूरा सच जानने के लिए ... अर्थपूर्ण भाव ...

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  9. किसी का पन्ना
    बहुत शोर करता है
    कहीं एक पन्ना
    खामोशी में ही
    खो जाता है
    ....बहुत सारगर्भित प्रस्तुति....सदैव की तरह बहुत प्रभावी और सोचने को विवश करती...

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