बुधवार, 5 मार्च 2014

जरूरी नहीं होती है हर बात की कब्र कहीं खुदी होना

बेरोजगार के दर्द की
दवा नहीं होती है
और रोजगारी में
बेरोजगार होने की
बात किसी से
कभी भी कहनी
नहीं होती है
बहुत तरह के होते हैं
क्या होते हैं
?
रहने दीजिये बेकार है
कुछ भी कहना
कुछ समझेंगे
कुछ नहीं समझेंगे
कुछ से तो कहनी
ही नहीं होती है
इस तरह की बातें कभी
उनके लिये कहने से
अच्छा होता है
कुछ भी नहीं कहना
इसलिये खाली पीली
क्यों बेकार का पंगा
किसी से इस तरह
का ले लेना
अच्छा है रोज की तरह
दस पाँच मिंनट
फाल्तू निकाल कर
बैठे ठाले की किताब का
एक नमूना ही
हल कर लेना
कुछ ऐसा लिख लेना
पड़े नहीं किसी के पल्ले
एक दिन आये देखने
दूसरे दिन से साफ
नजर आये रास्ता
ही बदल लेना
किसी का इस गली से
दुबारा नहीं आने की
तौबा ही कर लेना
वैसे भी अखबार
रेडियो टी वी से
ज्यादा खतरनाक
हो चुका है आज का
सोशियल मीडिया
कुछ लिखने दिखाने
का मतलब कब
निकल आये कुछ और
और मढ़ दिया जाये
कारण सिर पर
दंगों का हो लेना
अच्छा किया
नहीं बताया
पढ़े लिखों को
बन गया था नक्शा
बेलते समय रोटी आज
शाम के खाना
बनाने के समय
पाकिस्तान का
मैंने छुपाया ही छुपाया
हो सके तो तुम भी
किसी से इस बावत
कुछ भी कहीं भी
ना कह सको तो
नहीं कह देना ।

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रस्तुति को आज कि गूगल इंडोर मैप्स और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  2. कुछ से तो कहनी
    ही नहीं होती है
    इस तरह की बातें कभी
    उनके लिये कहने से
    अच्छा होता है
    कुछ भी नहीं कहना.......

    बहुत सही..
    सादर
    अनु

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  3. वक्त बदलेगा, ये मंजर बदलेगा, कभी तो ईनसान का जमीर जगेगा।

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  4. बहुत सुन्दर ....सच में इस बेरोजगारी के दर्द की दवा नहीं है रोजगार के सिवा

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  5. हर शख्स मुकम्मल नहीं
    हर बात मुकम्म्ल नहीं
    न एहसास, न अभिव्यक्ति
    न कल्पना, न यथार्थ - मुकम्म्ल कुछ भी नहीं
    तो कहें तो कितना
    किससे
    और क्यूँ !!!

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  6. अच्छा किया
    नहीं बताया
    पढ़े लिखों को
    बन गया था नक्शा
    बेलते समय रोटी आज
    शाम के खाना
    बनाने के समय
    पाकिस्तान का
    मैंने छुपाया ही छुपाया
    हो सके तो तुम भी
    किसी से इस बावत
    कुछ भी कहीं भी
    ना कह सको तो
    नहीं कह देना ।

    बहुत सुन्दर कश्मीर के छात्रों पर कुलपति के जुल्म साकार हुए।

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