रविवार, 11 मई 2014

किताबों के होने या ना होने से क्या होता है

किताबें सब के
नसीब में
नहीं होती हैं
किताबें सब के
बहुत करीब
नहीं होती हैं
किताबें होने से
भी कुछ
नहीं होता है
किताबों में जो
लिखा होता है
वही होना भी
जरूरी नहीं होता है
किताबों में लिखे को
समझना नहीं होता है
किताबों से पढ़ कर
पढ़ने वालो से बस
कह देना ही होता है
किताबों को खरीदना
ही नहीं होता है
किताबों का कमीशन
कमीशन नहीं होता है
किताबें बहुत ही
जरूरी होती है
ऐसा कहने वाला
बड़ा बेवकूफ होता है
किताबें होती है
तभी बस्ता
भी होता है
किताबें डेस्क
में होती है
किताबें अल्मारी
में सोती हैं
किताबे दुकान
में होती हैं
किताबे किताबों के
साथ रोती हैं
किताबों में
लिखा होना
लिखा होना
नहीं होता है
किताबों में
इतिहास होता है
किताबों में हास
परिहास होता है
किताबों की बातों को
किताबों में ही
रहना होता है
जो अपने
आस पास होता है
किताबों से नहीं होता है
किसी को पता
भी नहीं होता है
होना या ना
होना भी
किताबों में
नहीं होता है
सब पता होना
इतना भी जरूरी
नहीं होता है
इतिहास
पुराना हो
बहुत अच्छा
नहीं होता है
नया होने
के लिये
ही कुछ
नया होता है
जो पहले से
ही होता है
उसका होना
होना नहीं होता है
किताबों को पढ़ना
और पढ़ाना होता है
बताना कुछ
और ही होता है
जिसको इतना
पता होता है
गुरुओं का भी
गुरु होता है ।

24 टिप्‍पणियां:

  1. किताबों के बिना तो मुझे घुटन होती है!!

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    1. आपने ने किसी को पढ़ाया है वो जो किताब में नहीं है कभी :) आभार ।

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  2. किताबें जीवन का हिस्सा रहें ...... बस !

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (12-05-2014) को ""पोस्टों के लिंक और टीका" (चर्चा मंच 1610) पर भी है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. सुंदर! किताबी बातों से आगे की बातें समझाने वाला ही गुरु है, समझने वाला महागुरु :)

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  5. सबसे बड़ी जिंदगी की किताब है जो किताबों के अलावा
    बहुत कुछ पढ़ाती है :)
    सटीक रचना !

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  6. अनुभूति के फलक पर बढ़िया रचना।

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  7. ब्लॉग बुलेटिन की ८५० वीं बुलेटिन खेल खतम पैसा हजम - 850 वीं ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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  8. होने न होने से परे बहुत कुछ होता है - जो किताबों में नहीं मिलता

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    उत्तर
    1. जी ऐसे ही कुछ लोगों पर लिखा था इसी लिये पर जो आपने बताया उसकी उल्टी सोच वाले :)
      आभारी हूँ ।

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  9. कुछ नहीं होता है किताबो के होने या ना होने से .. होता है उनको पढने और अमल करने से .. सुन्दर बात.

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  10. किताबें हैं इसलिए हम सभ्यता और संस्कृति के इस दौर में हैं ,हमारे सोच का परिपोषण-परिमार्जन किताबों से जुड़ा है ,और व्यक्ति की बौद्धिक सीमाओं का विस्तार किताबों से ही संभव है .

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    1. जी :)
      आभार । पर आजकल गुरु लोग शिष्यों को किताबों से अलग भी सिखाते हैं और इस तरह अपने काम भी करवाते हैं ।

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    2. अगर गुरु केवल किताबी ज्ञान पर निर्भर न रह कर कुछ मौलिक और व्यावहारिक भी सिखाते हैं तो कुछ गलत नहीं .और अगर गुरु स्वार्थांध है तो भी दोष किताबों का नहीं.श्रेष्ठ गुरु और योग्य शिष्य हों तभी शिक्षा सार्थक हो सकती है .(वैसे किताबें भी सब तरह की होती हैं कोई गीता और गोदान तो कोई रद्दी में फेंकने वाली) .

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    3. सहमत :) आगे अब कुछ नहीं कहना ठीक रहेगा ।

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