शनिवार, 8 मार्च 2014

आचार संहिता है हमेशा नहीं रहती है कुछ दिन के लिये मायके आती है

आचार
संहिता

कुछ दिन
के लिये
ही सही

विकराल
रूप
दिखाती है

बहुत कुछ
कर लेती है
नहीं कहा
जा रहा है

पर
कुछ चीजों
के लिये जैसे

सुरसा
हो जाती है

डर वर
किसी को
होने लगता है
किसी चीज से

ऐसी बात
कहीं भी
ऊपर से

नजर कहीं
नहीं आती है
 


शहर के
मकानों
गलियों
पेड़ पौंधों
को कुछ
मोहलत

साँस लेने
की जरूर
मिल जाती है

कई
सालों से
लगातार
लटकते
आ रहे
चेहरों को

गाड़ी
भर भर कर

कहीं
फेंकने को
ले जाती हुई

दूर से
जब नजर
आने लग
जाती है

आदमी के
दिमाग में
लटके हुऐ
चेहरों और
पोस्टरों को

छूने
और पकड़ने
की
जुगत लगानी
उसे नहीं
आती है

बहुत
शाँति का
अहसास
'उलूक'
को होता है

हमेशा ही
ऐसी ही
कुछ बेवजह
हरकतों पर
किसी की

उसकी
बाँछे पता नहीं

क्यों
खिल जाती हैं

आने वाले
एक तूफान
का संदेश
जरूर देते हैं

शहर से
चेहरों के
पोस्टर
और झंडे

जब
धीरे धीरे
बेमौसम में
गायब होते हुऐ
नजर आते हैं

पटके गये
होते हैं
इसी तरह
कई बार के
तूफानो में

इस देश
के लोग

आदत हो
जाती है

कुछ नहीं
होने वाला
होता है

आँधियों
को भी
ये पता
होता है

जनता
ही जब

एक
चिकना
घड़ा हो
जाती है ।

11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर .....जनता ही जब
    एक चिकना
    घड़ा हो जाती है ......नमस्ते भैया

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  2. सार्थक प्रस्तुति..सादर..

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  3. मित्रों।
    तीन दिनों तक देहरादून प्रवास पर रहा। आज फिर से अपने काम पर लौट आया हूँ।
    --
    आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि् की चर्चा आज रविवार (09-03-2014) को आप रहे नित छेड़, छोड़ता भाई मोटा ; चर्चा मंच 1546 पर भी है!
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. आचार संहिता लागू होने से पहले सब देश और प्रदेश निर्माण पर बजट झोंक रहे थे...

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  5. आप को पढ़ा आदरणीय जोशी जी ! .सृजन के लिए साधुवाद .....बड़े मनोभाव से लिखे सामायिक तथ्य, बोधगम्य व चेतनशील भी हैं ....बधाई

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    1. आप ने मेरे ब्लाग पर आकर मेरा उत्साहवर्धन किया इसके लिये दिल से आपका आभारी हूँ अपना स्नेह बनाये रखियेगा ।

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  6. आपकी लिखी रचना मंगलवार 12 मार्च 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  7. शहर के
    मकानों
    गलियों
    पेड़ पौंधों
    को कुछ
    मोहलत
    साँस लेने
    की जरूर
    मिल जाती है
    बहुत ही लाजवाब... समसामयिक...
    वाह!!!

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  8. सामायिक विषयों पर सटीक प्रहार करती आपकी लेखनी को नमन।

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