मंगलवार, 1 अप्रैल 2014

‘माफ करना हे पिता’ लेखक ‘शँभू राणा’ प्रकाशक ‘नैनीताल मुद्र्ण एवं प्रकाशन सहकारी समिति’ वितरक ‘अल्मोड़ा किताब घर, अल्मोड़ा’ मूल्य 175 रु मात्र


बहुत शोर होता है रोज ही उसका
जिसमें कहीं भी कुछ नहीं होता है

मेरे कस्बेपन से गुजरते हुए
बिना बात के बात ही बात में
शहर हो गये जैसे शहर में
जिसकी किसी एक गली में
कोई ऐसा भी कहीं रहता है

जो ना अपना पता देता है किसी को
ना किसी के पास उसके
होने का ही कोई पता होता है

शर्मीला या खुद्दार
कहने से भी कुछ नहीं होता है
दुबला पतला साधारण सा पहनावा
और आठवीं तक चलने की बात
बताता और सुनाता चला होता है

कलम के बादशाह होने वाले के पास
वैसे भी खूबसूरती कुछ नाज नखरे
बिंदास अंदाज और तख्तो ताज
जैसा कुछ भी नहीं होता है

ज्यादा कुछ नहीं कहना होता है
जब ‘शंभू राणा’ जैसा बेबाक लेखक
कलम का जादूगर सामने से होता है

शहर है गली है गाँव है आदमी है
या होने को है कुछ कहीं
बस जिसको पता होता है
हर चीज की नब्ज टटोलने का आला
जिसकी कलम में ही कहीं होता है

कुछ लोग होते हैं बहुत कुछ होते हैं
जिनको पढ़ लेना
सबके बस में ही नहीं होता है
कई तमगों के लिये बने ऐसे लोगों
के पास ही इस देश में
कोई तमगा नहीं होता है ।

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपको ये बताते हुए हार्दिक प्रसन्नता हो रही है कि आपका ब्लॉग ब्लॉग - चिठ्ठा - "सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉग्स और चिट्ठे" ( एलेक्सा रैंक के अनुसार / 31 मार्च, 2014 तक ) में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएँ,,, सादर .... आभार।।

    जवाब देंहटाएं
  2. जैसे शहर में
    जिसकी किसी
    एक गली में
    कोई ऐसा भी
    कहीं रहता है
    जो ना अपना
    पता देता है किसी को
    ना किसी के पास
    उसके होने का ही
    कोई पता होता है .... शानदार अभिव्यक्ति , शहरों की मृगमारिचिका में फंसे लोग अक्सर अपना पता भी भूल जाते हैं

    जवाब देंहटाएं